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ऑनलाइन शिक्षा और घर का माहौल लड़कियों के लिए दोहरी चुनौती
17-Sep-2020 9:01 AM
ऑनलाइन शिक्षा और घर का माहौल लड़कियों के लिए दोहरी चुनौती

- Ritika Srivastava

कोरोना काल में हम सभी को बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। लाखों लोग गरीबी, भुखमारी, बेरोजगारी, बीमारी की चपेट में हैं अथवा धकेल दिए गए हैं। शिक्षा के क्षेत्र में लोगों ने ऑनलाइन पढ़ना-पढ़ाना शुरू कर दिया है। मैंने कुछ शिक्षक, शिक्षिकाओं और छात्र, छात्राओं से ऑनलाइन शिक्षा की चुनौतियों के विषय में बात की। कई छात्रों और शिक्षकों ने यह साझा किया कि ऑनलाइन टीचिंग-लर्निंग, इंटरनेट और टेक्नोलॉजी के संसाधन ना होने की वजह से गरीब और वंचित बच्चों के लिए शिक्षा पाना एक बड़ी समस्या बनती जा रही है।  इतना ही नहीं संसाधन संपन्न छात्र भी ऑनलाइन शिक्षा से अब उकता गए हैं। छात्रों और शिक्षकों का एक तबका है जिनके घर में आए दिन परिवार का कोई ना कोई सदस्य कोविड-19 से संक्रमित हो रहा है या अवसाद और दूसरी बीमारियों से ग्रसित है। ऐसी स्थिति में भी शिक्षकों और बच्चों से उम्मीद की जा रही है कि वे ऑनलाइन कक्षाओं में मौजूद रहें। कुछ प्राइवेट स्कूल में बच्चों को ऑनलाइन क्लास में स्कूल ड्रेस पहनकर स्कूल के समय पर ऑनलाइन कक्षा के लिए मौजूद होना अनिवार्य है।

स्कूल और उच्च शिक्षा के संस्थान में पढ़ने वाले छात्र किसी ना किसी प्रकार से कोशिश कर रहे हैं कि वे शिक्षा से वंचित ना रह जाए। कई छात्र ऐसे भी हैं जिनके घर में एक ही कमरा है और पूरा परिवार उसी एक कमरे में रहता है। ऐसे में छात्र ऑनलाइन कक्षा में ना ही ध्यान से बैठ कर पढ़ पा रहे हैं, ना ही कुछ सवाल कर पा रहे हैं। जिनके घर में एक ही मोबाइल है या घर में उपयुक्त जगह नहीं है वे ऑनलाइन शिक्षा में सक्रिय नहीं हैं। मोबाइल नेटवर्क लगभग सभी छात्रों के लिए एक बड़ी समस्या है। छात्रों के परिवार मोबाइल इंटरनेट का रिचार्ज बार-बार कर सकें इसके लिए उनके पास पर्याप्त पैसे भी नहीं है।

लड़कियों के लिए दोगुनी चुनौती

महिला अध्यापकों और छात्राओं से बात करने पर ऑनलाइन शिक्षा की स्थिति और भी विकराल समस्या को उजागर कर देती है। दलित, बहुजन और आदिवासी छात्राएं घर में आर्थिक तंगी और पारिवारिक स्थिति बिगड़ने के कारण पढ़ाई छोड़ने की स्थिति में हैं। कई ऐसी छात्राएं हैं जो ऑनलाइन कक्षा में शामिल तो हो जाती हैं पर घर में परिवार का कोई ना कोई सदस्य उन्हें पढ़ाई के दौरान कुछ ना कुछ घर का काम करने को कहता रहता है। अब स्थिति कुछ ऐसी हो गई है कि लड़कियों को कहा जाने लगा है कि उनका खुद ही पढ़ने में मन ही नहीं लगता। घर का काम करके लड़कियां इतना थक जाती हैं कि पढ़ाई के दौरान उन्हें थकावट महसूस होना स्वाभाविक है। कुछ लड़कियां तो कक्षा के बीच में ही थकान के कारण सो भी जाती हैं। 

कोरोना काल में लड़कियों को घर में स्पेस ना देना, उनकी पढ़ाई को महत्व ना देना और उनको शादी के लिए बाध्य करना ये समस्याएं खुलकर सामने आ रही हैं। यह लड़कियों की हमारे परिवार और समाज में स्थिति को दर्शाता है।

लड़कियां लड़कों के मुकाबले ऑनलाइन कक्षाओं में उतनी सक्रिय नहीं रह पाती। कई यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाली लड़कियों ने बताया कि उनकी शिक्षा को लेकर घर के सदस्य अब चिंतित नज़र नहीं आते हैं। अब तो घर के सदस्य कहने लगे हैं कि पढ़ाई करने का कोई मतलब ही नहीं है क्योंकी आने वाले समय में नौकरी मिलना असंभव है। ऑनलाइन पढ़ाने वाली शिक्षिकाओं ने अपने शिक्षण अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि ऑनलाइन पढ़ाना उनके लिए बेहद मुश्किल हो रहा है क्योंकी घर में रहकर घर के काम ख़त्म होने का नाम ही नहीं लेते। घर के काम में उनकी मदद करने के लिए कोई नहीं है। अधिकतर शिक्षिकाएं छात्रों या उनके माता पिता के फ़ोन और बेवक्त वॉट्सऐप मैसेज से परेशान हैं। कई महिला शिक्षिकाएं जो प्राइवेट स्कूल में पढ़ाती थी अब अपनी नौकरी छोड़ चुकी हैं और कुछ शिक्षिकाएं नौकरी छोड़ने की सोच रही हैं।

यूनिवर्सिटीज में पढ़ रही लड़कियां घर में लैपटॉप न होने के कारण मोबाइल से पढ़ने के लिए मजबूर हैं। अधिक समय तक फ़ोन पर व्यस्त होने की वजह से घर के सदस्य यूनिवर्सिटी की लड़कियों के व्यक्तित्व को मात्र युवा होने की वजह से शक की निगाह से देखने लगे हैं। कई युवा लड़कियों को घर में रोज़ मोबाइल की वजह से ही डांट, गालियां और कभी- कभी तो शारीरिक हिंसा का भी सामना करना पड़ रहा है। कोरोना काल के चलते यूनिवर्सिटीज में पढ़ने वाली लड़कियां उन्हीं के परिवार द्वारा की जाने वाली मौखिक, भावनात्मक और शारीरिक हिंसा की शिकार हो रही हैं। यह लड़कियां ऐसी स्थिति में हैं कि उनको किसी अन्य प्रकार से मदद मिलना भी मुश्किल हो गया है। कोरोना के चलते घरेलू हिंसा का दायरा इतना बड़ा हो गया है कि आंकड़े भी मौजूदा स्थिति बताने में असमर्थ हैं।   

परिवार के सभी सदस्य लड़कियों को जल्द से जल्द लैपटॉप या मोबाइल बंद करने के लिए कहते हैं। कुछ यूनिवर्सिटीज की लड़कियों ने साझा किया कि जब वे मोबाइल पर नहीं पढ़ रही होती तो उनकी गैर-मौजूदगी में परिवार के सदस्य पूरा फ़ोन ठीक से चेक करते हैं। परिवार वाले मोरल पोलिसिंग करते हैं। वे देखते हैं कि लड़की कब, किससे और क्यों बात करती है। युवा लड़कियों ने कहा महामारी से पहले जब वो कभी-कभी हॉस्टल से घर आती थी तो उनको घर पर आना अच्छा लगता था। पर अब उनको घर में रहना अच्छा नहीं लगता, उनको एहसास होता है कि कोई हर समय उन पर नज़र रख रहा हैं। वे खुद को आज़ाद महसूस नहीं करती। युवा लड़कियों ने यह भी कहा कि लड़की होने की वजह से उनको घर में कोई स्पेस नहीं दिया जाता है, ना ही उनकी पढ़ाई के समय की कोई कद्र करता है। कई लड़कियों को शादी के लिए विवश किया जा रहा है। ना चाहते हुए भी परिवार वाले लड़कियों को शादी के लिए लड़का देखने या कम से कम लड़के से बात करने के लिए दबाव डाल रहे हैं। युवा लड़कियों को लगने लगा है कि परिवार जब भी चाहे उनसे उनका शिक्षा का अधिकार छीन सकते हैं। जो लड़कियां हॉस्टल में रहती थी वे अब आपस में और शिक्षिकाओं से पूछने लगी हैं कि हॉस्टल कब खुलेगा, कब वे घर से यूनिवर्सिटी या अपने संस्थान जा सकेंगी।

कोरोना काल में लड़कियों को घर में स्पेस ना देना, उनकी पढ़ाई को महत्व ना देना और उनको शादी के लिए बाध्य करना ये समस्याएं खुलकर सामने आ रही हैं। यह लड़कियों की हमारे परिवार और समाज में स्थिति को दर्शाता है। कोरोना काल में परिवारों ने यह बता दिया है कि लड़कियों की शिक्षा परिवार लिए अधिक महत्व नहीं रखती। साथ ही यह दर्शाता है कि युवा लड़कियों पर परिवार का विश्वास बेहद जर्जर और ना के बराबर है, जो हम सब के लिए बहुत ही शर्मनाक बात है। लड़कियों की यह स्थिति समाज का एक आईना है जो दर्शाता है कि हम लड़कियों की शिक्षा या अपनी प्रगति के कितने भी गुण गाएं, पितृसत्ता के आगे हमारी सब बातें और हमारे सब वादे खोखले हैं।

(यह लेख पहले फेमिनिज्म इन इंडिया की वेबसाइट पर प्रकाशित हुआ है.) 

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