विचार / लेख
-डॉ. आर.के. पालीवाल
निहित स्वार्थी और कट्टरपंथी तत्व गांधी के समय भी उनके उदार और समावेशी विचारों और उनकी लोकप्रियता से परेशान होकर जब तब उन पर तरह तरह के आरोप लगाते रहते थे जिनमें कई संस्थाओं, यथा मुस्लिम लीग और हिंदू महासभा एवं आर एस एस से जुड़े कुछ लोग, वामपंथी और डॉ अम्बेडकर आदि प्रमुख थे। ऐसा करने वाले काफी लोग अंग्रेज सरकार से विविध लाभ के पद आदि भी लेते थे। उन दिनों भी गांधी के चरित्र और व्यक्तित्व पर फूहड़ता की हद छूते उस तरह के लांछन नहीं लगते थे जिस तरह की कीचड़ इधर पिछले कुछ सालों में सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्म पर एक नियोजित षडय़ंत्र की तरह फैलाई जा रही है। यह विडंबना देखिए कि जैसे-जैसे गांधी की छवि वैश्विक पटल पर दिन ब दिन मजबूत होकर और ज्यादा निखरती जा रही है जिसकी एक झलक संयुक्त राष्ट्र संघ ने उनके जन्मदिन को अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाने की घोषणा कर और अपने परिसर में उनकी मूर्ति स्थापित कर विश्व को दिखाई है, ऐसे समय में हमारे अपने देश में उस महामानव को बौना साबित करने के कुत्सित प्रयास किए जा रहे हैं।
गांधी के ऊंचे कद से परेशान चंद लोगों के समूह तीन तरह से गांधी के व्यक्तित्व को कमतर करने की कोशिश करते हैं। 1. कुछ उन्हें सीधे सीधे पाकिस्तान बनवाकर देश को खंडित कराने का मुख्य आरोपी बताकर उन्हें राष्ट्रदोही तक बताने की मूर्खता और धूर्तता करते हैं। 2. गांधी की छवि धूमिल करने वाले लोगों की दूसरी जमात गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को राष्ट्रभक्त बताकर गांधी को अप्रत्यक्ष रूप से अपराधी साबित करने का दुष्प्रचार करती है। 3. तीसरी श्रेणी उन लोगों की है जो गांधी को एक तरफ कर उनकी जगह उनके किसी अनुयाई यथा सरदार वल्लभ भाई पटेल, नेताजी सुभाषचंद्र बोस या सरदार भगत सिंह और डॉ अम्बेडकर आदि को गांधी के स्थान पर प्रतिष्ठित करने की कोशिश करते हैं। दुर्भाग्य से ऐसे लोगों में कुछ सांसद/पूर्व सांसद, मंत्री और पूर्व नौकरशाह एवं खुद को प्रबुद्ध कहने वाले लोग भी शामिल हैं। ऐसे तमाम लोगों में एक छोटा लेकिन बड़ा शातिर वर्ग उन लोगों का है जो गांधी के खिलाफ इधर-उधर से छिटपुट कोई ऐसी अधकचरी जानकारी निकालकर उसका तिल का ताड़ बनाकर अतिशयोक्ति और आधा सच आधा झूठ मिश्रित कर विभिन्न संचार माध्यमों से प्रचारित प्रसारित करते हैं, जिन्हें आजकल व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के हास्यास्पद नाम से जाना जाता है। देश का एक अर्धशिक्षित वर्ग इधर-उधर से उठाकर लगातार व्हाट्स ऐप, फेसबुक और ट्विटर आदि पर परोसी गई सूचनाओं को सही मानकर अज्ञानता के चलते इन पर विश्वास करने लगता है। अमेरिका और यूरोप के देश अपने देश की विभूतियों और लेखकों आदि का बेहद सम्मान करते हैं लेकिन हम गुलाम मानसिकता के एशियाई नागरिक अपनी विभूतियों को भी अपमानित करने की धृष्टता से बाज नहीं आते। अभी हाल ही में जिस तरह से बंगलादेश में अपने राष्ट्रपिता शेख मुजीबुर्रहमान की मूर्तियों को तोड़ा फोड़ा गया है वह भी ऐसा ही दुर्भाग्यजनक है जैसे हमारे यहां कुछ लोग अपने राष्ट्रपिता के खिलाफ उलजुलूल बयानबाजी से करते हैं। ज़्यादा दुख तो तब होता है जब कुछ डॉक्टर्स , इंजीनियर्स और अध्यापकों के व्हाट्सएप समूह में इस तरह की घटिया सामग्री फॉरवर्ड की जाती है। सबसे ज्यादा खतरनाक वे लोग हैं जो इस प्रकार की अफवाहें कच्चे घड़े जैसे कोमल मन के युवाओं के समूह में प्रचारित प्रसारित करते हैं। आतंकवादी और संगठित अपराधी भी अपने नकारात्मक उद्देश्यों से घृणा और नफरत फैलाने के लिए इसी तरह के साधनों का दुरुपयोग करते हैं।
जब गांधी जीवित थे तब वे अपने ऊपर लगने वाले हर आरोप का तर्क सहित उत्तर देकर उसे अपनी प्रार्थना सभाओं और अखबारों में लिखे लेखों के माध्यम से जनता तक पहुंचाने का हर संभव प्रयास करते थे। अब जब गांधी हमारे बीच उपस्थित नहीं हैं तब उनकी अनुपस्थिति में सरकार और गांधी को अपना आदर्श मानने वाले असंख्य नागरिकों का कर्तव्य बन जाता है कि ऐसे दुर्भावनाग्रस्त आरोप लगाने वाले नकारात्मक तत्वों पर लगाम लगाने के लिए हर संभव प्रयास किया जाए। एक तरफ कानून बनाकर भी इस समस्या को काफी हद तक रोका जा सकता है, इसलिए हम सबको केंद्र सरकार से यह मांग करनी चाहिए कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के बारे में गलत आरोप लगाने वाले तत्वों और ऐसी सूचनाओं को अन्य लोगों में किसी भी माध्यम से प्रचारित प्रसारित करने को अपराध की श्रेणी में रखा जाना चाहिए। साथ ही गांधी वांग्मय का अध्ययन किए प्रबुद्ध जनों और गांधी विचार में आस्था रखने वाले नागरिकों को अपने अपने कार्य क्षेत्र के दायरे में गांधी के व्यक्तित्व और विचारों को सरल भाषा में ले जाना चाहिए ताकि लोग गलत आरोप लगाने वालों से गुमराह न हों।
दसेक साल पहले जब गांधी के व्यक्तित्व पर कीचड़ उछालने के अभियान ने जोर पकड़ा था तब मैं सोचता था कि किस तरह गांधी पर हो रहे निर्मम हमलों का जवाब दिया जाए। मेरे कुछ गांधीवादी अग्रज भी मुझसे कहते थे कि लेखक होने के नाते आपको इन हमलों के जवाब के लिए कुछ लिखना चाहिए। इसी पृष्ठभूमि में मेरा नाटक ‘गांधी की चार्जशीट’ लिखा गया था जिसमें गांधी पर लगाए जा रहे उन तमाम आरोपों का जवाब देश की सर्वोच्च अदालत में खुद गांधी द्वारा दिलवाया गया है। इस नाटक के माध्यम से जनता में गांधी के बारे मे फैलाई गई भ्रांतियों को दूर करने का साहित्यिक प्रयास किया गया है जिसमें गांधी बाइज्जत बरी होते हैं। गांधी को अपने जीवन में भी कई मुकदमों का सामना करना पड़ा था और हर मुकदमे के बाद गांधी और ज्यादा मजबूत होकर बाहर आए थे। इस नाटक को कई संस्था जगह-जगह मंचित कर रही हैं। उनका कहना है कि नाटक देखने के बाद दर्शक गांधी के व्यक्तित्व से और गहरे से जुड़ते हैं क्योंकि नाटक में उन्हें उन आरोपों के झूठ होने की तथ्यात्मक जानकारी मिलती है। गांधी के जीवन और विचारों को इसी तरह विभिन्न माध्यमों से जनता और उसमें भी विशेष रूप से स्कूल कॉलेज के विद्यार्थियों तक पहुंचाने के हर संभव प्रयास किए जाने चाहिए।
गांधी भारतीय सभ्यता और संस्कृति के ऐसे महानायक हैं जिनके व्यक्तित्व और रचनात्मक कार्यों पर हर भारतीय नागरिक को गौरव की अनुभूति होनी चाहिए। यह तभी संभव है जब गांधी विचार स्कूली शिक्षा में शामिल कर बच्चों को रुचिकर तरीके से पढ़ाया जाए, मीडिया गांधी को उनकी जन्म तिथि और पुण्यतिथि तक सीमित न रखे और गांधी से जुड़ी देश-विदेश की तमाम घटनाओं, यथा दांडी मार्च, गोलमेज सम्मेलन, पुणे समझौता, सत्याग्रह आंदोलन और अंग्रेजों भारत छोड़ो जैसे आंदोलनों को समय समय पर प्रमुखता से याद करता रहे ताकि गांधी विचारों से आम अवाम का तारतम्य बना रहे। गांधी हमारी ऐसी विरासत हैं जिसे सहेजकर रखना हमारे लिए बेहद जरूरी है।