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पाकिस्तान: बलात्कार मामले में महिला पर ही सवाल, फूटा लोगों का ग़ुस्सा
28-Sep-2020 10:29 AM
पाकिस्तान: बलात्कार मामले में महिला पर ही सवाल, फूटा लोगों का ग़ुस्सा

- सायरा आशर

पिछले दिनों अपने बच्चों के साथ रास्ते में फंसी महिला के साथ गैंगरेप की एक घटना ने पूरे पाकिस्तान को हिलाकर रख दिया है.

जिस देश में महिलाओं के साथ यौन हिंसा आम बात है, वहां इस घटना की वजह से लोग सड़कों पर आकर बदलाव की मांग कर रहे हैं.

पाकिस्तान में महिलाओं को अक्सर परिवार वाले या रिश्तेदार सलाह देते हैं कि वो देर रात बाहर ना जाएं, या अपनी सुरक्षा के लिए किसी पुरुष को साथ लेकर ही जाएं.

लेकिन जब हमलावरों को ढूंढने की ज़िम्मेदारी संभाल रहे एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने अपराध का दंश झेलने वाली महिला पर ही सवाल उठा दिया कि वो देर रात अकेली बाहर क्यों गई, तो इससे लोगों का गुस्सा फूट बड़ा.

इस तरह की टिप्पणियों पर पहले सार्वजनिक तौर पर सवाल नहीं उठते थे, लेकिन इस बार इस पर नाराज़गी जताते हुए इसे 'विक्टिम-ब्लेमिंग' कहा जा रहा है.

एक नारीवादी समूह से जुड़ी मोनेज़ा अहमद कहती हैं, "विक्टिम पर ही आरोप लगाना, एक महिला के चरित्र पर सवाल उठाना और कहना कि वो पीड़िता है भी या नहीं, ऐसी बात हमारा समाज दशकों से कहता रहा है. इसलिए अब ये प्रतिक्रिया संकेत है कि हमारा समाज सुन रहा है, बदल रहा है और बहुत सी महिलाएं आवाज़ उठा रही हैं."

'हाइवे पर बलात्कार' की घटना क्या थी?

9 सितंबर को देर रात क़रीब 3 बजे शिकार महिला लाहौर से जा रही थी जब हाइवे पर उनकी कार का पेट्रोल ख़त्म हो गया था. उनके दो बच्चे उनके साथ थे.

उन्होंने गुजरांवाला के अपने रिश्तेदारों को फ़ोन किया, जिन्होंने उन्हें पुलिस हेल्पलाइन पर फ़ोन करने के लिए कहा और वो ख़ुद भी मदद के लिए निकल पड़े.

महिला के एक रिश्तेदार ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई, जिसके मुताबिक़ दो लुटेरे आए जिन्होंने कार का शीशा तोड़ा. हमलावरों की उम्र क़रीब 30 साल बताई जा रही है. शिकायत के मुताबिक़ उन्होंने महिला से पैसे और गहने छीन लिए. इसके बाद वो महिला को पास के खेत में ले गए और दोनों बच्चों के सामने बलात्कार दिया और फिर वहां से भाग गए.

पुलिस ने घटना के बाद कहा कि महिला सदमे में थी, हालांकि उन्होंने कुछ जानकारी दी है कि हमलावर कैसे दिखते थे.

दूसरे दिन लाहौर के सबसे वरिष्ठ अधिकारी उमर शेख मीडिया के सामने आए और कहा कि इसमें महिला की भी ग़लती है. उन्होंने सवाल उठाया कि महिला बच्चों के साथ अकेली थी तो वो व्यस्त रास्ते से क्यों नहीं गई या निकलने से पहले पेट्रोल चेक क्यों नहीं किया.

उन्होंने कई बार टीवी पर इन बातों को दोहराया, साथ ही कहा कि महिला फ्रांस की रहने वाली है, इसलिए उसे लग रहा होगा कि पाकिस्तान भी फ्रांस जितना ही सुरक्षित है.

इस पर देश भर से जैसी प्रतिक्रियाएं आईं, वो पहले कभी नहीं आई थीं और ये प्रतिक्रिया हर तरफ से आई हैं.

सोशल मीडिया पर लोगों ने उनकी ये कहकर आलोचना की कि वो 'विक्टिम-ब्लेमिंग' कर रहे हैं.

केंद्रीय मानवाधिकार मंत्री शिरीन मजारी ने ट्विटर पर कहा, "ये स्वीकार नहीं किया जा सकता कि एक अधिकारी ये कहते हुए महिला को ही गैंग-रेप के लिए दोषी ठहराए कि उसे जीटी रोड से जाना चाहिए था या वो बच्चों के साथ रात को बाहर क्यों गई. हमने इस मामले को संज्ञान में लिया है. बलात्कार के अपराध को कभी भी तर्कसंगत नहीं बनाया जा सकता."

पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग ने भी पुलिस अधिकारी के बयान की आलोचना की है.

मोनेज़ा अहमद कहती हैं कि वो और दूसरी महिलाएं "एक पितृसत्तात्मक सोच के ख़िलाफ़ लड़ रही हैं, जिसमें महिला को ही बलात्कार के लिए दोषी ठहराया जाता है या कहा जाता है कि वो अपने बच्चों के साथ रात में बाहर नहीं जा सकती, अगर जाती है तो उसे ग़लत कहा जाता है."

बदलाव की मांग कर रही हैं 'बहादुर महिलाएं'

पुलिस प्रमुख ने इसी हफ़्ते अपने बयान के लिए माफ़ी मांग ली थी लेकिन इसके बावजूद लोगों को गुस्सा ठंडा होता नहीं दिख रहा है.

न्यायविदों की अंतरराष्ट्रीय समिति के दक्षिण एशिया कार्यक्रम की क़ानूनी सलाहकार रीमा ओमर कहती हैं, "सभी राजनीतिक पार्टियों के प्रतिनिधि, सामाजिक कार्यकर्ता, शिक्षाविद टीवी पर एक ही बात कह रहे हैं. बहादुर महिलाएं बहुत ही खूबसूरती से सामने आ रही हैं."

देश भर के बड़े शहरों में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. साथ ही पुलिस, क़ानून, अदालत और सज़ा से जुड़ी प्रणालियों में सुधार की मांग हो रही है.

मगर बलात्कार की शिकार महिलाओं को इस सब से ना के बराबर मदद मिलती है. पाकिस्तान में बलात्कार के बहुत कम मामलों में मुक़दमा चलाया जाता है और इससे भी बहुत कम मामलों में न्याय मिल पाता है.

केंद्रीय मंत्री फवाद चौधरी ने पिछले हफ़्ते नेशनल असेंबली में कहा कि हर साल औसतन पांच हज़ार बलात्कार के मामले दर्ज किए जाते हैं और इनमें से सिर्फ पांच प्रतिशत में दोषी को सज़ा मिल पाती है.

हालांकि महिला अधिकारों के लिए काम करने वाले समूह कहते हैं कि असल आंकड़े तो इससे भी कम हैं और बहुत से रेप के मामले तो पुलिस तक पहुंचते ही नहीं.

महिलाओं को डर होता है कि पुलिस में जाकर उन्हें अपमान सहना होगा और सार्वजनिक तौर पर बताने पर समाज की नज़रें उनपर उठेंगी.

बीबीसी उर्दू से बात करते हुए वक़ील और सामाजिक कार्यकर्ता हिना जिलानी ने कहा कि पुलिस और न्यायतंत्र को बलात्कार जैसे अपराध के प्रति संवेदनशील बनाए जाने की ज़रूरत है. साथ ही फोरेंसिक साक्ष्यों को इकट्ठा करने के तरीक़े और जांच की कार्यप्रणाली को सुधारने की ज़रूरत है.

2002 में मुख्तार माई का मामला अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में रहा था. दरअसल उन्होंने उन पुरुषों के ख़िलाफ़ क़ानूनी कदम उठाने का फैसला लिया था, जिन्होंने एक ग्राम सभा के आदेश पर उनके साथ गैंग-रेप किया था.

उन्होंने एक लंबी क़ानूनी लड़ाई लड़ी. जो पाकिस्तान में असामान्य बात थी क्योंकि यहां महिलाएं अपने साथ हुए बलात्कार को रिपोर्ट करने के बजाए अपनी जान ले लेती हैं. लेकिन इस लंबी लड़ाई के बावजूद मुख्तार माई के साथ बलात्कार करने वाले छह अभियुक्तों को 2011 में सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया.

लेकिन इस बार के 'हाइवे पर बलात्कार' मामले में लोग मुखर होकर प्रतिक्रिया दे रहे हैं और विक्टिम-ब्लेमिंग की मानसिकता पर सवाल उठा रहे हैं.

हाल के सालों में पाकिस्तान में ज़्यादा मुखर और सोशल मीडिया पर सक्रिय नारीवादी समूहों का उभार हुआ है, जो महिलाओं की आज़ादी पर प्रतिबंध लगाने वाली सामाजिक बेढ़ियों को चुनौती दे रही हैं.

ओमर कहती हैं, "अब कई ऐसी महिलाएं है जो सोशल मीडिया पर अपनी बात रख रही हैं और मेनस्ट्रीम मीडिया में बोल रही हैं और हमारी कोशिशों को मज़बूत कर रही हैं."(bbc)

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