विचार / लेख

शाह के शहंशाह और बादशाह : प्रकाश दुबे
29-Jun-2020 7:33 PM
शाह के शहंशाह और बादशाह : प्रकाश दुबे

शब्दों की खिलवाड़ दिलचस्प होती है। प्रथम और प्रधान सेवक के भारत घर की देखभाल शाह के सुपुर्द है। शाह के ब्रह़मास्त्र हैं-नौकरशाह। आम फहम बोली में-बाबू। अमित अधिकार प्राप्त भारतीय प्रशासनिक सेवा और पुलिस सेवा वाले अपने इलाके के शाह नहीं, शहंशाह होते हैं। देश भर में इन दिनों वर्ष 1984 के आईएएस अफसरों की बादशाहत चल रही है। केन्द्रीय गृह सचिव अजय कुमार भल्ला और वित्त सचिव अजय भूषण पांडे हैं। महाराष्ट्र संवर्ग के नौकरशाहों की  बादशाहत राष्ट्र से महाराष्ट्र तक पसरी है। वित्त सचिव पांडे महाराष्ट्र केडर से हैं। एक जुलाई को महाराष्ट्र के मुख्य सचिव का दायित्व संजय कुमार और मुख्यमंत्री के प्रधान सलाहकार का पद निवर्तमान मुख्य सचिव अजोय मेहता संभालेंगे। कुछ और अजय देश मेंं महत्त्वपूर्ण पदों पर हैं। 1984 बैच में संजय नाम के अफसरों की भरमार थी। मीरा कुमार के सचिव रहे संजय कुमार को अपने गृह राज्य में महत्वपूर्ण दायित्व सौंपे गए। मसूरी में प्रशिक्षण के दौरान संजय की पुकार पर  कितना घोटाला होता होगा? अंदाज लगा सकते हैं।

हे  ईश्वर,माफ करना

बहुत समय नहीं हुआ, जब ईमानदारी के फरिश्तों की बदौलत कोयले के दलाल अदालतों और जेल की परिक्रमा कर रहे थे। आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ते देश के लिए कोयला उत्खनन निजी क्षेत्र में कराना जरूरी हो गया है। स्वयं प्रधानमंत्री ने दिल्ली से तकनीक के सहारे निजी क्षेत्र को कोयला खानें देने देने का शुभारंभ किया।  कोल इंडिया लिमिटेड के अध्यक्ष ने निजीकरण के पक्ष में आंकड़ा बताकर दावा ठोंका कि निजी क्षेत्र की घुसपैठ से कोल इंडिया अप्रभावित रहेगा। कोयला मंत्री प्रहलाद जोशी इतना बड़ा दावा करने की हिम्मत जुटाने के बजाय चुप्पी साधे रहे। कोयला कंपनी के धनबाद कार्यालय के समक्ष मज़दूरों ने निजीकरण के विरोध में प्रदर्शन किया।  मजदूर नेता तथा राज्य के पूर्व मंत्री सहित  50 लोगों को पुलिस ने धर लिया। आंखों की लिहाज का जलवा देखिए।रिपार्ट कोयला कंपनी ने दर्ज कराई। पुलिस ने सफाई दी- कोरोना काल में तन दूरी, अजी वही-सुरक्षित दूरी का ध्यान नहीं रखने के कारण हिरासत में लिया गया। ये ही धारएं लगाईं। घोषित रूप से ईश्वर भक्त कोयला मंत्री और कोलकाता में विराजमान कोयले वाले अफसर पाप के भागी बनने से बचते रहे। ईसा मसीह महान थे। संवेदनशील थे। दयालु थे। उनके बयान में थोड़ा सा बदलाव  कर मन ही मन कहते होंगे-हे ईश्वर, हमें माफ करना। 

मारुति की रफ्तार को मात

कोरोना-काल में मास्क, सेनेटाइजऱ बनाने वालों के साथ ही सेक्युरिटी गार्ड उपलब्ध कराने वाले कमा रहे हैं। इसकी पुष्टि करने के लिए  मुंबई के उत्तर भारतीय संघ के नेताओं से पूछने की जरूरत नहीं है। उन्हें बड़े ओहदे मिलना अपने आप में प्रमाण है।  हरयाणवी मिज़ाज़ अलग है। गुडग़ांव का नाम बदल कर गुरुग्राम किया। पास ही मानेसर के मारुति कारखाने के करीब डेढ़ दर्जन सुरक्षा गार्ड संक्रमित पाए गए।  गुड़ गोबर कर दिया। बाकी लोगों से अलग रखने यानी संगरोध की तैयारी की जा रही थी। नहीं समझे। क्वारेंटाइन में भेजना था। संक्रमण के मारे सुरक्षा रक्षक उडऩछू हो गए। पुलिस में रपट लिखवाई गई। पता लगा कि लापता हैं। अमित भाई के प्रादेशिक अवतार यानी हरियाणा के गृह मंत्री अनिल विज ने दूरदर्शिता दिखाई। गुरुग्राम का नाम बदले बगैर मुंबई बनाने में जुटे हैं। कैसे? मुंबई के कोरोना संबंधित हर कानून-कायदा, हर सख्ती को गुरुग्राम में लागू करेंगे। इन दिनों गुरुग्राम जाना लद्दाख में चीन से सटी नियंत्रण रेखा पार करने से अधिक कठिन है। 

केसर क्यारी के लाल

आरोप लगाने वाले, लगता है, हड़बड़ी में रहते हैं। मणिपुर में पूर्व मुख्यमंत्री एवं नेता प्रतिपक्ष इबोबी सिंह ने बहुमत जुटाया। सीबीआई सक्रिय हुई। अमित भाई पर आरोप लगाने वाले यह जानकर चकित होंगे कि दल एवं विचार निरपेक्ष सीबीआई ने जम्मू-कश्मीर के पूर्व मंत्री लाल सिंह के विरुद्ध जांच शुरु कर दी है। कठुआ में आठ बरस की मासूम बच्ची की बलात्कार के बाद हत्या कर दी गई।  अभियुक्तों की हिमायत कर लाल सिंह सुर्खियों में थे। पार्टी के कुछ बलवान और नामवान नेता  लाल सिंह के कवच बने थे। लाल सिंह की चौधराहट का जयकारा होता था। उनकी तारीफ में कसीदे पढ़े जाते थे। अब जोश ठंडा पड़ चुका है।  कठुआ जिले में लाल सिंह की शिक्षण संस्था वन-भूमि पर कब्जा करने के आरोप में घिरी है। वर्ष 2015 में संस्था के पदाधिकारी ने उच्च न्यायालय में फर्जी दस्तावेज़ जमा किए थे। इस में पता नहीं क्या जटिलता है जो जांच सीबीआई के सुपुर्द  की गई?  उस वक्त लाल सिंह जम्मू-कश्मीर की मुफ्ती सरकार में भाजपा खाते से मंत्री थे या नहीं? यह तो गोपनीय जानकारी होगी जिसकी  जानकारी सीबीआई पता लगाए। लाल सिंह इन दिनों पार्टी छोड़ चुके हैं। प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री डा जितेन्द्र सिंह और लाल सिंह के रिश्ते जांच के दायरे में नहीं आते। 

(लेखक दैनिक भास्कर नागपुर के समूह संपादक हैं)

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