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उत्तर प्रदेश के एक दलित परिवार से आने वाले अतुल कुमार का आईआईटी में पढ़ने का सपना दाखिला फीस समय पर ना भर पाने के कारण टूट गया था. लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद उनका सपना साकार होने जा रहा है.
18 साल के अतुल कुमार का आईआईटी में पढ़ने का सपना 17,500 रुपये की दाखिला फीस समय पर ना भर पाने के कारण टूट गया था. अतुल ने आईआईटी जेईई 2024 की परीक्षा में अनुसूचित जाति श्रेणी में 1,455 रैंक हासिल किया था.
इस रैंक पर उन्हें आईआईटी धनबाद के इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग में सीट मिल गई. लेकिन अतुल के पिता फीस भरने की आखिरी तारीख तक पूरे पैसों का इंतजाम नहीं कर पाए. वह दिहाड़ी मजदूर हैं और दिन भर में मात्र 450 रुपए कमा पाते हैं. हालांकि अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अतुल कुमार आईआईटी धनबाद में पढ़ पाएंगे.
क्यों नहीं मिला था दाखिला
दरअसल, जेईई परीक्षा में सीट आबंटित होने पर विद्यार्थियों को तय समयसीमा के भीतर फीस जमा करके अपना दाखिला सुनिश्चित करना होता है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका के मुताबिक, अतुल कुमार समयसीमा के भीतर फीस नहीं भर पाए और कुछ मिनटों के अंतर से चूक गए. ऐसे में उन्हें सीट नहीं मिली.
लेकिन अतुल ने अपने सपने का पीछा नहीं छोड़ा. उन्होंने पहले राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग का दरवाजा खटखटाया. साथ ही झारखंड कानूनी सेवा प्राधिकरण से भी मदद की गुहार की.
लेकिन अतुल ने अपने सपने का पीछा नहीं छोड़ा. उन्होंने पहले राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग का दरवाजा खटखटाया. साथ ही झारखंड कानूनी सेवा प्राधिकरण से भी मदद की गुहार की.
वहां से उन्हें इस साल जेईई परीक्षा करवाने वाले संस्थान मद्रास हाई कोर्ट जाने की सलाह मिली. हाईकोर्ट ने इसे अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर का मामला बताया. फिर अतुल ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया.
सुप्रीम कोर्ट ने अतुल को निराश नहीं किया. "कुछ मामले ऐसे होते हैं जिनमें हम कानून को थोड़ा किनारे रख देते हैं." यह कहते हुए मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पर्दीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने आईआईटी धनबाद को आदेश दिया कि वह नई सीट बनाकर अतुल को दाखिला दे.
क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने
पीठ ने इस आदेश में संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट को दी गई विशेष शक्ति का इस्तेमाल किया. पीठ ने कहा, "हम इतने प्रतिभावान युवा लड़के को जाने नहीं दे सकते." सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के कई वकीलों ने अतुल की फीस देने का भी प्रस्ताव दिया.
दरअसल अनुच्छेद 142 संविधान में एक ऐसा प्रावधान है जो सुप्रीम कोर्ट "पूर्ण न्याय" करने के लिए आदेश देने की शक्ति देता है. इसका इस्तेमाल पूर्व में सुप्रीम कोर्ट ने कई तरह के मामलों में किया है.
2021 में इसी तरह के एक मामले में मुख्य न्यायाधीश के ही नेतृत्व वाली एक पीठ ने एक अन्य दलित छात्र प्रिंस जसबीर सिंह की मदद की थी. सिंह ने आईआटी बॉम्बे में दाखिला फीस भरने में देर कर दी थी, लेकिन अदालत के आदेश पर उन्हें दाखिला मिल गया था.
अतुल के मामले में फैसला देने के बाद मुख्य न्यायाधीश ने खुद उनसे बात की और कहा, "ऑल द बेस्ट. अच्छा करिए." इंडियन एक्सप्रेस वेबसाइट के मुताबिक, अतुल के दो बड़े भाई भी इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे हैं.
एक भाई एनआईटी हमीरपुर का छात्र है और दूसरा आईआईटी खड़गपुर का. अतुल का तीसरा भाई मुजफ्फरनगर के श्री कुंद कुंद जैन इंटर कॉलेज से हिंदी की पढ़ाई कर रहा है.
सीके/आरएस