सामान्य ज्ञान

प्राजक्ता
18-Sep-2020 1:17 PM
प्राजक्ता

प्राजक्ता एक पुष्प देने वाला वृक्ष है। इसे परिजात, हरसिंगार, शेफाली, शिउली आदि नामों से भी जाना जाता है। इसका वृक्ष 10 से 15 फीट ऊंचा होता है।  इसका वानस्पतिक नाम  निक्टेन्थिस आर्बोर्टि्रस्टिस  है। पारिजात पर सुंदर और सुगंधित फूल लगते हैं। इसके फूल, पत्ते और छाल का उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है। यह सारे भारत में पैदा होता है। यह पश्चिम बंगाल का राजकीय पुष्प है।
 यह 10 से 15 फीट ऊंचा और कहीं 25-30 फीट ऊंचा एक वृक्ष होता है और पूरे भारत में विशेषत: बाग-बगीचों में लगा हुआ मिलता है। विशेषकर मध्यभारत और हिमालय की नीची तराइयों में ज्यादातर पैदा होता है। इसके फूल बहुत सुगंधित, सफेद और सुन्दर होते हैं जो रात को खिलते हैं और सुबह मुरझा कर गिर जाते हैं।
 विभिन्न भाषाओं में नाम - संस्कृत- पारिजात, शेफालिका। हिन्दी- हरसिंगार, परजा, पारिजात। मराठी- पारिजातक। गुजराती- हरशणगार। बंगाली- शेफालिका, शिउली। तेलुगू- पारिजातमु, पगडमल्लै। तमिल- पवलमल्लिकै, मज्जपु। मलयालम - पारिजातकोय, पविझमल्लि। कन्नड़- पारिजात। उर्दू- गुलजाफरी। इंग्लिश- नाइट जेस्मिन।
 यह हलका, रूखा, तिक्त, कटु, गर्म, वात-कफनाशक, ज्वार नाशक, मृदु विरेचक, शामक, उष्णीय और रक्तशोधक होता है। सायटिका रोग को दूर करने का इसमें विशेष गुण है। इसके फूलों में सुगंधित तेल होता है। रंगीन पुष्प नलिका में निक्टैन्थीन नामक रंग द्रव्य ग्लूकोसाइड के रूप में 0.1 प्रतिशत होता है जो केसर में स्थित ए-क्रोसेटिन के सदृश्य होता है। बीज मज्जा से 12-16 प्रतिशत पीले भूरे रंग का स्थिर तेल निकलता है। पत्तों में टैनिक एसिड, मेथिलसेलिसिलेट, एक ग्लाइकोसाइड (1 प्रतिशत), मैनिटाल (1.3 प्रतिशत), एक राल (1.2 प्रतिशत), कुछ उडऩशील तेल, विटामिन सी और ए पाया जाता है। छाल में एक ग्लाइकोसाइड और दो क्षाराभ होते हैं।
 इस वृक्ष के पत्ते और छाल विशेष रूप से उपयोगी होते हैं। इसके पत्तों का सबसे अच्छा उपयोग गृध्रसी (सायटिका) रोग को दूर करने में किया जाता है। वसंत ऋतु में ये पत्ते गुणहीन रहते हैं इसलिए उस दौरान इसके पत्तों से औषधि नहीं बनाई जाती। 
हर सिंगार की उत्पत्ति के विषय में कथा मिलती है कि पारिजात का जन्म समुद्रमंथन से हुआ था जिसे इंद्र ने स्वर्ग ले जाकर अपनी वाटिका में रोप दिया। पांडवों के अज्ञातवास के समय श्रीकृष्ण ने इसे स्वर्ग से लाकर उ.प्र. के बाराबंकी जनपद अंतर्गत रामनगर क्षेत्र के गांव बोरोलिया में लगाया था। यह वृक्ष आज भी वहां देखा जा सकता है। हर सिंगार नाम से इसका संबंध शिव जी से भी जोड़ा जाता है। हरिवंश पुराण में यह उल्लेख मिलता है कि माता कुंती हरसिंगार के फूलों से भगवान शिव की उपासना करती थीं। धन की देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिये भी हरसिंगार के पुष्पों का प्रयोग किया जाता है।
 पुराणों में एक स्थान पर कहा गया है कि पारिजात वृक्ष को छूने से नर्तकी उर्वशी की थकान मिट जाती थी। बौद्ध साहित्य में भी इन फूलों का उल्लेख है। ऐसा माना जाता है कि इन फूलों को सुखा कर बौद्ध भिक्षुकों के लिए भगवा वस्त्र रंगे जाते थे, जो स्वास्थ्य वर्धक भी होते थे। यही एक मात्र ऐसा पुष्प है जिसे तोडऩे का निषेध किया गया है। पूजा के लिए भी इसके झरे हुए पुष्पों का प्रयोग किया जाता है।
 

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