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‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बिलासपुर, 8 अक्टूबर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने आयकर अधिनियम 1961 की धारा 144 के तहत किसी करदाता के खिलाफ एकपक्षीय मूल्यांकन को सही ठहराया है। यह फैसला उस करदाता के खिलाफ लिया गया जिसने न तो मूल्यांकन कार्यवाही में भाग लिया और न ही अपने बैंक खाते में जमा 11 लाख 44 हजार 070 की नकद राशि के स्रोत की संतोषजनक व्याख्या की।
जस्टिस संजय के अग्रवाल और जस्टिस अमितेंद्र किशोर प्रसाद की पीठ ने कहा कि आयकर अधिनियम की धारा 68 और 69ए के अनुसार यदि कोई करदाता अस्पष्टीकृत नकदी जमा के लिए संतोषजनक स्पष्टीकरण नहीं देता है तो उस राशि को कर योग्य आय के रूप में माना जा सकता है। मामले में करदाता को कई बार नोटिस भेजे गए, परंतु उसने किसी नोटिस का जवाब नहीं दिया और न ही अधिकारियों के सामने पेश हुआ, जिसके कारण यह एकपक्षीय मूल्यांकन हुआ।
मूल्यांकन अधिकारी, आयकर आयुक्त (अपील), और आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण (आईटीएटी) ने करदाता के खिलाफ फैसला सुनाया, क्योंकि वह अपने दावे को ठोस दस्तावेजी साक्ष्यों से प्रमाणित करने में असमर्थ रहा। करदाता ने आईटीएटी के इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी लेकिन न्यायालय ने आईटीएटी के फैसले की पुष्टि की। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि नकद जमा की स्पष्ट व्याख्या करने में करदाता की विफलता के कारण इसे आय के रूप में माना जा सकता है।
जस्टिस अग्रवाल द्वारा लिखित निर्णय में कहा गया है- "यदि करदाता अपने खाते में पाई गई जमा राशि के स्रोत और प्रकृति के बारे में संतोषजनक स्पष्टीकरण नहीं देता है, तो इसे प्रथम दृष्टया उसकी आय माना जाएगा।" कोर्ट ने करदाता के इस दावे को भी खारिज किया कि नकद जमा किसी तीसरे पक्ष की थी और उसने संग्रह एजेंट के रूप में काम किया था। कोर्ट ने कहा कि तीसरे पक्ष को बुलाकर इस बात की पुष्टि करानी चाहिए थी।
सुप्रीम कोर्ट के एक पुराने फैसले- आयकर आयुक्त सलेम बनाम के चिन्नाथंबन (2007) का हवाला देते हुए, कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब जमा किसी तीसरे पक्ष के नाम पर होती है, तो उस व्यक्ति को धन के स्रोत के बारे में स्पष्टीकरण देने के लिए अवश्य बुलाना चाहिए।