संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : नकली का सिलसिला यहां तक, खुली नकली एसबीआई ब्रांच!
29-Sep-2024 12:42 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : नकली का सिलसिला यहां तक, खुली नकली एसबीआई ब्रांच!

तस्वीर / ‘छत्तीसगढ़’

पिछले कुछ बरसों में लगातार हिन्दुस्तान में साइबर-फ्रॉड बढ़ते चल रहा है। मोबाइल फोन पर लोगों को ठगना, जालसाजी में उलझाना, बदनामी का डर दिखाकर ब्लैकमेल करना तो बढ़ते चल ही रहा है, इतने किस्म की धोखेबाजी चल रही है कि जांच करने वाली एजेंसियां शायद किसी नई तरकीब से हजारों जुर्म हो जाने के बाद ही उसकी कल्पना कर पाती होंगी। झारखंड का जामताड़ा ऐसा बदनाम हुआ कि वहां के मानो हर बेरोजगार को मोबाइल फोन से धोखाधड़ी करने, और लोगों को ठगने में महारथ हासिल हो गई थी। इस पर किसी बड़ी मनोरंजन कंपनी ने फिल्म या सीरियल भी बनाया है। लेकिन मामला यहां से बहुत आगे बढ़ गया है, और अब देश में ऐसे बहुत से कस्बे और शहर हो गए हैं जहां पर लोग साइबर और ऑनलाईन धोखाधड़ी के एक्सपर्ट हो गए हैं। वॉट्सऐप पर शेयर में पूंजीनिवेश का झांसा देकर लोगों से करोड़ों रूपए ठग लिए जा रहे हैं, तो कहीं क्रिप्टोकरेंसी से कमाई का बड़ा लुभावना धोखा दिया जा रहा है, और लोग पूरी जिंदगी की कमाई इसमें झोंक दे रहे हैं। एक और बहुत लोकप्रिय तकनीक लोगों को अश्लील और नग्न वीडियो कॉल में उलझाकर उनको ब्लैकमेल करने की है।

अब अगर देखें तो ऐसा लगता है कि हिन्दुस्तान किसी को गोली मारकर, या बंदूक की नोंक पर लूटने से आगे निकल गया है। अब लुटेरे मुंह पर कपड़ा बांधकर, चाकू-छुरा दिखाकर लूटने से बहुत आगे बढ़ चुके हैं। और अब मोबाइल फोन और ऑनलाईन पर बैंकों या भुगतान के किसी और तरीके का इस्तेमाल करते हुए लोगों को ठगा और लूटा जा रहा है। हमने कुछ अरसा पहले इस बारे में रक्तहीन-अपराध बढ़ते जाने की बात कही थी। अब कल छत्तीसगढ़ के एक गांव में ठगों ने एसबीआई की एक नकली ब्रांच ही खोल दी। भारतीय स्टेट बैंक का बोर्ड लग गया, लोग भीतर बैठकर काम भी करने लगे। धोखेबाजी के मुखिया, और इस नकली ब्रांच के मैनेजर बनकर बैठे पंकज पांडेय नाम के आदमी के खिलाफ जुर्म भी दर्ज कर लिया गया, जिसने बाकी कर्मचारियों को नौकरी देकर ‘बैंक-कर्मचारी’ बना दिया था। हफ्ते भर से यह ब्रांच खुल रही थी, लोग बैठ रहे थे, और खुशी-खुशी वहां पहुंचने वाले लोगों को कहा जा रहा था कि सर्वर चालू होते ही काम शुरू हो जाएगा। देश में कुछ और जगहों पर हाल के बरसों में स्टेट बैंक की नकली ब्रांच खुल चुकी हैं, लेकिन यह छत्तीसगढ़ में ऐसा पहला कारनामा था। बाद में इसकी चर्चा सुनाई पडऩे पर एसबीआई के अफसरों ने आकर जांच-पड़ताल की, और पुलिस में रिपोर्ट की। इस मामले से एक बहुत पुरानी हिन्दी फिल्म याद पड़ती है जिसमें डकैतों के हमले में पुलिस मारी जाती है, और एक फरार मुजरिम  धर्मेन्द्र किसी गांव-कस्बे में पहुंचकर एक फर्जी थाना खोल देता है। अब एसबीआई की नकली ब्रांच खुलने लगी हैं। इसे लेकर एक मजाक की बात यह हो सकती है कि लोगों को एसबीआई की इस ब्रांच के नकली होने का शक तब हुआ, जब नए-नए नियुक्त किए गए फर्जी कर्मचारियों ने लंच के घंटों में भी काम जारी रखा। यह तो भला हुआ कि इस धोखाधड़ी में लोगों के लुटने के पहले ही इसे पकड़ लिया गया, वरना आम लोग तो किसी बेहिसाब कमाई के झांसे में जिंदगी भर की मेहनत की कमाई को झोंक देने में पल भर भी नहीं लगाते।

हिन्दुस्तान के लोग तरह-तरह की चिटफंड कंपनियों में झोंक दी गई अपनी बचत के जख्मों से तो उबर नहीं पाए हैं, और दूसरी तरफ वे नए झांसों में फंसने के लिए उतावले बैठे रहते हैं। ऐसी धोखाधड़ी, और ठगी की खबरें तो आती हैं, लेकिन मोटी कमाई का सुनहरा झांसा लोगों को इन्हें अनदेखा करके दांव लगा देने का एक अजीब सा उत्साह और हौसला दे देता है। हमारा ख्याल है कि सरकार को बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान चलाना चाहिए क्योंकि एक तो हर जुर्म की जांच सरकार के मत्थे आती है, दूसरी बात यह भी कि जालसाजों के हाथ बड़ी रकम पहुंच जाने पर वह जुर्म की दुनिया के हाथ मजबूत करती है। फिर इस सिलसिले से न तो सरकार को कोई टैक्स मिलता, और न ही जुर्म की रकम आसानी से देश की अर्थव्यवस्था में लौटती। देश के बेकसूर नागरिकों की बचत इस तरह लुट जाने से उनकी जिंदगी भी तबाह होती है। इसलिए सरकारों को बहुत बड़े पैमाने पर लोगों को जागरूक करने का अभियान छेडऩा चाहिए। अब तो वॉट्सऐप और सोशल मीडिया जैसे मुफ्त के माध्यम सरकार या हर किसी को हासिल हैं, और ऐसे हर जुर्म की खबरों का वहां प्रचार हो सकता है। अभी पुलिस अपने नजरिए से प्रेसनोट बनाकर जारी करती है, लेकिन आम लोगों को जिन तरीकों से खतरा समझ में आ सकता है, वह एक अलग पेशेवर तरीका होता है, और सरकारों को जागरूकता के वैसे वीडियो बनाकर फैलाने चाहिए।

दूसरी तरफ समाज के भीतर भी धर्म, जाति, इलाके, पेशे, या शौक से जुड़े हुए जितने किस्म के संगठन हैं, उन्हें भी अपने लोगों को बचाने के लिए जागरूकता के कार्यक्रम चलाने चाहिए। इसके बिना बचने का कोई जरिया नहीं है, क्योंकि जालसाज और ठग हर पल कोशिश में लगे रहते हैं, और अपनी हर कामयाबी के बाद उनका उत्साह भी बढ़ता है, और वे जुर्म को और अधिक बड़े पैमाने पर ले जाते हैं। भारत सरकार को भी इस बारे में सोचना चाहिए कि वह संचार साधनों पर अपने काबू का इस्तेमाल करके कैसे इन मुजरिमों पर रोक लगा सकती है, उसके स्तर पर रोकथाम और बचाव अधिक आसान है, और उसे ही इसके साथ-साथ जागरूकता की भी पहल करनी चाहिए।

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