संपादकीय
केन्द्र सरकार के निर्देश पर देश भर में जगह-जगह विश्वविद्यालय अपने इम्तिहान की तैयारी कर रहे हैं। उसका एक नमूना कल छत्तीसगढ़ में देखने मिला जब यहां कॉलेजों में छात्र-छात्राओं को उत्तरपुस्तिकाएं लेने के लिए बुलाया गया, और वहां पर उनकी ऐसी भीड़ टूट पड़ी, उनकी ऐसी भयानक खतरनाक तस्वीरें सामने आईं कि रात होने तक सरकार को यह इंतजाम वापिस लेना पड़ा। हमारे नियमित पाठकों को याद होगा कि हम इसी जगह पर पिछले महीनों में लगातार इस बात को लिखते आ रहे हैं कि स्कूल-कॉलेज खोलने में कोई हड़बड़ी नहीं करनी चाहिए और हमने यहां तक लिखा कि अगर सरकार स्कूल-कॉलेज जबर्दस्ती खोलती भी है तो भी लोगों को अपने बच्चे नहीं भेजना चाहिए, पढ़ाई तो होती रहेगी, गई जिंदगी तो लौटेगी नहीं।
इस देश में पढ़ाई को लेकर एक अजीब सा बावलापन चल रहा है कि कोरोना महामारी के इस दौर में, लॉकडाऊन के बीच, बीमारी के खतरे के बीच बिना तैयारी के दाखिला-इम्तिहान लिए जाएं, बिना कॉलेजों की पढ़ाई के, बिना किसी डिजिटल-ढांचे के इम्तिहान लिए जाएं। आज हालत यह है कि छत्तीसगढ़ में ही एक विश्वविद्यालय ने किसी किस्म की ऑनलाईन परीक्षा लेना शुरू किया, तो पहले ही दिन सारा इंतजाम चौपट हो गया। एक के बाद एक अलग-अलग विश्वविद्यालयों और अलग-अलग शहरों में यह बवाल देखने मिल रहा है, और आज जब कोरोना जंगल की आग की तरह आगे बढ़ रहा है, तब सरकार मानो बचे हुए पेड़ों पर पेट्रोल छिडक़ने का काम कर रही है।
छत्तीसगढ़ में जिस रफ्तार से कोरोना बढ़ रहा है, और जिस रफ्तार से अस्पतालों में मरीजों के लिए बिस्तर खत्म हो चुके हैं, उसे देखते हुए प्रदेश के कुछ शहरों में व्यापारियों के संगठनों ने लॉकडाऊन दुबारा करने की मांग की है, उसके लिए दबाव डाला है। ये वही संगठन है, यह वही बाजार है जो कि कुछ हफ्ते पहले खुलने के लिए बेताब था क्योंकि लोगों की रोजी-रोटी खत्म हो गई थी। लेकिन आज कोरोना की लपटें जब पड़ोस तक आ चुकी हैं, तो दुकानदार और बाजार भी बंद हो जाना चाहते हैं, राजधानी रायपुर से लगे हुए एक जिले में 20 से 30 सितंबर तक पूरी तरह का लॉकडाऊन बाजार की मांग पर ही घोषित किया है। आज पूरे प्रदेश को लेकर सरकार को यह तय करना चाहिए कि वह भीड़ कैसे-कैसे घटा सकती है, कैसे-कैसे गैरजरूरी काम बंद किए जा सकते हैं, और जिन लोगों की रोजी-रोटी छिन रही है उन्हें जिंदा रहने में कैसे मदद की जा सकती है। एक तरफ केन्द्र सरकार नई संसद और उसके आसपास का नया अहाता कोई 20 हजार करोड़ खर्च करके बनाने जा रही है, दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ में सरकार नई विधानसभा पर पौने 3 सौ करोड़ खर्च होने वाले हैं। कुल 90 निर्वाचित, और एक मनोनीत, इतने जनप्रतिनिधियों का काम फिलहाल मौजूदा विधानसभा से अच्छी तरह चल रहा है, और आज के माहौल में यह खर्च छत्तीसगढ़ की कांग्रेस पार्टी से मोदी के दिल्ली के 20 हजार करोड़ के खर्च की आलोचना करने का हक छीन चुका है।
आज कोरोना के खतरनाक माहौल को देखते हुए, और आगे मौजूद साल-छह महीने, या इससे भी लंबे चलने वाले खतरे को देखते हुए सरकारों को तमाम गैरजरूरी काम खत्म करने चाहिए, जिसमें हम स्कूल-कॉलेज की पढ़ाई, और परीक्षाओं को भी गिन रहे हैं। कल जिस तरह की भीड़ कॉलेजों में लगी है, यह तय है कि छत्तीसगढ़ में उससे दसियों हजार लोगों तक संक्रमण बढ़ जाना तय है। कॉलेजों से ही हजारों छात्र-छात्राएं कोरोना का संक्रमण लेकर लौटे होंगे।
अभी हम जब यह लिख रहे हैं तभी छत्तीसगढ़ के एक जिले से खबर आ रही है कि वहां जंगल की जमीन पर कब्जे के आरोप में वन विभाग लोगों की गिरफ्तारी के लिए पहुंचा, और वहां से दर्जनों महिलाओं ने दर्जनों बच्चों सहित गिरफ्तारी दी और वे लोग कल से जिला अदालत में पेशी के लिए पड़े हुए हैं, कल उनकी बारी नहीं आई तो आज भी किसी एक भवन को जेल घोषित करके उन्हें वहां रखा गया है। यह कमअक्ल हमारी समझ से परे है कि आज ऐसे किसी मामले में गिरफ्तारी की जा रही है जो कि आज ही जरूरी नहीं है। आज तो अधिक से अधिक लोगों को जेलों से पैरोल पर छोड़ देना चाहिए ताकि एक सीमित जगह में असीमित भीड़ पर कोरोना का खतरा घट सके। लेकिन सरकारी अफसरों का मिजाज अधिक से अधिक प्रतिबंध, अधिक से अधिक कार्रवाई का रहता है, क्योंकि उन्हें इलाज का वही एक तरीका मालूम है। आज शहरों में जिन दुकानों पर खूब भीड़ लगती है, उनके खोलने का समय भी सीमित घंटों का रखा गया था, हमने बार-बार इसके खिलाफ लिखा भी था, लेकिन निर्वाचित नेता मानो अफसरों की सलाह से परे खुद कुछ नहीं सोच पा रहे हैं, उन्होंने अफसरों को हर कहीं ऐसी मनमानी की छूट दी, और दुकानों पर अंधाधुंध भीड़ लगी रही। आज कोरोना के तेजी से बढ़ते मामलों के बीच हम एक बार फिर यह सुझाव दे रहे हैं कि सरकारों को अपनी तमाम गैरजरूरी कार्रवाई अगले कई हफ्तों या महीनों के लिए रोक देनी चाहिए, स्कूल-कॉलेज और इम्तिहान इनको अगले कई हफ्तों के लिए रोक देना चाहिए, बाजार में जिन दुकानों और कारोबार को खोलने की छूट देना जरूरी है, उन्हें चौबीसों घंटे खुले रखने की छूट देनी चाहिए, ताकि उन पर कोई भीड़ न जुटे। छत्तीसगढ़ में शराब एक बड़ा मुद्दा है, और बाकी का बाजार बात-बात पर शराब की मिसाल भी देता है कि किराना बंद है, और शराब शुरू है। हम इस मौके पर कांग्रेस पार्टी की इस चुनावी घोषणा पर तुरंत अमल नहीं सुझा रहे कि प्रदेश में शराबबंदी की जाए। लेकिन अगर शराब बेचना है तो दुकानों को रात-दिन खोल देना चाहिए, ताकि जिनको पीना है उनकी भीड़ न लगे। आज भी दुकानों पर धक्का-मुक्की के बीच शराब लेने वाले लापरवाही से बीमारी भी ले-दे रहे हैं, और इस बात का हमारे पास कोई सुबूत तो नहीं हैं, लेकिन सामान्य समझ कहती है कि शराब की वजह से, शराबियों की भीड़ और धक्का-मुक्की के मार्फत कोरोना अधिक फैला है। इसलिए अगर दारू बेचना है तो उसे बिना भीड़, बिना धक्का-मुक्की, बिना समय के नियंत्रण के रात-दिन बेचना चाहिए, उसी तरह किराना, दूध, गैस, चौबीसों घंटे बिकना चाहिए जैसे कि पेट्रोल और डीजल बिकते हैं। किसी भी तरह का काबू जिससे भीड़ इक_ी हो सकती है, वह काबू नहीं आत्मघाती आदेश रहेगा। अभी पूरा प्रदेश एक और लॉकडाऊन के लायक हो चुका है क्योंकि शासन-प्रशासन ने बिना मास्क वाले लापरवाह लोगों पर कोई भी कार्रवाई नहीं की। ऐसी महामारी के बीच भी अगर अफसरों की हिम्मत कार्रवाई की नहीं हो रही है, तो यह बहुत ही शर्म की बात है, बहुत ही निराशा की बात है। सरकार को आज कमर कसकर बैठना चाहिए, और पूरे प्रदेश से किसी भी किस्म की भीड़ के मौके खत्म कर देना चाहिए, वरना श्मशान में लाशों और चिताओं की जो भीड़ बढ़ती चल रही है, उसकी गिनती होना मुश्किल हो चुका है। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)