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बिहार के चुनावी-टीके पर शिवसेना का तंज, ‘सामना’ का संपादकीय: नए टीके की आवश्यकता!
24-Oct-2020 12:51 PM
बिहार के चुनावी-टीके पर शिवसेना का तंज,  ‘सामना’ का संपादकीय: नए टीके की आवश्यकता!

कार्टूनिस्ट मीका अजीज़

भारतीय जनता पार्टी की असली नीति क्या है? उनका दिशा-दर्शक कौन है? इस बारे में थोड़ा भ्रम का माहौल बना दिख रहा है। दो दिन पहले ही प्रधानमंत्री मोदी ने जनता को आश्वासन दिया था कि सरकार प्रयास करेगी कि कोरोना का ‘टीका’ आते ही उसे देश के सभी लोगों तक पहुंचाया जाए। प्रधानमंत्री टीके का वितरण करते समय कहीं भी जाति, धर्म, प्रांत, राजनीति बीच में नहीं लाए। लेकिन अब बिहार विधानसभा प्रचार में भाजपा नेताओं ने विचित्र कदम उठाया है। कोरोना के टीके का उत्पादन शुरू होने पर बिहार की जनता के लिए टीका मुफ्त में उपलब्ध होगा, ऐसा वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा ही है। लेकिन भाजपा के घोषणापत्र में भी ऐसा वचन पहले क्रमांक पर दिख रहा है। बिहार विधानसभा चुनाव कोरोना संक्रमण काल में होने वाला पहला बड़ा चुनाव है। वर्चुअल सभाएं होंगी और पारंपरिक कार्यक्रम नहीं होंगे, ऐसा वातावरण बन गया था। लेकिन बिहार के मैदान की सभाएं सारे सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों को ताक पर रखकर हो रही हैं। नेताओं के हेलीकॉप्टर उड़ रहे हैं और प्रचंड भीड़ के कार्यक्रम शुरू हैं। इस भीड़ में हो सकता है ‘कोरोना’ की दबकर मौत हो जाए और राजनीतिक क्रांति हो जाए, ऐसी तस्वीर बिहार में दिख रही है। लोगों को कोरोना का डर नहीं रहा। उन्हें बिहार में सत्ता बदलनी है। बिहार में जो निर्णय आना होगा, वह आएगा लेकिन भाजपा ने लोगों के मन में कोरोना का डर बढ़ाकर मुफ्त टीके की सुई लगाने का ‘फोकट’ उद्योग शुरू किया है। अर्थात ‘तुम हमें वोट दो हम तुम्हें कोरोना का टीका मुफ्त में लगाएंगे’, यह इस प्रकार का सौदा है। मतदाताओं को डरा कर टीका लगाने की यह बात चुनाव आयोग की नजर से वैससे छूट गई? आजादी के पहले ‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ का मंत्र था जो कि भारत मां का आक्रोश था। उसी तरह ‘तुम मुझे वोट दो हम तुम्हें टीका देंगे’! का नारा दिया गया दिख रहा है। सत्ता पाने के लिए और मतदाताओं को बहलाने के लिए नैतिकता वाली पार्टी कौन से निचले स्तर तक जा सकती है, अब पता चल गया। मुफ्त में टीका सिर्फ बिहार को ही क्यों? पूरे देश को क्यों नहीं? पहले इसका उत्तर दो। पूरे देश में कोरोना का तांडव मचा है। यह आंकड़ा 75 लाख से ज्यादा तक पहुंच चुका है। लोग रोज अपनी जान गंवा रहे हैं। ऐसे में एक ऐसे राज्य में जहां विधानसभा चुनाव हो रहे हैं, वहां इस प्रकार की राजनीति होना धक्कादायक है। बिहार के चुनाव से ‘विकास’ गुम हो चुका है। रोटी, कपड़ा, मकान और रोजगार के मुद्दे नहीं चलते क्योंकि उसके बारे में अकाल पड़ा है। हर तरफ बेरोजगारी और गरीबी का कहर मचा है। उस पर काट के रूप में मुफ्त टीका लगाने का प्रयोग शुरू हुआ है। पूरे देश में कोरोना के टीके की आवश्यकता है। टीके की खोज तीसरे चरण में पहुंच चुकी है। लेकिन ‘टीका’ पहले बिहार में भाजपा को मतदान करने वालों को मिलेगा। लेकिन मान लीजिए कि बिहार में सत्ता बदल गई तो भाजपा बिहार को टीका नहीं देगी क्या? कई राज्यों में भाजपा की सरकारें नहीं हैं। उन्हें भी ‘टीका’ देने के मामले में केंद्र सरकार हाथ ऊपर कर लेगी क्या? विरोधी दल के एकाध विधायक को कोरोना आदि हो गया तो भाजपा की ओर से कहा जाएगा, ‘टीका लगाना होगा तो पहले अपनी पार्टी बदल लो, नहीं तो चिल्लाते बैठो!’ इसलिए कोरोना पर मुफ्त टीके को लेकर लोगों में भ्रम की स्थिति बनी है। ‘गांव बसा ही नहीं और’ कहावत की तरह बाजार में टीका आया ही नहीं और इनकी मारामारी शुरू हो गई। पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, पंजाब और राजस्थान जैसे राज्यों में भाजपा के विचारों की सरकार नहीं है। दिल्ली प्रदेश में केजरीवाल भाजपा विरोध का झंडा लेकर खड़े हैं। इन राज्यों की सरकारों को पुतिन से टीका मंगवाना है क्या? देश की 130 करोड़ जनता को टीका देने के लिए केंद्र सरकार के लगभग 70 हजार करोड़ रुपए लगनेवाले हैं। नागरिकों को बचाए रखने की जिम्मेदारी से केंद्र सरकार इनकार नहीं कर सकती। बिहार देश का ही एक भाग है। बिहार ने केंद्र से विशेष दर्जा देने की हमेशा से मांग की क्योंकि नीतीश कुमार मुख्यमंत्री भले हों लेकिन राज्य हमेशा पिछड़ा ही रहा। लोग बिना भोजन, भुखमरी के कारण कीड़े-मकोड़े की तरह मर रहे हैं। ऐसी रिपोर्ट वैश्विक संगठन ने प्रकाशित की है। बिहार को ‘टीका’ मिले, इसमें कोई दो राय नहीं लेकिन अन्य राज्य पाकिस्तान में नहीं हैं। कोरोना टीका का मुद्दा भाजपा के बिहारी घोषणापत्र में आना ठीक नहीं है। टीके का वितरण सरकार की और राष्ट्रीय भूमिका होनी चाहिए। यह एक प्रकार से भेदभाव है। राष्ट्रीय एकता के लिए नए टीके की आवश्यकता है!

 

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