संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : कहीं पे हकीकत, कहीं पे फसाना..
05-Sep-2020 4:39 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : कहीं पे हकीकत,  कहीं पे फसाना..

हिन्दुस्तान में इन दिनों हकीकत देखनी हो तो कार्टून देखें और अखबारों में खबरें पढ़ें, और फसाने देखने हों तो टीवी चैनलों पर खबरें देखें, और सोशल मीडिया पर फुलटाईम नौकरी की तरह काम करने वाली ट्रोल आर्मी की पोस्ट देखें। कुछ महीनों से यह लतीफा चल रहा था कि अलग-अलग किस चैनल को देखने से देश की कैसी तस्वीर दिखती है, कौन से अखबार को पढऩे से देश का क्या हाल दिखता है, लेकिन अब यह लतीफा एक हकीकत बन गया है कि देश को किस तरह के चश्मे से देखने पर क्या दिखेगा? कुछ लोगों को ऐसे किसी एक चश्मे से देश की जीडीपी दिख रही है, चीनी सरहद पर खतरा दिख रहा है, बेरोजगारी के भयानक आंकड़े दिख रहे हैं, लॉकडाऊन के बाद बढ़ी हुई खुदकुशी दिख रही है, दूसरा चश्मा ऐसा है जो पिछले दो-तीन महीनों से मुम्बई के एक अभिनेता की खुदकुशी दिख रही मौत के अलावा कुछ भी नहीं देख पा रहा, इसके अलावा वह मोर को दाना जरूर देख पाया, लेकिन उससे परे कुछ भी नहीं। यह चश्मा इन दिनों बड़ी इलेक्ट्रॉनिक कंपनियों के बनाए हुए वर्चुअल रियलिटी चश्मे की तरह का है जिसमें वही दिखता है जिस रिकॉर्डिंग को दिखाया जाता है। इसमें मेले में बैठकर अकेले सुनसान रेगिस्तान का नजारा भी देखा जा सकता है, और मरघट पर अकेले बैठे किसी मेले का नजारा भी देखा जा सकता है। हिन्दुस्तान इन दिनों इतना आत्मनिर्भर हो गया है कि वह बिना वीआर-ग्लासेज के भी वही आभासी हकीकत देख रहा है जो कि यह देश, या इस देश की कुछ ताकतें उसे दिखाना चाह रही हैं। 

दिन का कोई घंटा ऐसा नहीं है जब फिल्म अभिनेता सुशांत राजपूत से जुड़े हुए, या भूतकाल में उससे जुड़े रहे लोगों की खबरों का सैलाब आया हुआ न रहे। टीवी का मीडिया तो मानो खुदकुशी वाली इस लाश पर उसी तरह सवार होकर दौड़े चल रहा है जिस तरह भैंसे पर बैठे हुए यमराज की तस्वीर बनाई जाती है। अब आसपास के लोगों से जुड़े हुए पहलू खत्म हो चले थे, तो ऐसे में एक अभिनेत्री इस मामले में कूद पड़ी है, और उसने तो महाराष्ट्र के सारे सम्मान, स्वाभिमान, सारे गौरव, इतिहास, को चुनौती दे डाली है, और एक बहुत ही गंदी जुबान में उसने सार्वजनिक रूप से महाराष्ट्र के मानो तमाम लोगों को चुनौती दी है कि वे उसका कुछ बिगाडक़र देखें। जिस जुबान में उसने ट्विटर पर यह चुनौती दी है, वह जुबान आमतौर पर सबसे अश्लील जुबान इस्तेमाल करने वाले इंसान सबसे गंदी बात कहते हुए बोलते हैं। हम न तो खबर में, और न ही इस जगह पर, न किसी मर्द की कही हुई, और न ही किसी औरत की कही हुई ऐसी जुबान दुहराते हैं। लेकिन पिछले दो-चार दिनों से यह अभिनेत्री सुशांत राजपूत केस में तलवार चलाए जा रही थी, और अब उसने अपना हमला महाराष्ट्र की सत्तारूढ़ पार्टी शिवसेना, महाराष्ट्र सरकार, और मराठी-मानुष सभी की तरफ मोड़ दिया है। उसने एक अजीब से घमंड के साथ महाराष्ट्र की पूरी अस्मिता के खिलाफ यह लिखा है- इनकी औकात नहीं है, इंडस्ट्री (मुम्बई फिल्म इंडस्ट्री) के सौ सालों में भी एक भी फिल्म मराठा प्राइड पे बनाई हो, मैंने इस्लाम डॉमिनेटेड इंडस्ट्री में अपनी जान और कॅरियर दांव पर लगाया, शिवाजी महाराज और रानी लक्ष्मीबाई पे फिल्म बनाई, आज महाराष्ट्र के इन ठेकेदारों से पूछो किया क्या है महाराष्ट्र के लिए? किसी के बाप का नहीं है महाराष्ट्र, महाराष्ट्र उसी का है जिसने मराठी गौरव को प्रतिष्ठित किया है, और मैं डंके की चोट पर कहती हूं, हां मैं मराठा हूं...(इसके बाद का हिस्सा अछपनीय है)। 

हिन्दुस्तान एक ऐसा मूढ़ समाज हो गया है जिसमें लोगों को इस किस्म की भडक़ाऊ-भावनात्मक बातों से, सनसनीखेज अप्रासंगिक बकवास से उलझाकर रखा जा सकता है ताकि उन्हें न भूख-प्यास सताए, और न ही देश के दूसरे जलते-सुलगते मुद्दे याद आएं। हम पहले भी इस बारे में कई बार लिख चुके हैं कि जनधारणा-प्रबंधन के चतुर पंडित ऐसे मामलों में मासूम दर्शक नहीं होते, वे परदे के पीछे से, नजरों के ऊपर से कठपुतलियों के धागे सम्हालने वाले लोग रहते हैं। आज अनायास एक अभिनेत्री झाग ठंडे पडऩे वाले एक स्कैंडल में एक नई जान फूंक रही है, और यह अनायास नहीं है, यह जानकार-तजुर्बे के मुताबिक सायास है। हर दिन कोई ऐसा शिगूफा शुरू किया जाए जिसमें रात तक लोग उलझे रहें। कल ही कई लोगों ने ये कार्टून बनाए हैं, और वीडियो-व्यंग्य पोस्ट किए हैं कि हिन्दुस्तानी जनता मांगे नौकरिया, और चैनल दिखाएं रिया-रिया। 

परसेप्शन-मैनेजमेंट की ऐसी पराकाष्ठा हिन्दुस्तान ने कभी देखी नहीं थी। खूबी यह है कि खुले मैदान के बीच यह कठपुतली नाच हो रहा है, और न तो किसी को डोरियां दिख रही हैं, और न ही आसमान तक कहीं कोई हाथ नजर आ रहे हैं। ऐसा तो किसी ने देखा-सुना नहीं था। ऐसा लगता है कि हिन्दुस्तानी आबादी का एक बड़ा हिस्सा यह सोचते हुए ही सुबह जागता है कि आज के लिए मसाला क्या है, आज क्या देखने, क्या पढऩे, और क्या वॉट्सऐप करने का इशारा है, क्या कहा जा रहा है।
 
हकीकत की इतनी अनदेखी किसी भी देश या समाज को खत्म करने के लिए काफी है। और जब हम समाज की बात कर रहे हैं, तो यह हिन्दुस्तानी मध्यमवर्ग ही है जो कि सतह के ऊपर दिखता है, बढ़-चढक़र बोलता है, और ऐसा अहसास पैदा करता है कि मानो वही पूरा हिन्दुस्तान है। जो ऊपर के लोग हैं, जो कमाना जानते हैं, वे हकीकत भी जानते हैं। बिना हकीकत को जाने कोई न कारोबारी बन सकते, न कमा सकते। जो सबसे नीचे के लोग हैं, उनके पास आज न काम है, न कल की कोई उम्मीद है, और न ही उनके पास सोशल मीडिया या जुबान है। इन दोनों के बीच का मध्यम वर्ग ही आज हिन्दुस्तान में हिन्दुस्तान कहला रहा है, वही ऐसे झांसों को अपनी मर्जी से देख-सुन रहा है, आगे बढ़ा रहा है, और यह सब करते हुए वह खुद भी कुछ या अधिक हद तक इस पर भरोसा भी कर रहा है। हमने एक बार कहीं मजाक में लिखा था कि आप कुल 87 बार कोई झूठ बोल सकते हैं, उसके बाद तो आपको खुद को उस पर इतना भरोसा हो जाता है कि अगली बार आप वह झूठ नहीं, उसे सच ही मानकर बोलते हैं। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news