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'छत्तीसगढ़' न्यूज़डेस्क
दक्षिण अफ्रीका से लाकर भारत के कर्णाटक में तीन चीतों को रखा गया है. इनमें एक नर और दो मादा हैं. दुनिया में कोरोना फैलने के बाद यह वन्यजीवों का पहला ट्रांसफर है. इन्हें एक महीने एक बाड़े में रखकर बाद में पर्यटकों और दर्शकों के लिए वन्यजीवन अभ्यारण्य में छोड़ दिया जायेगा. (तस्वीरें कर्नाटक वन विभाग से)
पहले भारत के मैदानों में एशियाई चीते सामान्य रूप से देखे जाते थे, लेकिन ब्रिटिश उपनिवेश के जमाने में उनका इतना शिकार हुआ कि वे पूरी तरह खत्म हो गए. 1950 के बाद से उभारत में एक भी चीता नहीं देखा गया. माना जाता है कि ईरान के घने जंगलों में अभी भी करीब 100 एशियाई चीते बचे हैं.
इस बरस(2020) जनवरी में उच्चतम न्यायालय ने प्रयोग के तौर पर सरकार को अफ्रीकी चीते को भारत में उचित स्थान पर रखने की अनुमति दे दी है। इस चीते के वास से यह देखा जाएगा कि क्या यह भारत की जलवायु में खुद को ढाल सकता है। भारतीय चीते की प्रजाति के विलुप्त होने का जिक्र करते हुए राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने न्यायालय ने नामीबिया से अफ्रीकी चीता लाकर भारत में बसाने की अनुमति मांगी थी।
मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने इसकी अनुमति देते हुए कहा कि शीर्ष अदालत इस परियोजना की निगरानी करेगी। पीठ ने इस संबंध में तीन सदस्यीय समिति गठित की है। इस समिति में भारत के पूर्व वन्यजीव निदेशक रंजीत सिंह, भारत के वन्यजीव महानिदेशक धनंजय मोहन और पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के वन्य जीव उपमहानिरीक्षक शामिल हैं। यह समिति इस मामले में फैसला करने के लिए राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण का मार्ग निर्देशन करेगी। पीठ ने कहा कि यह समिति हर चार महीने पर अपनी रिपोर्ट न्यायालय को देगी।
पीठ ने यह भी कहा कि अफ्रीकी चीता बसाने के बारे में उचित सर्वेक्षण के बाद ही निर्णय लिया जाएगा और वन्यजीव को छोड़ने की कार्रवाई बाघ संरक्षण प्राधिकरण के विवेक पर छोड़ दी जाएगी। न्यायालय ने कहा कि विशेषज्ञों की समिति बाघ संरक्षण प्राधिकरण के निर्देशानुसार काम करेगी और बड़े पैमाने पर ऐसा करने की व्यावहारिकता के बारे मे सर्वेक्षण के बाद सावधानी से स्थान का चयन किया जाएगा। पीठ ने कहा कि इसमें किसी प्रकार की कठिनाई होने पर इसे अधिक वास वाले स्थान में बदला जाएगा।
मामले में न्याय मित्र के रूप में न्यायालय की मदद कर रहे अधिवक्ता एडीएन राव ने अफ्रीकी चीते को देश में बसाने का विरोध करने की वजहों से पीठ को अवगत कराया। पीठ ने भारत के पूर्व वन्यजीव निदेशक रंजीत सिंह का पक्ष सुनने के बाद कहा कि चूंकि यह पायलट परियोजना है, इसलिए इसका विरोध नहीं होना चाहिए।
इसके पहले 2012 में भारत में सुप्रीम कोर्ट ने अफ्रीका से चीता लाकर उसे देश में बसाने की योजना पर रोक लगा दी थी. विशेषज्ञों ने देश में चीता लाने को पूरी तरह गलत ढंग से सोची गई योजना बताया था. भारत में एक भी चीता नहीं बचा है.
भारत के पर्यावरण मंत्रालय ने इस परियोजना के लिए 5.6 करोड़ डॉलर की मंजूरी दी थी. इस योजना के तहत चीतों को नामीबिया के जंगलों से लाकर मध्य प्रदेश के अभयारण्य में बसाया जाता. सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस केएस राधाकृष्णन और जस्टिस सीके प्रसाद की बेंच ने सरकार को इस योजना पर आगे बढ़ने से रोक दिया. अदालत ने कहा था कि इस मुद्दे पर राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड एनबीडब्ल्यू से कोई चर्चा नहीं की गई जबकि वह वन्यजीव कानूनों पर अमल के लिए संवैधानिक संस्था है.
कोर्ट द्वारा नियुक्त सलाहकार पीएस नरसिम्हा ने कहा था, "अध्ययन दिखाते हैं कि अफ्रीकी चीता और एशियाई चीता एक दूसरे से जेनेटिक रूप से और चरित्र में पूरी तरह अलग हैं." उन्होंने कोर्ट को बताया कि अफ्रीकी चीता भारत में कभी नहीं था.
नरसिम्हा ने कहा था कि चीते का पुनर्वास इंटरनेशनल यूनियन फॉर कनजरवेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) के वन्यजीव प्रजातियों के पुनर्वास से संबंधित दिशानिर्देशों के भी खिलाफ है. आईयूसीएन ने विदेशी और बाहरी प्रजातियों को बसाने के खिलाफ साफ तौर पर चेतावनी दी है.
पहले भारत के मैदानों में एशियाई चीते सामान्य रूप से देखे जाते थे, लेकिन ब्रिटिश उपनिवेश के जमाने में उनका इतना शिकार हुआ कि वे पूरी तरह खत्म हो गए. 1950 के बाद से उभारत में एक भी चीता नहीं देखा गया. माना जाता है कि ईरान के घने जंगलों में अभी भी करीब 100 एशियाई चीते बचे हैं.