संपादकीय
उत्तरप्रदेश एकाएक इतनी बुरी तरह खबरों में हैं कि भगवान राम भी मंदिर पूरा होने का इंतजार करते हुए इतनी बुरी खबरों के लिए तैयार नहीं रहे होंगे। एक कार्टूनिस्ट ने कार्टून बनाया है कि एक लडक़ी मरकर ऊपर पहुंची है, और भगवान राम से लिपटकर पूछ रही है कि मेरे मां-बाप मुझे एक आखिरी बार क्यों नहीं देख सकते थे? और राम के पास इसका कोई जवाब नहीं है। लेकिन उत्तरप्रदेश की सरकार और वहां की पुलिस राम नहीं है, और उसके पास इस बात का जवाब है कि लडक़ी की लाश खराब हो रही थी, इसलिए सुबह का इंतजार किए बिना, परिवार और गांव को उनके घरों में बंद करके लाश को आधी रात के बाद जला दिया। जलने की तस्वीरें देखें तो महज वर्दीधारी पुलिसवाले ही आसपास खड़े हैं। पुलिस का दावा है कि बलात्कार की शिकार और एक बहुत ही खूंखार हिंसा की शिकार इस दलित युवती के परिवार से अंतिम संस्कार की इजाजत ली गई थी, और पूरा परिवार, पूरा गांव पुलिस के इस दावे को फर्जी बता रहा है। इस दावे को फर्जी समझने के लिए किसी रॉकेट साईंस की जानकारी जरूरी नहीं है, जिस तरह अस्पताल से लाश लेकर यूपी पुलिस इस लडक़ी के गांव गई, वहां के जैसे वीडियो मौजूद हैं, और जिस तरह कुछ घंटों में लाश के और सड़ जाने की फिक्र में बड़े-बड़े अफसर दुबले होते दिख रहे हैं। पता नहीं कितने मामलों में ऐसी मौत होने के बाद अफसर अपनी रात हराम करते हैं, क्योंकि इसी यूपी का यह रिकॉर्ड है कि इसी युवती से बलात्कार और इसके साथ जानलेवा हिंसा की रिपोर्ट मिलने पर भी पुलिस ने कुछ नहीं किया था। जब यह लडक़ी दिल्ली के अस्पताल लाई गई, तब भी 13-14 दिन हो चुके थे, और सरकार की ओर से इस लडक़ी के परिवार से किसी ने बात नहीं की थी। आज जब यह देश का सबसे चर्चित और खौफनाक रेप-केस हो गया है, तो मुख्यमंत्री सीधे परिवार की आर्थिक मदद की मुनादी कर रहे हैं।
लेकिन इस मौत की खबर के बाद यूपी में कम से कम दो और ऐसे ही गैंगरेप हो चुके हैं, और इनमें से कम से कम एक की खबर तो लडक़ी के दलित होने, और उसके बदन को बलात्कार के बाद तोड़ देने, और उसकी मौत की बात बता रही है। देश हिला हुआ है, और इस देश में मामूली सी दिलचस्पी रखने वाले दुनिया भर में बिखरे हुए लोग भी हिले हुए हैं। यूपी की पुलिस पिछले कुछ बरसों में लगातार साम्प्रदायिक सोच की सेवा कर रही है। जब सरकार की नजरों में साम्प्रदायिकता आ जाती है, तो उसका पहला लक्षण पुलिस में दिखता है। पुलिस कोरोना की तरह नहीं होती कि वह असिम्पटोमैटिक हो, लक्षणविहीन हो, यह वर्दी की खासियत होती है, खूबी कहें, या खामी कहें, जो भी कहें वह होती है कि उसमें लक्षण सिर चढक़र बोलता है। इसलिए आज यूपी की कानून व्यवस्था के इंचार्ज जो एडीजी हैं, वे प्रशांत कुमार दो बरस पहले तब खबरों में आए थे जब वे सरकारी हेलीकॉप्टर लेकर उड़े थे, और जमीन पर चल रहे कांवरियों पर अपने हाथों से फूल बरसाया था, और जाहिर है कि हेलीकॉप्टर के भीतर से ऐसी तस्वीरें उनकी खुद की मर्जी से ही सामने आई थीं। उस वक्त वे मेरठ रेंज के एडीजी थे, और शायद बरसाए गए फूलों का ही प्रताप था कि आज वे कानून व्यवस्था के इंचार्ज एडीजी हैं जो कि विभाग के मुखिया के तुरंत बाद की दूसरे नंबर की पोस्ट मानी जाती है।
उत्तरप्रदेश का योगी राज दलित अत्याचार के रोज नए पन्ने दर्ज कर रहा है। उत्तरप्रदेश के मिजाज को जानने वाले यह समझते हैं कि इस राज्य में पुलिस अगर जातिवादी होती है तो वह मुख्यमंत्री का चेहरा देखकर होती है, वह अगर साम्प्रदायिक होती है, तो भी मुख्यमंत्री का चेहरा देखकर होती है। पूरी तरह अराजक हो चुके इस प्रदेश में बलात्कार और हत्या की जैसी जातिवादी घटनाएं हो रही हैं, और जिस दर्जे की खूंखार और बर्बर ज्यादती हो रही है, वह पूरे के पूरे दलित तबके, अल्पसंख्यक तबके को दहशत में लाकर दूसरे दर्जे का नागरिक बनाने के लिए काफी है। लोग कल से सोशल मीडिया पर लिख रहे हैं, और गलत नहीं लिख रहे हैं कि ऐसे सामूहिक बलात्कार और हिंसा की शिकार दलित युवती की मौत के बाद लाश को घर तक न जाने देना, और पुलिस द्वारा जला देना बाकी तमाम दलितों के लिए एक चेतावनी है कि अगर बलात्कार की रिपोर्ट की तो अपनी बहन-बेटी का अंतिम संस्कार भी नसीब नहीं होगा, चेहरा भी देखना नसीब नहीं होगा।
हम इसी लडक़ी की बात करें जो कि आज हाथरस के नाम से चर्चित हो गई है, तो इसके साथ हुई हिंसा को पुलिस नकार रही है। अब ऐसी हिंसा में तो एक के बाद दूसरा पोस्टमार्टम भी एक आम बात रहती है, लेकिन यूपी की पुलिस ने यह गुंजाइश नहीं छोड़ी है, उसने लाश को बलपूर्वक जला दिया ताकि अब उसकी जीभ काटने, उसकी रीढ़ की हड्डी तोडऩे जैसी बातों को कोई साबित न कर सके। लोगों ने यह भी लिखा है कि इस तरह आधी रात पुलिस के हाथों जलाया जाना उस दलित लडक़ी की लाश के साथ बलात्कार के बराबर है।
यह अंदाज लगाना हमारे लिए तो बिल्कुल नामुमकिन है कि कैसे यूपी सरकार के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, और उनके अफसर लोगों को मुंह दिखा पा रहे हैं। यह किसी भी राज्य के लिए एक भयानक शर्मिंदगी की बात है कि पूरा का पूरा पुलिस महकमा कहीं पेशेवर मुजरिमों के साथ गिरोहबंदी करके चल रहा है, और पुलिस छापे की खबर मुजरिमों को पहले से करके अपने ही पौन दर्जन साथियों की हत्या करवा दे रहा है, किस तरह वहां मुठभेड़-हत्याएं हो रही हैं, किस तरह वहां मुजरिमों को लाते हुए गाडिय़ां पलट रही हैं, और मुजरिम मारे जा रहे हैं। यह पूरा सिलसिला कानून के राज के खत्म हो जाने का सुबूत है, लेकिन सरकार है कि उसके चेहरे पर शिकन भी नहीं पड़ रही है। मुख्यमंत्री राजनीति के अलावा एक मठाधीश हैं, और स्वघोषित योगी हैं। हो सकता है कि योग लोगों को इतना बर्दाश्त करने की ताकत देता हो। यह आज महज इस राज्य की शर्मिंदगी की बात नहीं है, यह एक राष्ट्रीय शर्मिंदगी की बात है कि जिस प्रदेश ने सबसे अधिक प्रधानमंत्री दिए थे, जिस प्रदेश से मौजूदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सांसद बने हैं, उस प्रदेश में पुलिस सबसे बुरे मुजरिमों के टक्कर के जुर्म करते दिख रही है।
लेकिन आखिर में बात पूरी करने के पहले एक बार यह भी सोचें कि उत्तरप्रदेश और वहां की योगी सरकार से परे, पूरे देश को इस घटना को लेकर क्या सोचने की जरूरत है। जिस तरह बलात्कार हो रहे हैं, उन्हें बारीकी से देखा जाए तो एक रूख साफ दिखता है। ये ताकतवर के हाथों कमजोर का बलात्कार है, ये एक गिरोह के हाथों अकेली लडक़ी का बलात्कार है, ये ऊंची कही जाने वाली जाति के हाथों छोटी कही जाने वाली जाति का बलात्कार है, यह संपन्न लोगों के हाथों विपन्न लोगों का बलात्कार है, यह सत्ता की ताकत वाले लोगों का जनता के साथ बलात्कार है। हिन्दुस्तान में आज बलात्कार के ये आम पहलू हैं, और इन्हें अनदेखा करते हुए इन्हें कम करने का कोई रास्ता नहीं निकल सकता। यह रास्ता इसलिए भी नहीं निकल सकता कि महिला आयोग से लेकर मानवाधिकार आयोग तक जो संवैधानिक संस्थाएं राज्यों से लेकर केन्द्र तक बनती हैं, उनमें सत्तारूढ़ दल के लोगों को मनोनीत किया जाता है जो कि सत्ता के जुर्म छुपाने के लिए जुटे रहते हैं, न कि बाकी इंसानों या महिलाओं को हिफाजत देने का काम करते हैं। देश की पुलिस यूपी में कुछ अधिक हद तक सत्ता के प्रति सूरजमुखी का फूल होगी, लेकिन बाकी प्रदेशों में भी पुलिस का कमोबेश ऐसा ही हाल है, और किसी जुर्म होने पर पुलिस सबसे पहले यह देखती है कि जुर्म के शिकार ताकतवर या महत्वपूर्ण तो नहीं है, और मुजरिम कितने ताकतवर या कितने महत्वपूर्ण है। इस बुनियाद पर पुलिस की कार्रवाई और जांच शुरू होती है, और हर दिन जांच अफसर यह तौल लेते हैं कि सत्ता का रूख आज कैसा है, सूरज की तरफ घूम जाने वाले सूरजमुखी के फूल की तरह पुलिस यही काम करती है, सत्ता का चेहरा देखकर जुर्म तय करती है।
खैर, पुलिस को ही क्यों कोसें, आज तो पूरे देश का माहौल यह है कि बड़ी-बड़ी अदालतें भी सत्ता का चेहरा देखकर फैसले तय करती हैं। ऐसे देश में किसी भी कमजोर के लिए कोई लोकतांत्रिक और कानूनी अधिकार नहीं है। यह देश कमजोर लोगों के लिए 5 बरस में एक बार वोट देने के हक का पाखंड खड़ा करने वाला देश होकर रह गया है, यहां नीची समझी जाने वाली जाति के गरीब परिवार को अपनी बेटी की लाश जलाने का हक भी नहीं रह गया है। ऐसी एक जाति से आए हुए, और संविधान लिखने में सबसे महत्वपूर्ण डॉ. बाबा साहब अंबेडकर ने ऐसा कोई दिन सोचा था?(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)