राजनीति
संदीप पौराणिक
भोपाल 17 सितंबर (आईएएनएस)| मध्य प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले दल-बदल की पटकथाएं लिखने का दौर जारी है। आने वाले कुछ दिनों में कई नेताओं के दल-बदल की संभावनाएं बढ़ चली हैं।
राज्य में दल-बदल की शुरुआत मार्च में हुई थी, तब 22 तत्कालीन कांग्रेस विधायकों के पाला बदलने के कारण ही कमल नाथ के नेतृत्व वाली सरकार गिरी थी और भाजपा को सरकार बनाने का मौका मिला। इसके बाद कांग्रेस के तीन और विधायकों ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर भाजपा का दामन थाम लिया।
राज्य में आगामी समय में होने वाले विधानसभा के उपचुनाव से पहले भाजपा और कांग्रेस दोनों ही राजनीतिक दल एक दूसरे को बड़ा झटका देने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। दोनों ही दलों के नेताओं की असंतुष्टों से बातचीत चल रही है, और आगामी दिनों में दल-बदल की संभावनाओं को भी नहीं नकारा जा सकता।
राज्य सरकार के मंत्री विश्वास सारंग कहते हैं कि, "कांग्रेस के कई विधायक भाजपा में आना चाहते हैं, मगर अभी भाजपा ने उन्हें पार्टी में शामिल करने से रोक रखा है। विधायकों के पार्टी छोड़ने से कांग्रेस की कहीं ऐसी स्थिति न हो जाए कि, गिनती के विधायक ही कमलनाथ के साथ रह जाएं।"
वहीं कांग्रेस के प्रवक्ता दुर्गेश शर्मा का कहना है कि, "भाजपा का सारा जोर खरीद फरोख्त पर है, और जो लोग इसमें भरोसा रखते हैं, वे ही कांग्रेस छोड़कर गए हैं। आगामी चुनाव में जनता बिकाऊ लोगों को सबक सिखाने में पीछे नहीं रहेगी।"
राजनीति की जानकारों का मानना है कि आगामी विधानसभा के उप-चुनाव काफी अहम हैं, एक तरफ कमल नाथ की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है, तो दूसरी ओर शिवराज सिंह चौहान व ज्योतिरादित्य सिंधिया को अपना जनाधार साबित करना है। लिहाजा दोनों ही ओर से हर तरह के दाव पेंच आजमाए जा रहे हैं। यही कारण है कि दल-बदल पर दोनों दल जोर लगाने में पीछे नहीं है। इसकी भी वजह है, क्योंकि पार्टियों को लगता है कि दल-बदल से वह अपने वोटबैंक को बढ़ा सकती हैं।