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हम जीते न जीतें पर हम लड़ेंगे
10-Aug-2020 12:39 PM
हम जीते न जीतें पर हम लड़ेंगे

डॉ. इलीना सेन का यह इंटरव्यू मैंने 9 साल पहले किया था। इलीना कल कैंसर से जंग हार गई लेकिन अपने मूल्यों आदर्शों के प्रति बेहद प्रतिबद्ध इलीना बराबरी के समाज की मांग को लेकर आखिरी सांस तक डटी रही। यह इंटरव्यू बिनायक सेन की गिरफ्तारी के तत्काल बाद लिया गया है और इलीना के व्यक्तित्व को जानने समझने का मौका देता है।


-आवेश तिवारी

जनतंत्र में बहुत गलतियाँ होती हैं सालों बाद पता लगता है कि किसी के साथ नाइंसाफी हुई है अगर हमारे साथ ऐसा हुआ तो ये मान लेना कि इसमें जनता का हित जुड़ा है। ‘ये शब्द बिनायक सेन ने जेल जाने से पहले अपनी पत्नी इलिना को कहे थे। इलीना बिनायक के साथ, अराजकतावादी राज्य और साम्राज्यवादी अदालतों के निर्णयों के खिलाफ लगातार संघर्ष कर रही है वो हारी नहीं है ना आगे हारने वाली है। जब वे कहती हैं कि हम लड़ेंगे ,हम जहाँ तक ले जा सकेंगे ले जायेंगे जीतेंगे या नहीं जीतेंगे हम नहीं जानते तो इन शब्दों में उनका अदम्य साहस नजर आता है। सुनिये पूरी बातचीत

आवेश-इलीना आप अदालत के फैसले को किस तरह से देखती हैं ?
इलीना- बिनायक ने पैसे और सारी चीजें छोडक़र गरीबों-आदिवासियों के लिए काम किया, उनके ऊपर ऐसा आरोप लगाना कि वो देशद्रोही है गलत हैं। उन्होंने हमेशा देश के लिए काम किया, मेरे और मेरे पति के लिए देश का मतलब देश की जनता हैं। आश्चर्य ये है कि चोर, लूटेरे, गेंगेस्टर खुलेआम घूम रहे हैं, और बिनायक सलाखों के पीछे हैं।

आवेश-आपके पति को जिस कानून के तहत उम्रकैद की सजा सुनाई गयी वो देश का ही कानून है, आप हिंदुस्तान में लोकतंत्र को कितना सफल मानती हैं?
इलीना-विकास के दौर में गरीबी और अमीरी की खाई लगातार बढ़ी है, संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में साफ तौर पर कहा गया है कि इस खाई को खत्म करने की कोशिश की जायेगी, लेकिन आजादी के साथ सालों बाद भी ये खाई निरंतर गहरी होती जा रही है, आज देश में विशाल माध्यम वर्ग है जिसके हाथ में पूरा बाजार हैं लेकिन जितना विशाल माध्यम वर्ग है उतना ही बड़ा वो वर्ग है जो बाजार तक नहीं पहुँच पाता ये लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा हैं। बिनायक सेन का मामले ने एक और नए खतरे को दिखाया वो खतरा देश में अदालतों और प्रशासन की मिलीभगत से पैदा हो रहा है, कई बार झूठे मामले बनाये जा रहे हैं और फिर अपनी नाक बचाने के लिए लगातार झूठ को सच बनाने का खेल खेलने में लग जाते हैं और फिर वो अपनी झूठी दलीलों से अदालतों को भी प्रभावित करने लगते हैं, जैसा बिनायक सेन के मामले में हुआ।

आवेश- छत्तीसगढ़ में बिनायक सेन की गिरफ्तारी हुई, उत्तर प्रदेश में सीमा आजाद की गिरफ्तारी होती हैं, वहीं दूसरी तरफ अरुंधति रॉय छत्तीसगढ़ के जंगलों में जाती हैं, नक्सली हिंसा का समर्थन करती हैं, उनका इंटरव्यू छपता है, क्या आपको लगता है राज्य माओवाद के सम्बंध में दोहरे मापदंड अपना रहा हैं ?
इलीना- सीमा आजाद को मैं अखबारों के माध्यम से ही जानती हूँ, फिर भी कहूँगी चाहे बिनायक सेन हों या सीमा आजाद, साजिशन की जा रही कार्यवाहियां लोकतंत्र के लिए खतरनाक हैं। जहाँ तक अरुंधति का सवाल है मैंने उन्हें पढ़ा हैं कहीं-कहीं अरुंधति और बिनायक सेन के विचारों से समानता हो सकती है, लेकिन विचारों में अंतर भी है, हर व्यक्ति के विचारों में ये विभिन्नता है हमें विचारों का समान करना चाहिए, हम काला सफेद देखने लगते हैं कि क्या काला है क्या सफेद है, ऐसा नहीं होना चाहिए।


आवेश- मैं देश के कई विश्वविद्यालयों में गया, युवा पीढ़ी विनायक को अपना आदर्श मानने लगी है उनकी गिरफ्तारी को लेकर प्रदर्शन हो रहे हैं आन्दोलन हो रहे हैं, आप बिनायक को कितना साहसी मानती हैं ?
इलीना- मेरे हिसाब से बिनायक साहसी जरुर है कई बार उन्होंने लोकप्रिय बातें न कहकर वो बातें कहीं जो कड़वी लेकिन आम आदमी के हित की बात कही,जो उन्हें सही लगा उन्होंने बोला ये बात अलग है कि आप उनकी बात से सहमत और असहमत हों।

आवेश-आपको क्या लगता है कि छत्तीसगढ़ में अघोषित आपातकाल की स्थिति हैं?
इलीना- इसे हम घोषित आपातकाल कहेंगे

आवेश-आपको क्या लगता है कि बार-बार सरकार आपके पति को ही निशाना क्यूँ बना रही है, केंद्र सरकार की भी इस कार्यवाही में मूक सहमति है।
इलीना- दो दिन पहले हमारे डीजीपी ने कहा कि सारे एनजीओ शक के दायरे में है उन्होंने कहा कि पीयूसीएल पर प्रतिबन्ध लगाएगी तो जनता लगाएगी, जनता के बारे में इस तरह के ब्यान देना बेहद खतरनाक है कुछ दिनों पहले संदीप पांडे और मेधा पाटेकर शान्ति का पैगाम लेकर दंतेवाड़ा गए थे वहां उन पर अंडे और टमाटर फेंके गए थे, जब वो गए थे तो राज्य के मंत्रियों ने कहा कि इनके लिए हम कुछ नहीं कहेंगे इनका फैसला जनता करेगी। ये बातें मुझे विचलित करती हैं कि वो कौन सी जनता है और उसे क्या इशारा किया जा रहा, ये साफ है कि वो पीयूसीएल के खिलाफ जनता को सन्देश दे रहे हैं।

आवेश-आपको क्या लगता है वो कौन सी जनता है ?
इलीना- वो उस जनता के बारे में बात कर रहे हैं जो उनके इशारे पर कुछ भी करने को तैयार हो।

आवेश-जेल जाने से पहले बिनायक सेन ने आखिरी बात क्या कही ?
इलीना- मेरी मुलाकात उनसे 26 को हुई थी जब कोर्ट ने ये खेदपूर्ण निर्णय सुनाया, अब चुकी सजा हो चुकी है मुझे 15 दिन में सिर्फ एक बार मिलने दिया जायेगा, मैंने उनसे कहा कि हम लड़ेंगे, हम जहाँ तक ले जा सकेंगे ले जायेंगे जीतेंगे या नहीं जीतेंगे हम नहीं जानते। इस पर बिनायक ने कहा कि जनतंत्र में बहुत गलतियाँ होती हैं सालों बाद पता लगता है कि किसी के साथ नाइंसाफी हुई है अगर हमारे साथ ऐसा हुआ तो ये मान लेना कि इसमें जनता का हित जुड़ा है।

आवेश-क्या आपको लगता है कि हिंदुस्तान में जनता और मीडिया आदालतों के फैसलों की आलोचना करने से डरती हैं, अदालतें साम्राज्यवाद का प्रतीक बन गई है ?
इलीना-अदालती व्यस्था ने जो इस केस में भूमिका अदा की वो बेहद चिंताजनक है कानून की मौलिक समझ भी इस फासिले में नहीं दिखती, बिनायक के खिलाफ फैसला सुननाने वाले जस्टिस वर्मा पहले वकील थे जो एक परीक्षा पास करके जज बन गए मुझे भी लगता ये कि लोकतंत्र है कोई राजशाही नहीं कि हम फैसलों के खिलाफ आवाज न उठा सके, मुझे लगता है कि अदालतों के निर्णयों के मामले में भी अगर जनता सवाल कर रही है तो गलत नहीं कर रही है।

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