विचार / लेख
-डॉ. आर.के. पालीवाल
आध्यात्मिकता भारतीय संस्कृति के साथ इतनी महीनता से रची गुंथी है कि वह नागरिकों के डी एन ए और खून में भी रच बस गई है। दुर्भाग्य से हम भारतीय इसी वजह से आए दिन नए नए बाबाओं और धर्मगुरुओं के मायाजाल में इस तरह फंस जाते हैं कि इससे बाहर निकलना टेढ़ी खीर हो गया। यही कारण है कि हर दौर में जब किसी पुराने बाबा की गद्दी हिलती है या जब उसकी पोल पट्टी खुलती है तो खाली स्थान भरने के लिए कोई नया बाबा या धर्मगुरु प्रकट हो जाता है। इन तमाम धर्मगुरुओं की नजर दो तीन तरह के लोगों पर सबसे ज्यादा टिकती है, कोई बड़ा नेता, जो इनके फाइव स्टार सुविधाओं से युक्त लंबे चौड़े आश्रम के लिए कोई भूखंड सस्ते में दिलाने या सरकारी जमीन पर कब्जा कराने में मदद कर सके, कुछ अमीर उद्योगपति और व्यापारी जो अपने धंधे की नेटवर्किंग के बदले इन्हें भव्य आश्रम निर्माण के लिए करोड़ों का चंदा दे सके और कोई फिल्मी सितारा जो इनके आकर्षण में चार चांद लगाने में मदद कर सके।
इसी प्रक्रिया को अपनाकर आजाद भारत में धीरेन्द्र ब्रह्मचारी, ओशो, चंद्रा स्वामी, आशाराम बापू और राम रहीम आदि ने बहुत सालों तक आध्यात्मिक चोला ओढक़र राज किया है और जैसे ही विवादों में उलझकर इनका सूर्यास्त हुआ खाली जगह भरने के लिए कोई नया बाबा आ जाता है। यह स्थिति तो राष्ट्रीय स्तर के बाबाओं और धर्मगुरुओं की है, स्थानीय स्तर पर भी विभिन्न इलाकों में धीरेन्द्र शास्त्री और प्रदीप मिश्रा जैसे न जाने कितने बाबा, कथावाचक और धर्मगुरु होते रहे हैं जिनकी पहुंच भाषाई अवरोध और क्षमता की सीमा के चलते राष्ट्रीय स्तर पर नहीं पहुंच पाती।
इधर नए बाबाओं की एक ऐसी खेप भी तैयार हुई है जो संस्कृत और हिंदी जैसी पुरानी और क्षेत्र विशेष तक सीमित भाषाओं के साथ अंग्रेजी भाषा के माध्यम से पूरे देश के पढ़े लिखे नौजवानों और विदेशियों को भी आकर्षित कर सकते हैं। ऐसे दो सबसे चर्चित धर्मगुरु जिन्होंने दक्षिण भारत से अपनी शुरूआत की श्री श्री रवि शंकर और जग्गी वासुदेव हैं। इन्होंने क्रमश: बैंगलौर और कोयंबतूर को अपना मुख्यालय बनाकर देश और देश के बाहर अपने प्रशंसकों की बड़ी फौज तैयार की है। रवि शंकर के परिचितों में अक्सर कई देशों के राष्ट्रध्यक्ष की फोटो प्रचारित की जाती है। उसी तरह से जग्गी वासुदेव अपने साथ प्रधानमंत्री मोदी का नाम जोड़ते हैं। इन संतों को सीकरी (दिल्ली) की गद्दी से बड़ा प्रेम है।रवि शंकर अपने आध्यात्मिक साम्राज्य का उत्साही अंतरराष्ट्रीय विस्तार करने में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के शिकंजे में फंस गए थे जब उन्होंने दिल्ली की दम तोड़ती यमुना के पर्यावरण की दृष्टि से अतिसंवेदनशील क्षेत्र को नुकसान पहुंचाया था।
आजकल जग्गी वासुदेव मद्रास उच्च न्यायालय में एक मामले में घिरे हैं। अखबार की रिपोर्ट्स के अनुसार उनके कोयंबतूर स्थिति आश्रम पर पुलिस ने छापा मारा है हालांकि उनके आश्रम के सूत्र कहते हैं कि पुलिस वहां समान्य जानकारी के लिए आई थी। ताजा विवाद का कारण एक बुजुर्ग व्यक्ति का यह आरोप है कि जग्गी वासुदेव ने अपनी बेटी की तो शादी कर दी लेकिन वे अन्य युवाओं और युवतियों को सन्यासी बनाने के लिए उनका ब्रेनवाश करते हैं। उन्होंने उनकी दो बेटियों का इसी तरह ब्रेनवाश कर आश्रम में रखा है। संभवत: उन्हीं युवतियों की खोज में पुलिस आश्रम में आई थी। वर्तमान समय में जग्गी वासुदेव केवल दक्षिण भारत में ही नहीं बल्कि पूरे देश में चर्चित हैं और विदेशों में भी उनके काफी अनुयाई हैं। वे फर्राटे से अंग्रेजी, हिंदी और दक्षिण भारत की कुछ भाषाएं बोलते हैं। उनके शिष्यों में काफी उच्च शिक्षा प्राप्त युवक और युवतियां भी हैं। प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण के लिए भी उनके प्रयास का प्रचार होता है। वे पुराने जमाने की सादगी वाली आध्यात्मिकता के बजाय तामझाम वाले गुरु हैं जिनकी वेशभूषा और आश्रम से किसी प्राकृतिक महंगे रिसॉर्ट जैसा अहसास होता है। अब इस मामले को मद्रास उच्च न्यायालय से सर्वोच्च न्यायालय ने अपने पास ले लिया, देखते हैं उसमें क्या निर्णय आता है!