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‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : गुरू का नाम लेते ब्रम्हलीन होने एक परिवार कुर्बान!
18-Oct-2024 4:13 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय :  गुरू का नाम लेते ब्रम्हलीन  होने एक परिवार कुर्बान!

न सिर्फ हिन्दुस्तान में बल्कि दुनिया के सबसे विकसित देशों में भी अंधविश्वास में जान देने वाले लोगों के मामले सामने आते ही रहते हैं। 2019 की एक घटना लोगों को याद होगी जब भारत की राजधानी दिल्ली के बुराड़ी के इलाके में एक परिवार के 11 लोगों ने पूजा-पाठ के बाद फांसी लगाकर जान दे दी थी। यह पूरा काम एक परिवार ने आपस में तय करके किया था, और 15 बरस से लेकर 80 बरस तक के 11 लोग बिना किसी संघर्ष के एक मत होकर मौत को ऐसे गले लगाया था। अब छत्तीसगढ़ के सक्ती में कल एक परिवार किसी तरह की तांत्रिक या आध्यात्मिक साधना करते हुए, जय गुरूदेव-जय गुरूदेव कहते हुए जान देने पर उतारू मिला। परिवार के दो जवान भाई मरे पड़े मिले, और परिवार की ही दो महिलाएं साधना सरीखा कुछ करते हुए मिलीं जो कि यह कह रही थीं कि वे मृत नौजवानों को जिंदा कर देंगी। उनकी दिमागी हालत असामान्य दिख रही थी, और पहली नजर में ऐसा लग रहा था कि ये कई दिनों के भूखे-प्यासे कोई तांत्रिक साधना कर रहे थे, और दोनों मौतें भूख-प्यास से हुई लग रही हैं। ऐसा पता लगा है कि उज्जैन के एक किसी तांत्रिक या गुरू के अनुयायी बनकर ये लोग इस तरह जान दे रहे थे। घर को बंद कर लिया था, और जय गुरूदेव-जय गुरूदेव का जाप कर रहे थे। जब घर से आवाज आना कम हो गई, तो पड़ोसियों ने दरयाफ्त की, और पुलिस को खबर की। कुछ लोगों का कहना है कि यह साधना स्वर्ग प्राप्ति के लिए या ब्रम्हलीन होने के लिए की जा रही थी।

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भारत तरह-तरह के पाखंडों से भरा हुआ देश है। यहां पर ईसाई-पादरी चंगाई सभा करते थे, जो कि अब कानून कड़े होने से कुछ कम हो रही हैं, या बंद सरीखी हो गई हैं। दूसरे कई धर्मों के लोग अलग-अलग किस्म से इलाज, भूत और चुड़ैल उतारने, किस्मत जगाने, गड़ा खजाना दिलवाने, दुश्मन को मारने, प्रेमिका को फंसाने जैसे कामों के लिए तरह-तरह की साधनाओं का पाखंड करते हैं। हर कुछ दिनों में खबर आती है कि किस तरह किसी तांत्रिक या मौलवी ने, बैगा-गुनिया ने संतान दिलवाने के नाम पर या किसी और तरह का झांसा देकर किसी लडक़ी या महिला से बलात्कार किया। खबरें आती रहती हैं, और लोग ऐसे झांसों में फंसते भी रहते हैं। देश के लोगों में अंधविश्वास रीढ़ की हड्डी के भीतर बोन मैरो तक में धंसा हुआ है, और उनसे हर तरह के काम करवाते रहता है।

हम बार-बार इस बात को लिखते हुए थक चुके हैं कि आध्यात्म, धर्म, अंधविश्वास, धर्मान्धता, और साम्प्रदायिकता के बीच कोई लकीरें खींची हुई नहीं हैं, इनके बीच कोई सरहद नहीं है। लोग एक बार आस्था के दायरे में घुसते हैं, तो उनके दिल-दिमाग जितने कमजोर होते हैं, उतनी ही मजबूत गिरफ्त में वे आ जाते हैं। आस्थावान कब भक्त बन जाते हैं, कब अंधभक्त, और कब वे पूरी तरह धर्मान्ध-अंधविश्वासी होकर पूरी जिंदगी झोंक देते हैं, यह उनको पता ही नहीं लगता। लोगों को याद होगा कि कुछ बरस पहले हरियाणा में रामपाल नाम का एक स्वघोषित ‘भगवान’ पुलिस से लंबे टकराव के बाद अपने आश्रम से भक्तों सहित गिरफ्तार किया गया था। गिरफ्तारी के पहले रामपाल और उसके भक्तों ने पुलिस के सामने समर्पण से मना कर दिया था, और हथियारों से पुलिस पर हमला भी किया था। करीब 20 हजार सुरक्षा जवानों ने रामपाल के सतलोक आश्रम को घेरने के बाद किसी तरह इस गुरू को गिरफ्तार किया था जिसे बाद में अदालत से उम्रकैद हुई। दस दिनों तक पुलिस और आश्रम के बीच यह मोर्चा चल रहा था, और इस दौरान पांच मौतें भी हुई थीं। एक खबर के मुताबिक रामपाल की गिरफ्तारी पर राज्य पुलिस के 50 करोड़ रूपए खर्च हुए थे, और यह सब कुछ एक अदालती आदेश पर अमल के लिए हुआ था।

किसी गुरू पर आस्था जब परले दर्जे की अंधश्रद्धा में बदल जाती है, तो वह किसी भी दर्जे की जानलेवा हिंसा में बदल जाती है। अंधविश्वासी दूसरों को मार भी सकते हैं, और खुद भी जान दे सकते हैं। अभी छत्तीसगढ़ के सक्ती जिले में जिस तरह यह परिवार जय गुरूदेव का जाप करते हुए दो नौजवान खो बैठा है, उसमें कुछ हैरानी इसलिए हो रही है कि यह एक आदिवासी परिवार बताया जा रहा है, और आदिवासी लोग आमतौर पर इस तरह की भक्ति से दूर रहते हैं। उनके बीच जादू-टोना, बैगा-गुनिया जैसी बातों का चलन तो रहता है, लेकिन वे ब्रम्हलीन होने के लिए इस तरह किसी गुरू का जाप करते भूख से मर जाएं, ऐसा तो सुनाई नहीं पड़ता था।

ऐसे अंधविश्वास के पीछे कई किस्म की वजहें हो सकती हैं। सबसे आम वजह हिन्दुस्तान में धर्म का पाखंड फैलाकर लोगों की तर्कशक्ति, और न्यायशक्ति को खोखला कर देना है। और धर्म का पाखंड तब तक स्थापित नहीं हो सकता, जब तक लोगों में सोचने की ताकत बची रहे। इसलिए तर्कोँ को खत्म करके जिस तरह से भारत में धर्म को मजबूत किया गया है, वह एक सबसे बड़ी वजह है। फिर धर्म के ही एजेंटों की तरह आसाराम से लेकर राम-रहीम तक, और रामपाल से लेकर दर्जनों दूसरे गुरूओं तक की दुकानें अंधविश्वास के बिना नहीं चल सकती। इसलिए गुरू के नाम पर ऐसा अंधविश्वास और मजबूत किया जाता है। फिर जब देश में सरकारों का काम कमजोर रहता है, अदालतें पीढिय़ों तक फैसला नहीं देतीं, जब चारों तरफ भ्रष्टाचार का साम्राज्य कायम हो जाता है, तब लोग अपने काम के लिए टोटकों पर जा टिकते हैं। वे कहीं मत्था टेककर, कहीं मनौती मानकर, कहीं कुछ चढ़ाकर अपना काम पूरा होने की उम्मीद करते हैं। और फिर इनमें जो परले दर्जे के अंधविश्वासी हो जाते हैं, वे कहीं अपनी जीभ काटकर चढ़ा देते हैं, कहीं गला काट देते हैं। और कुछ लोग तो अपने ही बच्चों की बलि चढ़ाते भी पकड़ाते हैं। यह पूरा सिलसिला देश और समाज में वैज्ञानिक चेतना खोखली हो जाने का एक सुबूत रहता है। भारत में पौराणिक कहानियों को प्रमाणित इतिहास बताने का जो सिलसिला चल रहा है, उसकी वजह से विज्ञान की साख अब किसी के लिए जरूरी नहीं रह गई है। यह सोच समाज में कोरोना-संक्रमण की तरह फैलती चली गई है, और कुदरत के करीब रहने वाला यह आदिवासी परिवार शहरी अंदाज के अंधविश्वासी-पाखंड का शिकार होकर जय गुरूदेव जपते हुए दो जिंदगियां खो बैठा।

पाखंड से छुटकारा पाने का कोई शॉर्टकट नहीं है। एक पीढ़ी अंधविश्वासी रहती है, तो इस सोच का डीएनए अगली कई पीढिय़ों तक चले जाता है। भारत आज बहुत बुरी तरह इसकी गिरफ्त में है, और मौतों के तो आंकड़े फिर भी सामने आ जाते हैं, मरने के पहले तक के जितने मामले रहते हैं, वे तो दिखते भी नहीं हैं। इस देश की सोच का पता नहीं क्या होगा, लोग अपने अंधविश्वास के चलते अपने परिवार की महिला, लडक़ी, और बच्चों को भी बलात्कारियों के पास झोंक देते हैं। वैज्ञानिक चेतना की अहमियत अभी भी लोगों को ठीक से समझ नहीं आ रही है, लेकिन दस-बीस बरस बाद जब हिन्दुस्तानी-चेतना की नींद खुलेगी, तब तक बड़ी देर हो चुकी होगी।  

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