विचार / लेख
प्रकाश दुबे
अर्जुन सिंह से लेकर कपिल सिब्बल तक उच्च शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए विदेशी विश्वविद्यालयों को आमंत्रित करने के लालायित रहे। उनके दिमाग की सूझ मंत्रालय में भ्टकती रही। यह संभव हो सका, कवि निशंक यानी मानव संसाधन मंत्री रमेश पोखरियाल के कार्यकाल में। नई शिक्षा नीति में उच्च शिक्षा को विश्व स्तरीय बनाने का नुस्खा पेश किया। दुनिया के सौ नामी विश्वविद्यालय भारत की शिक्षा में निवेश कर सकेंगे। आत्मनिर्भर भारत में निवेश शब्द फिट नहीं होता। लेकिन क्या करें?
पिछले शिक्षा मंत्री, क्षमा करें, तत्कालीन मानव संसाधन मंत्री ने बड़े कारपोरेट घराने को गुणवत्ता विवि बनाने की अनुमति दी। खज़ाना उंड़ेला। उसके कामकाज पर कोई अंगुली उठाने का दुस्साहस नहीं कर सकता। इससे साबित हुआ कि सरकार के भरोसे शिक्षा- सुधार संभव नहीं लगता। नई शिक्षा नीति में विदेशी विवि को बुलाने की मंशा का मतलब समझें। निजी क्षेत्र के देसी घरानों पर भरोसा कम हुआ है। शिक्षा नीति बर्र का छत्ता साबित हो सकती है। शिक्षा मंत्री तब तक निशंक हैं, जब तक ऑक्सफ़ोर्ड रिटर्न डा सुब्रमण्यम स्वामी चुप हैं।
सुरक्षित दूरी से चेहरा दर्शन
संसद और विधान सभाओं के अधिवेशन के साथ अजीब पेंच फंसा है। सुरक्षित दूरी बनाकर सदन में बैठें या तकनीक के भरोसे दूर से वार्तालाप करें? संसदीय समितियों की बैठक में मौजूद व्यक्तियों के संक्रमित होने के बाद घबराहट बढ़ी है। पिछले कुछ दिनों से संसदीय समितियों की बैठकों में कोरम का अभाव रहता है। तृणमूल कांग्रेस के सांसद बैठक में शामिल होने दिल्ली नहीं पहुंचेंगे। तृणमूल कांग्रेस के नेता डेरिक ब्रायन ने दोनों सदनों को इसकी जानकारी दी। तृणमूल कांग्रेस ने वेब कांफ्रेंस की तरह आभासी बैठकें करने की मांग की थी। उनकी मांग खारिज कर दी गई।
दिलचस्प संयोग है कि लाक डाउन की घोषणा होने और आपदा प्रबंधन कानून लगने से पहले डेरिक ने संसद का अधिवेशन तुरंत समाप्त करने की मांग की थी। लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति उनकी और उनकी पार्टी की मांग से सहमत नहीं थे। कोरोना-कोप के चलते देश की राजधानी दिल्ली सहित कई शहरों से कोलकाता की विमान सेवाएं बंद करा दी गई हैं। डेरिक ब्रायन संभवत: अकेले सांसद हैं, जिन्होंने महामारी का प्रकोप होते ही ऐलानिया अपनी जांच कराई। यही नहीं,विलगन यानी सबसे दूरी बनाकर रहने का पालन किया।
जय शंकर से आगे पराजय शंकर
जय शंकर को सेवानिवृत्ति के बाद प्रधानमंत्री ने ठोंक बजाकर परखा। उसके बाद सुषमा स्वराज जैसी प्रतिभाशाली नेता की जगह विदेश मंत्रालय की जिममेदारी सौंपी। चीन में राजदूत रहना जयशंकर को भारी पड़ रहा है। रक्षा मंत्रालय से अधिक आरोप उन पर और उनके मंत्रालय पर लग रहे हैं। पराजय का पिता नहीं होता। अवैध संतान की मां की तरह विदेश मंत्री पर दोष मढ़ा जा रहा है। वाहवाही का छोटा सा मौका आया। किसी ने ध्यान नहीं दिया। अटल बिहारी वाजपेयी ने पूर्व की ओर देखने की रणनीति बनाई। थाइलैंड-म्यांमार से भारत को जोडऩे के लिए मणिपुर राज्य के इंफाल तक सडक़ बनाने की योजना बनी। वर्ष 2016 में म्यांमार करार हुआ। नवंबर 2020 में सडक़ और साठ से अधिक पुल-पुलिया बनकर तैयार होने थे। भारत की फुर्ती का मखौल उड़ता है। जमीन को लेकर मामला अदालत में अटका था। मखौल उडऩे से परेशान विदेश मंत्रालय को उच्चतम न्यायालय सुप्रीम कोर्ट ने राहत देते हुए ठेकेदार की याचिका खारिज की। कोई तो कहे-जय शंकर।
चोप्प, कह दिया, आज़ाद हो
जानना चाहेंगे- पूर्व केन्द्रीय मंत्री प्रोफेसर सैफुद्दीन सोज ने ईद कैसे मनाई? उनके परिवार ने कैद से प्रो सोज की रिहाई के लिए उच्चतम न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया। जम्मू-कश्मीर केन्द्र शासित प्रदेश की तरफ से अदालत को बताया गया कि प्रो सोज को न कैद किया, न नजऱ बंद। वे आज़ाद हैं। अदालत ने सरकार की बात पर भरोसा कर अर्जी खारिज कर दी।
नामी संपादक राजेन्द्र माथुर कहा करते थे कि मुख्य न्यायाधीश के फैसले और पत्रकार की रपट में अंतर होता है। पत्रकार को बार बार जांच-पड़ताल करना चाहिए। बेताब पत्रकारों ने अदालत के फैसले पर यही नुस्खा अपनाया। अदालत के फैसले के बाद टीवी चैनल वालों ने घर घेरा। चारदीवारी के पीछे से सोज़ ने कुछ कहना चाहा। पुलिस वालों ने धकियाकर कर पीछे किया। पत्रकार उनककी बात नहीं सुन पाए।
पांच अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त होने के साथ ही प्रो सोज अपने घर में कै़द हैं। वहीं बकरीद मनाई। वहीं घर में रहने की सालगिरह मनाएंगे। देश की सबसे बड़ी अदालत को इसकी भनक लगी? हम तो इतना जानते हैं कि सैफुद्दीन का मतलब धर्म की तलवार होता है और सोज़ का अर्थ है, सूजन। जलन।
(लेखक दैनिक भास्कर नागपुर के समूह संपादक हैं)