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चंडीगढ़, 20 सितंबर | मोदी सरकार ने खेती और किसानों से जुड़े जो तीन अध्यादेश लाए उससे नाराज़ होकर शिरोमणि अकाली दल की नेता हरसिमरत कौर बादल ने गुरुवार को केंद्रीय कैबिनेट से इस्तीफ़ा दे दिया था.
शिरोमणि अकाली दल बहुत लंबे समय से बीजेपी की सहयोगी पार्टी रही है. लेकिन मोदी कैबिनेट से इस्तीफ़ा देकर हरसिमरत कौर ने इस मामले में पार्टी के 'कड़े रुख़' का संकेत दिया है.
हालांकि, अकालियों के आलोचक कह रहे हैं कि हरसिमरत कौर ने पंजाब के किसानों के बड़े विरोध प्रदर्शनों के दबाव में आकर यह निर्णय लिया, वरना पहले अकाली दल इन अध्यादेशों का समर्थन कर रहा था.
I have resigned from Union Cabinet in protest against anti-farmer ordinances and legislation. Proud to stand with farmers as their daughter & sister.
— Harsimrat Kaur Badal (@HarsimratBadal_) September 17, 2020
अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने हाल ही में ट्विटर पर लिखा कि "ये अध्यादेश क़रीब 20 लाख किसानों के लिए तो एक झटका है ही, साथ ही मुख्य तौर पर शहरी हिन्दू कमीशन एजेंटों जिनकी संख्या तीस हज़ार बताई जाती है, उनके लिए और क़रीब तीन लाख मंडी मज़दूरों के साथ-साथ क़रीब 30 लाख भूमिहीन खेत मज़दूरों के लिए भी यह बड़ा झटका साबित होगा."
उन्होंने यह भी लिखा कि 'सरकार 50 साल से बनी फ़सल ख़रीद की व्यवस्था को बर्बाद कर रही है और उनकी पार्टी इसके ख़िलाफ़ है.'
इस पूरे मामले पर अकाली दल की राय और हरसिमरत कौर के निर्णय को बेहतर ढंग से समझने के लिए बीबीसी संवाददाता अरविंद छाबड़ा ने उनसे बात की.
सवाल: आपके इस्तीफ़े पर पंजाब के मुख्यमंत्री का कहना कि ये 'टू लिटिल, टू लेट' है.
जवाब: मैंने इस्तीफ़ा दे दिया है, अब आप भी कुछ करिए. क्या आपके सांसद इस्तीफ़ा देंगे इसके विरोध में. मैंने कैप्टन साहब कुछ कर दिखाया, आपने झूठे नारों और बातों के अलावा किया क्या.
सवाल: आपने इस्तीफ़ा क्यों दिया?
जवाब: मैंने इस्तीफ़ा पंजाब के किसानों के लिए दिया है. मैं पिछले ढाई महीनों से कोशिश कर रही थी कि किसानों की जो शंकाएं हैं उन्हें दूर किया जा सके. पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के किसानों के मन में शंकाएं थीं. मैं चाहती थी कि ऐसा क़ानून लाया जाए जो इनकी शंकाओं को दूर करे.
लेकिन बहुत प्रयास करने के बावजूद जब मैं किसानों को नहीं समझा पाई और मुझे लगा कि ऐसे क़ानून को संख्या के दम पर लोगों पर थोपा जा रहा है, तब मैंने निर्णय लिया कि मैं ऐसी सरकार का हिस्सा नहीं बन सकती जो ऐसा क़ानून मेरे अपनों पर थोप दें, जिससे इनका भविष्य ख़राब हो सकता है.
सवाल: पहले आप और आपकी पार्टी इन विधेयकों का समर्थन कर रहे थे, अब इस यू-टर्न का क्या कारण है?
जवाब: ये यू-टर्न नहीं है. मैं लोगों और सरकार के बीच ब्रिज का काम करती हूँ. मेरा काम है कि लोगों के ऐतराज़ को सरकार तक पहुँचाया जाए. तो मैंने इसके लिए काफ़ी कोशिश की, किसानों की बात उनके पास रखी.
सवाल: जिन किसानों के समर्थन में आपने इस्तीफ़ा दिया है, वो किसान ये भी माँग कर रहे हैं कि आप बीजेपी से रिश्ता तोड़ लें, एनडीए गठबंधन को छोड़ दें. क्या आप ऐसा करेंगी?
जवाब: मैं पार्टी की एक आम वर्कर हूँ. इस तरह के फ़ैसले पार्टी का शीर्ष नेतृत्व और कोर कमेटी करती है. लेकिन हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि तीन दशक पहले जो ये गठबंधन प्रकाश सिंह बादल और अटल बिहारी वाजपेयी के बीच हुआ था, ये उस समय के काले दौर और पड़ोसी दुश्मन देश की हरक़तों के मद्देनज़र पंजाब की तरक्की और भाईचारे के लिए किया गया था जो हम अभी तक निभाते भी आ रहे हैं. आज भी वो पड़ोसी दुश्मन अपनी हरक़तों से बाज़ नहीं आया है. इसलिए पंजाब की अमन-शांति और भाईचारा आज भी ज़रूरी हैं लेकिन इसके बराबर या शायद इससे ज़्यादा ज़रूरी पंजाब की किसानी है.
सवाल: जैसा आप बता रही हैं कि भाईचारे की ज़रूरत आज भी है, तो क्या गठबंधन भी आज ज़रूरी है.
जवाब: ये जो गठबंधन था वो पंजाब की अमन शांति और भाईचारे के लिए था, लेकिन जब बात किसानों की आएगी तो मुझे नहीं लगता कि अकाली दल को इस बारे में सोचने की ज़रूरत पड़ेगी. ये फ़ैसला अकाली दल के लिए बिल्कुल साफ़ होगा. लेकिन ये फ़ैसला मेरा नहीं, ये फ़ैसला पार्टी की लीडरशिप को करना है. हम उनके फ़ैसले का इंतज़ार करेंगे.
सवाल: राज्य के किसान इस वक़्त गुस्से में हैं. सड़कों पर हैं और आपके घर के बाहर भी प्रदर्शन कर रहे हैं, तो क्या आप इनके प्रदर्शन में शामिल होंगी?
जवाब: बिल्कुल. मैंने इस्तीफ़ा किस लिए दिया है. पहले मेरा फ़र्ज था कि मैं सरकार में रहकर किसानों की माँगों को पूरा करवाने का काम करूं. लेकिन जब उसमें मैं असफल हो गई, तो अब मैं किसानों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ाई लड़ूंगी.
सवाल: आपका बीजेपी के साथ इतना पुराना रिश्ता रहा है. आपकी बिल को देरी से पेश करने की जो माँग थी, उसको सुना क्यों नहीं गया?
जवाब: ये बात मुझे भी समझ में नहीं आयी. जिन अफ़सरों ने क़मरे में बंद होकर इस क़ानून को बनाया है, वो ज़मीन से जुड़े हुए नहीं हैं और बहुत से विरोध करने वाले भी ऐसे ही हैं. उनमें भी कमी रह गई इसका कारण बताने में. ज़रूर ज़मीनी लेवल पर इनका कनेक्ट नहीं है, ये कमी रह गई है.
सवाल: पीएम मोदी ने कहा कि किसानों को ग़लत जानकारी दी गई है और बिल किसानों के हित का ही है, क्या आप ये बात मानती हैं?
जवाब: मैं जब इस्तीफ़ा देने वाली थी तो मुझे ये कहा गया कि किसान कुछ दिनों में शांत हो जाएंगे. मैंने उनसे कहा कि ये तो आप ढाई महीने से कह रहे हैं. ये आग पूरे देश में फ़ैल जाएगी, हमें क्या ज़रूरत है इस क़ानून की. ये आपकी ग़लतफ़हमी है. मैंने एक दिन पहले तक उन्हें समझाने की कोशिश की. अगर हम किसानों को इतना मासूम समझे कि वो किसी की बातों में आकर विरोध कर रहे हैं, तो हम उनको शांत भी तो कर सकते हैं. अगर उन्हें कोई और उठा रहा है, तो सही बात बताकर आप उन्हें समझाएं. सरकार चलाने का ये तरीका नहीं होता. जिन लोगों ने हमें यहाँ भेजा है, चुना है, तो हम क्या कर रहे हैं.(BBCNEWS)