संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : कंगना का अगला गलत बयान उनकी नहीं, पार्टी की गलती कहलाएगी...
25-Sep-2024 4:59 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : कंगना का अगला गलत बयान उनकी नहीं, पार्टी की गलती कहलाएगी...

एक पेड़ या पौधे के फल के ऐसे रेशे रहते हैं जिन्हें किसी पर छिडक़ दिया जाए तो उन्हें लगातार खुजली आने लगती है। छत्तीसगढ़ के इलाके में उसे केंवाच कहा जाता है, और शरारत करने वाले लोग उसे होली के मौके पर गुलाल में मिलाकर, या वैसे ही किसी पर छिडक़ देते हैं, और वे घंटों तक इस खुजली से जूझते रहते हैं। कुछ लोगों के मुंह में कुदरत केंवाच डालकर भेजती है, और जब तक वे कोई नाजायज और निहायत गैरजरूरी बात बोल न लें, तब तक मुंह की खुजली जारी रहती है। पिछले एक महीने में पार्टी की जमकर झिडक़ी खाने के बाद भी ताजा-ताजा सांसद बनी हुई कंगना रनौत का हाल कुछ ऐसा ही है। जिन किसानों के बारे में कंगना के हिंसक बयानों पर पार्टी ने अपने आपको उनसे अलग कर लिया था, और सार्वजनिक रूप से कहा था कि कंगना पार्टी की तरफ से कोई भी बयान देने का हक नहीं रखती हैं, उसी कंगना ने अब फिर किसानों के बारे में एक नया बखेड़ा छेड़ा है। उन्होंने यह कहा है कि निरस्त किए गए किसान कानूनों को वापिस लाना चाहिए, और किसानों को खुद इसकी मांग करनी चाहिए। देश में महीनों तक चले किसान आंदोलन के बाद शायद सात सौ से अधिक आंदोलनकारियों की मौत के बाद मोदी सरकार को पहली बार पूरी शर्मिंदगी से अपने बाहुबल से संसद में पास करवाए गए किसान कानूनों को वापिस लेना पड़ा था। और तब से अब तक भाजपा और मोदी किसान कानूनों से जुड़ा यह अप्रिय सिलसिला याद भी करना नहीं चाहते हैं। लेकिन बिना किसी मौके के कंगना ने एक बार फिर अपनी औकात से बढक़र, बेवजह किसान कानूनों की याद दिला दी, और पार्टी के लिए एक बड़ी असुविधा पैदा कर दी। पार्टी के एक राष्ट्रीय प्रवक्ता को सार्वजनिक रूप से कंगना की सोच का खंडन करना पड़ा, और कहना पड़ा कि उनका यह बयान कहीं से भी पार्टी की नीति नहीं है, और पार्टी अपने को इससे अलग करती है। कंगना की समझ को लेकर लोगों के बीच कई तरह का शक हो सकता है, लेकिन उनका परिचय ही बताता है कि वे 38 बरस की हैं। राजनीतिक समझ शून्य व्यक्ति भी इस उम्र में आकर, और एक बड़ी राष्ट्रीय पार्टी के सैकड़ों सांसदों में से एक बनकर बार-बार पार्टी की सार्वजनिक झिडक़ी, और एयरपोर्ट पर एक महिला किसान आंदोलनकारी बेटी की थप्पड़ खाने से बचने लायक समझ वाली तो होना चाहिए, लेकिन कंगना को यह सहज समझ शायद छू भी नहीं गई है। इसके अलावा ऐसा भी लगता है कि वे भाजपा के भीतर स्मृति ईरानी के छोड़े गए एक विशाल शून्य को भरने की हड़बड़ी में हैं, और इसीलिए बिना सोचे-विचारे पार्टी की फजीहत करने का शगल पाल बैठी हैं।

इस तरह के बयान देने वाले कुछ और भी लोग रहते हैं जो मुंह पहले खोलते हैं, और दिमाग का इस्तेमाल बाद में करते हैं, अगर दिमाग रहता है तो। सार्वजनिक जीवन में बहुत से लोग अश्लील, हिंसक, भडक़ाऊ, और विवादास्पद बयान देने के शौकीन रहते हैं। इनकी वजह से कहीं चुनाव आयोग उन्हें नोटिस देता है, तो कहीं सुप्रीम कोर्ट उन पर हेट-स्पीच की एफआईआर करने को कहता है। यह सिलसिला हाल के दशकों में कुछ तेज हो गया है। पहले तो इतना बुरा हाल नहीं था, लोग अधिक सोच-समझकर बोलते थे, लेकिन इन दिनों ऐसा लगता है कि कैमरों के सामने बोल लेने के बाद, सोशल मीडिया पर पोस्ट कर देने के बाद लोग अपनी कही बातों पर अगर सोचते होंगे, तो सोचते होंगे। ऐसा लगता है कि आज की टेक्नॉलॉजी ने लोगों की सोच को बहुत बुरी तरह प्रभावित किया है। पिछले कुछ दशकों में मोबाइल फोन पर एसएमएस भेजने की ऐसी तकनीक लोगों को हासिल हुई कि वे कुछ पलों में मैसेज टाईप करके भेज देते हैं, जो कि पल भर में पहुंच जाता है, और कुछ मिनटों में शायद उसका जवाब भी आ जाता है। बात और आगे बढ़ गई, और अभी कुछ बरस से तो वॉट्सऐप जैसे कई मैसेंजरों पर लोग वीडियो कॉल पर बात करते हैं, अपनी आवाज में संदेश रिकॉर्ड करके भेज देते हैं, कोई वीडियो, फोटो, या लिखित संदेश पल भर में किसी एक को या सैकड़ों लोगों को भेज देते हैं। नतीजा यह है कि एक वक्त पोस्टकार्ड की रफ्तार से जाने वाले संदेश अब पोस्टकार्ड पर पता लिखने जितनी देर में दुनिया के किसी भी कोने से जवाब भी ला देते हैं। लोग अपनी बात सोशल मीडिया पर पल भर में पोस्ट कर देते हैं, और जब तक उसके बारे में कोई सफाई देने की बात उन्हें सूझे, तब तक तो सैकड़ों लोग उसे आगे बढ़ा चुके रहते हैं, धिक्कार चुके रहते हैं। जब दुनिया में अपनी बात को फैलाना बिजली की रफ्तार से हो रहा है, तो लोगों को अपनी जुबान और उंगलियों को कुछ काबू में रखना चाहिए। खासकर उन लोगों को जो एक बड़े संगठन या संस्थान का हिस्सा हैं।

यह बात सिर्फ राजनीति के लोगों की नहीं है, जिंदगी के हर दायरे के लोगों पर यह लागू होती है। जो विकसित और सभ्य लोकतंत्र हैं, वहां किसी कंपनी के कर्मचारी अगर नफरती, हिंसक, नस्लभेदी बात पोस्ट करते मिलते हैं, तो कंपनियां पल भर में उन्हें निकाल बाहर करती हैं। यह एक अलग बात है कि हिन्दुस्तान जैसे देश में ऐसे लोग काफी लंबे समय तक खप जाते हैं, बच जाते हैं। कंगना रनौत को भाजपा में आने के बाद कई मौकों पर दिए गए ऊटपटांग बयानों के पहले यह सहूलियत हासिल थी कि वे पार्टी के किसी बड़े नेता या प्रवक्ता से अपनी सोच पर पार्टी का रूख समझ लेतीं। लेकिन उन्होंने इतनी जहमत नहीं उठाई। नतीजा यह हुआ कि एक महीने में शायद दूसरी-तीसरी बार पार्टी को यह सफाई देनी पड़ रही है कि कंगना की कही बातें उनकी अपनी शौच है, वह पार्टी की सोच नहीं है। सार्वजनिक जीवन के किसी भी व्यक्ति के लिए यह बड़ी शर्मिंदगी की बात रहनी चाहिए थी, और पहली सार्वजनिक झिडक़ी के बाद कंगना को यह काम अपने कमसमझ वाले दिल-दिमाग के भीतर ही करना था। लेकिन ऐसा लगता है कि वे किसी भी कीमत पर सार्वजनिक जीवन में एक अधिक बड़ी मौजूदगी दर्ज करवाना चाहती हैं। जिंदगी में टेक्नॉलॉजी के इस्तेमाल ने लोगों के फैसले लेने, काम करने, बात करने, इन सबकी रफ्तार सैकड़ों गुना तेज कर दी है, लेकिन टेक्नॉलॉजी की रफ्तार से इंसानी समझ का विकास नहीं हुआ है, उसमें कई और पीढिय़ां लग जाएंगी। ऐसे में बेवकूफी की बात अब मानो लाउडस्पीकरों पर गूंजती है, और फोन के मैसेंजरों से पल भर में दुनिया भर में पहुंच जाती है। लोगों को अपनी बेवकूफी की नुमाइश नहीं करना चाहिए, और बाकी लोगों में एक गलतफहमी बने रहने देना चाहिए।

अब यहां पर एक छोटी सी बात हमें परेशान करती है कि हरियाणा चुनाव के ठीक पहले जिस तरह से बृजभूषण शरण सिंह पहलवान लड़कियों को बदनाम करने और धमकाने में सार्वजनिक रूप से जुट गए थे, और भाजपा को उन्हें समझाईश देकर चुप कराना पड़ा था, कुछ वैसा ही कंगना भी बार-बार कर रही हैं। ऐसा लगता है कि सबसे बड़ी बन गई इस पार्टी को लीडरशिप-विकास की एक ट्रेनिंग अपने लोगों को देनी चाहिए, जिसमें कम से कम पार्टी की नीतियों को, और नेता-कार्यकर्ता को उसके अधिकार क्षेत्र को ठीक से समझाना चाहिए। अगर कंगना अगले कुछ महीनों में फिर अपने मुंह की खुजली दूर करते हुए कोई नाजायज और गैरजरूरी बयान देती हैं, तो इसमें उनकी गलती नहीं रहेगी, पार्टी की ही गलती रहेगी। किसी नेता के सिलसिलेवार गलत काम गलती नहीं रहते, वे गलत काम ही रहते हैं। और यह बात नेता के अलावा पार्टी पर भी लागू होती है।

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