संपादकीय
छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाकों में नक्सलियों का आत्मसमर्पण बरसों से सरकार का एक बड़ा अभियान रहा है। और अधिकारी इसे अपनी एक उपलब्धि बताते हैं कि उन्होंने कितने नक्सलियों का समर्पण करवाया। अब छत्तीसगढ़ सरकार नक्सल पुनर्वास की एक नीति बना रही है जिससे आकर्षित होकर और अधिक नक्सली हथियार छोड़ सकें। बरसों से पुलिस पर यह आरोप भी लगता है कि वह किसी को भी नक्सली बताकर उनका आत्मसमर्पण करवा देती है, उन्हें कुछ हजार रूपए मिल जाते हैं, और पुलिस मानकर चलती है कि गांव में भूतपूर्व नक्सली कहलाने पर भी कोई नुकसान नहीं होता है, इसलिए यह पुलिस-नीति खराब नहीं है। सरकारों में कभी लोग आदिवासियों के अधिकारों को लेकर संवेदनशील नहीं रहते हैं, इसलिए वे आदिवासियों के किसी अपमान की सोचे बिना, उनका ऐसा समर्पण करवाते चलते हैं। लेकिन आज इस मुद्दे पर चर्चा की एक वजह सामने आई कि नक्सलियों की आवाजाही वाले एक जिले बालोद में एसपी के पास पहुंचकर तीन लोगों ने अपने को एक माओवादी संगठन का सदस्य बताया, और आत्मसमर्पण की इच्छा जाहिर की। नक्सलियों के आत्मसमर्पण पर कोई सजा होती नहीं है, और कुछ रकम मिल जाती है, इसलिए वे फर्जी नक्सली बनकर सरेंडर कर रहे थे। पुलिस ने असलियत पता लगने पर इनके खिलाफ भी जुर्म दर्ज कर लिया है।
सरकार की किसी योजना का फायदा उठाने के लिए लोग किस हद तक चले जाते हैं, यह देखते ही बनता है। छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश दोनों जगहों पर सरकार की तरफ से लंबे समय से सामूहिक विवाह की योजना चल रही है जिसमें शादी करने वाले जोड़ों को सरकार की तरफ से बहुत सा घरेलू सामान भी तोहफे में मिलता है, और शायद कुछ रकम भी मिलती है। बहुत से ऐसे आयोजन रहते हैं जिनमें शामिल जोड़ों के बारे में पता लगता है कि वे पहले से शादीशुदा हैं, कुछ के तो बच्चे भी हैं, लेकिन सरकारी उपहार के चक्कर में वे एक बार फिर शादी के लिए खड़े हो जाते हैं। अभी कल-परसों ही किसी जगह की एक खबर थी कि एक जगह जमीन आबंटन में एक परिवार को एक भूखंड मिलना था। ऐसे में आठ शादीशुदा जोड़ों ने तुरंत तलाक की कार्रवाई पूरी की, और 16 भूखंड के हकदार बन गए। कुछ हफ्ते पहले राजस्थान का एक मामला सामने आया था कि वहां के एक इलाके में हजारों ऐसे नौजवान हैं जिन्होंने अपने आपको 70 या अधिक बरस का बताने वाले आधार कार्ड बनवा लिए हैं, और बरसों से वृद्धावस्था पेंशन ले रहे हैं। सरकार की किसी योजना का फायदा लेने के लिए हिन्दुस्तान के लोग किसी भी तरह का झूठा हलफनामा देने के लिए तैयार हो जाते हैं। ऐसे ही रंग-ढंग देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अभी दो दिन पहले ही यह कहा है कि मेडिकल कॉलेजों में देश के बाहर बसे हिन्दुस्तानियों के बच्चों के नाम पर शुरू किया गया एनआरआई कोटा खत्म किया जाए, क्योंकि इसका सिर्फ बेजा इस्तेमाल हो रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि किसी एनआरआई के दूर के रिश्तेदार को भी एनआरआई कोटे में दाखिला दिया जाना चाहिए जैसा कि पंजाब, हिमाचल, और यूपी करते आ रहे हैं।
अभी कुछ दिन पहले ही छत्तीसगढ़ की एक खबर छपी थी कि किस तरह एक गांव के बहुत सारे खानाबदोश परिवारों के लोगों से अपना अंतरंग संबंध बताते हुए किसी दूसरे प्रदेश के संपन्न लोग उनकी किडनी लेकर अपने मरीजों को लगवाने की कानूनी औपचारिकता पूरी कर रहे हैं। और उनसे अपना घरोबा जताने के लिए वे उनकी झोपडिय़ों में बैठकर, उनके साथ खाना खाते हुए फोटो भी खींचा रहे हैं ताकि उनसे किडनी लेने को जायज ठहराया जा सके। भारत में अंग प्रत्यारोपण को लेकर कानून बहुत कड़ा है, लेकिन उसे धोखा देने के तरीके उससे अधिक बड़े हैं। जब तक सरकार कानून बना पाती है, तब तक जुर्म करने वाले लोग उसमें छेद ढूंढकर उसे चौड़ा करना शुरू कर देते हैं ताकि बिना सांस खींचे उसमें से निकल सकें। हर दिन कितने ही मामले छपते हैं जिनमें लोग धोखाधड़ी करके किसी जमीन को खरीद-बेच लेते हैं, और यह धोखा सिर्फ निजी जमीन को लेकर नहीं होता, अच्छे-खासे धर्मालु और आस्थावान लोग रात-दिन इस फेर में रहते हैं कि कैसे किसी मठ-मंदिर की जमीन, कैसे किसी गौशाला की जमीन को हड़पा जाए। इसमें बड़े-बड़े तथाकथित और स्वघोषित समाजसेवी और दानदाता भी रहते हैं, जो साल में एक बार गाय को चारा देते हुए फोटो खिंचवाते हैं, और उसके बाद 364 दिन गाय या अनाथ बच्चों के हक को लूटने की साजिश में जुटे रहते हैं।
कुल मिलाकर हिन्दुस्तान के लोगों का चरित्र ऐसा है कि ट्रेन टिकट में रियायत पाने के लिए लोग एक वक्त किसी स्वतंत्रता सेनानी को लेकर चलते थे ताकि उसके सहयोगी बनकर मुफ्त में या बहुत रियायत में सफर कर सकें। कई लोगों ने ऐसे स्वतंत्रता सेनानियों को सफर के सामान की तरह इस्तेमाल करना शुरू कर दिया था। रियायती या मुफ्त राशन पाने के लिए, अस्पताल में मुफ्त इलाज के लिए, अधिकतर लोग फर्जी आय प्रमाणपत्र बनवाने को बुरा नहीं मानते। कई संपन्न परिवार गरीबों वाला राशन कार्ड बनवाकर उसका अनाज अपने घरेलू कामगारों को दिलवाकर उन्हें कम मजदूरी देने की योजना भी बनाकर चलते हैं। यह देश अपने लोगों की ऐसी नीयत की वजह से दुनिया भर में बदनाम है कि यहां के लोग, कम से कम इस देश में रहते हुए, बुनियादी तौर पर बेईमान हैं। और बहुत से लोग इसलिए अभी तक बेईमान साबित नहीं हुए हैं कि वे इतने गरीब और कमजोर हैं कि उनको बेईमानी करने का मौका भी नहीं मिलता है। अब जो लोग करोड़पति हैं, वे लोग भी किसी जमीन की खरीदी-बिक्री में पैसे बचाने के लिए रिहायशी जमीन का भूउपयोग कृषि करवा लेते हैं, और फिर कम रेट की रजिस्ट्री करवाकर उसका फिर रिहायशी या कारोबारी इस्तेमाल करते हैं।
जिस भारत को अपनी संस्कृति, और अपने इतिहास पर इतना गर्व है, जिसमें राष्ट्रवाद को एकदम धारदार और हमलावर बनाकर रखा गया है, उस भारत में लोगों की रोजाना की सोच इस कदर भ्रष्ट और बेईमान कैसे है, इसके बारे में सोचना चाहिए। यहां लोग महंगी होटल में ठहरते ही सबसे पहले यह देखने लगते हैं कि वहां से क्या-क्या सामान चुराकर घर ले जाया जा सकता है, इस खतरनाक लत से छुटकारा इसलिए पाना चाहिए कि बहुत से हिन्दुस्तानी दूसरे देशों में सैलानी बनकर जाते हैं, और किसी होटल या सुपर बाजार में चोर की तरह पकड़ाते हैं। न पकड़ाने वाले लोग अपने दोस्तों के बीच फख्र से बताते हैं कि वे कहां-कहां से क्या-क्या चुरा लाए, कहां-कहां बच्चों की उम्र कम बताकर कौन सी बचत कर ली, और किस-किस तरह से कोई दूसरी बेईमानी कर ली।
हिन्दुस्तानी लोगों को अपनी सोच के बारे में आत्ममंथन करना चाहिए कि उन्हें ईमानदारी छू क्यों नहीं गई है? यह भी समझना चाहिए कि छोटी-छोटी बातों में परले दर्जे की बेईमानी इस देश में तो चल सकती है, दुनिया के सभ्य देशों में जाने पर ऐसे लोग कैसे-कैसे खतरे में पड़ते हैं।