साहित्य/मीडिया

राहत इंदौरी का लिखा याद रहेगा...
11-Aug-2020 6:46 PM
राहत इंदौरी का लिखा याद रहेगा...

रोज तारों को नुमाइश में खलल पड़ता है

चांद पागल है अंधेरे में निकल पड़ता है

एक दीवाना मुसाफिर है मेरी आंखों में
वक्त-बे-वक्त ठहर जाता है, चल पड़ता है

अपनी ताबीर के चक्कर में मेरा जागता ख्वाब
रोज सूरज की तरह घर से निकल पड़ता है

रोज पत्थर की हिमायत में गजल कहते हैं
रोज शीशों से कोई काम निकल पड़ता है

उसकी याद आई है, सांसों जरा आहिस्ता चलो
धड़कनों से भी इबादत में खलल पड़ता है.
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किसने दस्तक दी ये दिल पर कौन है
आप तो अंदर हैं, बाहर कौन है

रोशनी ही रोशनी है हर तरफ
मेरी आंखों में मुनव्वर कौन है

आसमां झुक-झुक के करता है सवाल
आप के कद के बराबर कौन है

हम रखेंगे अपने अश्कों का हिसाब
पूछने वाला समुंदर कौन है

सारी दुनिया हैरती है किस लिये
दूर तक मंजर ब मंजर कौन है

मुझसे मिलने ही नहीं देता मुझे
क्या पता ये मेरे अंदर कौन है

(राहत इंदौर की 'दो कदम और सही' से) 

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