संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : पिछलों के जुर्मों से बाद वाले सबक लें
08-Oct-2024 4:04 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय :  पिछलों के जुर्मों से  बाद वाले सबक लें

छत्तीसगढ़ में पिछली कांग्रेस सरकार में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के एक सबसे करीबी दलाल-कारोबारी तांत्रिक के.के.श्रीवास्तव का मामला अब खुलते चले जा रहा है। केन्द्र और राज्य की कई तरह की एजेंसियों ने श्रीवास्तव के खिलाफ यह पाया है कि इसके बैंक खातों में रिक्शेवालों और जोमैटो जैसे खाना पहुंचाने वाले लोगों के बैंक खातों से जुटाए गए चार सौ करोड़ रूपए दिखाई पड़ रहे हैं। भूपेश सरकार के समय उनका सबसे करीबी निजी तांत्रिक माना जाता के.के.श्रीवास्तव कई जिलों के कलेक्टरों पर इतनी धाक रखता था कि वहां के सभी औद्योगिक ट्रांसपोर्ट के काम वही कंट्रोल करता था। धोखाधड़ी की एक रिपोर्ट के चलते वह गिरफ्तार होने को था कि अचानक फरार हो गया, और अब पुलिस उसे ढूंढते-ढूंढते फरार घोषित कर चुकी है, और उस पर ईनाम भी रखा है। किसी भी राज में सत्ता के ऐसे दलाल सत्ता को बेदखल करके छोड़ते हैं। हर सत्तारूढ़ पार्टी को, और सत्ता पर बैठे लोगों को पिछली सरकारों के कुकर्मों से, और दूसरे राज्यों की बुरी मिसालों से सबक लेना चाहिए। यह सबक सत्ता पर दुबारा आने के हिसाब से भी जरूरी होता है, और जेल जाने से बचने के लिए भी। सच तो यह है कि सत्ता अगर सबक लेती चले, तो यह उसके लिए एक बीमा पॉलिसी की तरह साबित हो सकती है। लेकिन ताकत के ओहदों का मिजाज ही उन पर बैठने वाले लोगों को बददिमाग कर देने का होता है। ऊंची कुर्सियों पर बैठकर भ्रष्टाचार करते, अनाचार करते, जुल्म और ज्यादती करते लोगों को कभी लगता ही नहीं है कि उनका राज कभी खत्म होगा। नतीजा यह है कि प्रदेश की पिछली कांग्रेस सरकार को निजी जागीर की तरह हांकने वाले छोटे-बड़े अफसर जेल में पड़े हैं, सत्तारूढ़ पार्टी के कोषाध्यक्ष फरार हैं, और सत्ता के दलाल देश की किसी अदालत से जमानत नहीं पा रहे हैं। सैकड़ों और हजारों करोड़ की काली कमाई किस काम की अगर लोगों को फरारी काटनी पड़ रही हो, उनकी गिरफ्तारी के लिए पुलिस ने ईनाम रखे हुए हों, और पोस्टर चिपकाए हुए हों। इन मिसालों से इनके बाद की सत्ता को सबक लेना चाहिए, वरना इन बाद वाले लोगों का पढ़ा-लिखा और अनुभवी होना बेकार है।

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