विचार / लेख
-डॉ. आर.के. पालीवाल
जब से मोबाइल और इन्टरनेट सबके हाथ में आया है तब से अन्य नई तकनीकों की तुलना में इस तकनीक का दुरुपयोग बहुत तेजी से हुआ है। संगठित गिरोह और आतंकवादी संगठनों के नेटवर्क और चाइल्ड पोर्नोग्राफी सहित अश्लीलता के विविध गोरख धंधों से जुड़े लोगों के लिए तो इंटरनेट ने मानो कमाई का सिमसिम खोल दिया है। ज्यादातर यूरोपीय देशों और अमेरिका में उन चीज़ों को अश्लील मानकर प्रतिबंधित नहीं किया जाता जिन्हें भारतीय सभ्यता और संस्कृति फूहड़ और अश्लील मानती है। यही कारण है कि इन्टरनेट के अधिकांश सर्वर विदेशों में होने के कारण इस पर उपलब्ध सामग्री को प्रतिबंधित करना आसान नहीं है। इधर केंद्र सरकार और प्रदेश सरकारों की तमाम घोषणाओं और कड़े कानूनों के बावजूद बच्चों और उनमें भी विशेष रूप से बच्चियों के साथ यौन शौषण और यौन अपराधों में बाढ़ सी आई है जो सभ्य समाज के लिए अत्यंत शर्मनाक और चिंतनीय है।
देश के अन्य क्षेत्रों की तरह मध्य प्रदेश में भी बच्चियों और महिलाओं के साथ जघन्य यौन अपराधों की कई घटनाओं ने महिलाओं और उनसे भी अधिक अबोध बच्चियों की सुरक्षा पर बड़ा प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया है। इन घटनाओं का और भी दुखद और शर्मनाक पहलू यह है कि इनमें यौन बर्बरता के बाद हत्याओं को अंजाम दिया गया है और ये घटनाएं प्रतिष्ठित स्कूलों और राजधानी भोपाल की कालोनियों तक में घटित हुई हैं। बच्चों के साथ घटने वाली इन घटनाओं में संबंधित संस्थान के कर्मचारियों और कॉलोनीवासियों की संलिप्तता हमारे पूरे परिवेश को संदिग्ध बना देती है। ऐसा प्रतीत होता है कि बच्चियों और महिलाओं के लिए कालोनी से लेकर सफर और स्कूल, कॉलेज , और कोचिंग संस्थान आदि कुछ भी सुरक्षित नहीं है। सुबह के अखबार में इन घटनाओं के जो विवरण प्रकाशित होते हैं उनसे ऐसा लगता है जैसे हमारे समाज में वहशीपन तमाम हदें पार कर चुका है। इन परिस्थितियों से निबटने के लिए निश्चित रूप से पुलिस और कानून का अहम रोल है लेकिन समाज की इस सडऩ को रोकने के लिए केवल पुलिस, कानून और न्याय व्यवस्था सक्षम नहीं है। इसके लिए शिक्षा से लेकर घर परिवार और सभी प्रतिष्ठानों को निरंतर व्यापक सुधार और जन जागरूकता अभियान चलाने की आवश्यकता है।
समाज में घट रहे इन जघन्य अपराधों को कम करने में चाइल्ड पोर्नोग्राफी पर आए सर्वोच्च न्यायालय के ताजा निर्णय का भी सकारात्मक प्रभाव होगा। मद्रास न्यायालय ने चाइल्ड पोर्नोग्राफी की फोटो और वीडियो मोबाइल और कंप्यूटर आदि में रखने को अपराध नहीं माना था। सर्वोच्च न्यायालय ने इस फैसले को पलटते हुए कहा है कि अपने पास ऐसे क्लिप रखना भी अपराध की श्रेणी में आता है।
यदि किसी को अज्ञात स्रोत से इस तरह की कोई क्लिप मिलती है तो उन्हें उसे तुरंत हटाना चाहिए और उसके स्रोत की सूचना पुलिस को भी देनी चाहिए ताकि इन्हें प्रचारित प्रसारित करने वालों पर कड़ी कार्यवाही हो सके। बहुत से मनोवैज्ञानिक यह मानते हैं कि बच्चों से जुडे यौन शौषण के अपराध इसलिए होते हैं क्योंकि बच्चों को आसानी से बहकाया जा सकता है। वे ज्यादा प्रतिरोध करने की स्थिति में नहीं होते इसीलिए उन्हें निशाना बनाना सरल है। इन अपराधों की बढ़ती संख्याओं ने बच्चों के अभिभावकों की चिंता इतनी बढ़ा दी है कि जब तक बच्चे स्कूल कोचिंग से वापस नहीं आ जाते उनके प्राण किसी अनहोनी की आशंका में अटके रहते हैं। लोग बच्चों को खेलने के लिए आसपास के पार्क में भेजने से भी डरते हैं जिसका प्रतिकूल प्रभाव बच्चों के विकास पर भी पड़ रहा है। उम्मीद की जानी चाहिए कि सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय से चाइल्ड पोर्नोग्राफी पर जरूर अंकुश लगेगा।