सामान्य ज्ञान
सौरमंडल के ग्रह शनि के चारों ओर वलय बने हुए हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि ये छल्ले धूल कणों से बनते हैं। शनि के एक वलय- जी रिंग ने वैज्ञानिकों को चकित कर दिया था। वैज्ञानिकों का कहना है कि जी-रिंग के आस-पास उपग्रह नहीं होने के कारण इसके धूलकण एक निश्चित स्थान पर नहीं रह पाते हैं। साइंस पत्रिका में प्रकाशित शोध में वलय का एक अलग रूप भी छापा गया है। जी- रिंग शनि के शनि के सबसे बाहरी वलयों में से एक है। यह शनि के केंद्र से 1 लाख 68 हजार किलोमीटर से अधिक दूरी पर है। वहीं सबसे नजदीकी उपग्रह से इसकी दूरी 15 हजार किलोमीटर से अधिक है।
वैज्ञानिकों के अनुसार जी - रिंग धूल का वलय है और ई- रिंग तथा एफ- रिंग की तरह इसके थोड़े से हिस्से में बर्फ का वलय भी है। शनि के चारों ओर छितरे ये धूल कण आसानी से हट जाते हैं। इन वलयों को अपने स्थान पर बनाए रखने के लिए इन्हें या तो नए धूल और बर्फ कणों की नियमित आपूर्ति जरूरी है या फिर चंद्रमा जैसे उपग्रह के गुरुत्वाकर्षण प्रभाव से ही ये अपने स्थान पर रह सकते हैं। शनि का उपग्रह एनसिलाडस अपने निकटवर्तीय वलय को सीधे तौर पर नए धूलकणों की आपूर्ति करता है। वहीं प्रोमेथियस और पंडोरा उपग्रह एफ- रिंग के कणों को एक निश्चित क्षेत्र में बांधे रखने में सहायक होते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार जी - रिंग उपग्रह के निकट नहीं है और यही वजह है कि इसका वलय दूसरे वलयों से अलग है।
अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी इसा और इटैलियन स्पेस एजेंसी के संयुक्त मिशन के तहत भेजे गए अंतरिक्ष यान कसिनी - होयगन्स से प्राप्त आंकड़ों से वैज्ञानिकों को जी - रिंग के बारे में विस्तृत अध्ययन करने में मदद मिली है। कसिनी से खींची गई तस्वीरों से पता चलता है कि जी- रिंग की संरचना दूसरे वलयों से अलग है। वर्ष 2004 में कसिनी - होयगन्स अंतरिक्ष यान पहली बार शनि ग्रह के वलय से होकर गुजरा था।