विशेष रिपोर्ट
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प्रदीप मेश्राम
राजनांदगांव, 10 सितंबर (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। जिले के खैरागढ़ वन क्षेत्र के भीतरी जंगलों में प्रतिबंध के बावजूद बांस करील को वनों से सफाया किया जा रहा है। बेखौफ तरीके से अंदरूनी इलाकों में बसे वन बाशिंदे बांस की नई पौध को खुलकर हानि पहुंचा रहे हैं। वहीं जंगली बंदर भी बांस करील को चट कर रहे हैं। व्यवहारिक रूप से वन महकमे के पास इस समस्या से निपटने के लिए कारगर तरीका नहीं है।
खासतौर पर बंदरों के जरिये हो रहे नुकसान को रोकने की दिशा में भी वन अमला असहाय दिख रहा है। बताया जा रहा है कि जायकेदार सब्जी का स्वाद चखने के लिए बांस करील को अंकुरित होने के कुछ दिनों में ही लोग उखाड़ रहे हैं। लिहाजा बांस की नई पैदावार खड़ी नहीं हो पा रही है। नए बांस की उपज नहीं होने से जंगलों की रौनकता गायब हो रही है।
खैरागढ़ वन मंडल के मलैदा, जुरलाखार और भावे के घने जंगल बांस से लदे हुए हैं। हर साल वन महकमे द्वारा बांस कटाई के लिए अभियान चलाया जाता है। कटाई के लिए चिन्हांकित बांस के कूप बनाए जाते हैं। बांस की वनोपज में गिनती होती है।
लिहाजा संरक्षित और रिजर्व जंगली क्षेत्रों में बांस की तोड़ाई महकमे की देखरेख में होती है। इसलिए शासन के निर्देश पर हर साल अलग-अलग कूपों में बांस की कटाई होती है। कटे हुए बांसों को सरकार द्वारा नीलाम किया जाता है और उससे हुए आय का करीब 15 प्रतिशत हिस्सा लाभांश के तौर पर वन समितियों को दिए जाने का प्रावधान है।
मिली जानकारी के मुताबिक प्रतिबंधित बांस करील को काटने की सूरत में वन्य अधिनियम 33 (संरक्षित) और 26 (आरक्षित) के तहत सख्त अपराध दर्ज करने का प्रावधान है। इस संबंध में खैरागढ़ डीएफओ रामावतार दुबे ने ‘छत्तीसगढ़’ से कहा कि वन्य प्राणियों के द्वारा बांस करील को खाने के दौरान नुकसान पहुंचता है। वहीं वन क्षेत्र में रहने वाले लोगों को बांस करील नहीं तोडऩे की हिदायत समय-समय पर दी जाती है।
इस बीच खैरागढ़ वन मंडल के कटेमा, महुआढ़ार, नक्टी घाटी, घाघरा समेत मलैदा और अन्य इलाकों में बांस करील व्यापक रूप से अंकुरित हुए हैं।
बताया जा रहा है कि साप्ताहिक बाजारों में भी इसका धड़ल्ले से कारोबार किया जा रहा है। बांस की खासियत यह है कि वायुमंडल में ऑक्सीजन और कार्बनडाई ऑक्साईड का आदान-प्रदान कर प्रकृति को संरक्षित करने में अहम भूमिका अदा करता है।