सामान्य ज्ञान
अमेरिका के न्यू इंग्लैंड में 21 सितंबर, 1938 में एक भयानक तूफान आया जिसे द ग्रेट हरिकेन नाम दिया गया था। इसे अब तक के सबसे खतरनाक तूफानों में एक गिना जाता है, जिससे जान माल की भारी हानि हुई।
1938 सितंबर को अफ्रीका के तट के पास द ग्रेट हरिकेन पैदा होने लगा। इसकी तीव्रता लगातार बढ़ती गई और 21 सितंबर को तूफान अमेरिका के पूर्वी तट पर लॉन्ग आइलैंड पर पहुंचा। तूफान की वजह से 800 लोगों की मौत हो गई और लगभग 60 हजार घर तबाह हो गए। माना जाता है कि उस वक्त जितना नुकसान हुआ, वह आज के हिसाब से करीब 4.7 अरब डॉलर है। 1951 में भी द ग्रेट हरिकेन के दौरान तबाह हुए पेड़ और इमारत देखे जा सकते थे। न्यू इंग्लैंड में इससे पहले और इसके बाद अब तक इतना घातक तूफान नहीं आया। कहते हैं कि 1635 में द ग्रेट कोलोनियल हरिकेन काफी खतरनाक था और 2012 में हरिकेन सैंडी ने भी पैसों के लिहाज से बहुत नुकसान किया, लेकिन इनके मुकाबले द ग्रेट हरिकेन अब भी सबसे महंगा पडऩे वाला तूफान माना जाता है।
न्यूयॉर्क टाइम्स ने 1938 में इस तूफान की रिपोर्ट कुछ इस तरह पूरी की, न्यू बेडफोर्ड का पूरा शहर अंधेरे में डूबा था और सिर्फ दो इमारतों पर रोशनी दिख रही थी। बिजली सप्लाई कहीं नहीं थी। अधिकारियों ने सिर्फ इस शहर का नुकसान 10 लाख डॉ़लर (उस वक्त के हिसाब से) से ऊपर आंका है। पानी में फंसे घरों में राहत और बचाव के लिए सुरक्षा एजेंसियों को बुलाया गया है।
वायुु पुराण
विद्वान लोग वायु पुराण को स्वतंत्र पुराण न मानकर शिव पुराण और ब्रह्माण्ड पुराण का ही अंग मानते हैं। परन्तु नारद पुराण में जिन अट्ठारह पुराणों की सूची दी गई हैं, उनमें वायु पुराण को स्वतंत्र पुराण माना गया है। चतुर्युग के वर्णन में वायु पुराण मानवीय सभ्यता के विकास में सत युग को आदिम युग मानता है।
वर्णाश्रम व्यवस्था का प्रारम्भ त्रेता युग से कहा गया है। त्रेता युग में ही श्रम विभाजन का सिद्धांत मानव ने अपनाया और कृषि कर्म सीखा। वायु पुराण का कथानक दूसरे पुराणों से भिन्न है। यह साम्प्रदायिकता के दोष से पूर्णत: युक्त है। इसमें सूर्य, चन्द्र, ग्रह-नक्षत्र, ज्योतिष, आयुर्वेद आदि का वर्णन है, परन्तु सर्वथा नए रूप में है। विष्णु और शिव-दोनों को सम्मानजनक रूप से उपासना के योग्य माना गया है। वायु पुराण के कथानक अत्यन्त सरल और आडम्बर विहीन हैं। इसमें सृष्टि रचना, मानव सभ्यता का विकास, मन्वन्तर वर्णन, राजवंशों का वर्णन, योग मार्ग, सदाचार, प्रायश्चित्त विधि, मृत्युकाल के लक्षण, युग धर्म वर्णन, स्वर, ओंकार, वेदों का आविर्भाव, ज्योतिष प्रचार, लिंगोद्भव, ऋषि लक्षण, तीर्थ, गन्धर्व और अलंकार शास्त्र आदि का वर्णन प्राप्त होता है। इसमें 112 अध्याय एवं 10 हजार 991 श्लोक हैं।