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अमरीका चुनाव 2020: ट्रंप के दौर में कैसे बदली दुनिया?
24-Oct-2020 6:39 PM
अमरीका चुनाव 2020: ट्रंप के दौर में कैसे बदली दुनिया?

photo credit BBC

अमरीका, 24 अक्टूबर | अमरीका का राष्ट्रपति सिर्फ अपने देश का नेता नहीं होता है, बल्कि शायद वह धरती का सबसे ताक़तवर शख़्स भी होता है. अमरीकी राष्ट्रपति के फ़ैसलों का असर दुनिया भर में महसूस किया जाता है. डोनाल्ड ट्रंप भी कोई अपवाद नहीं हैं. ऐसे में यह देखना अहम है कि ट्रंप ने किस तरह से दुनिया में बदलाव किए हैं.

दुनिया अमरीका को किस तरह से देखती है?

राष्ट्रपति ट्रंप ने बार-बार एलान किया है कि अमरीका "दुनिया का सबसे महान देश" है. लेकिन, प्यू रिसर्च सेंटर के 13 देशों के हालिया सर्वे के मुताबिक़, उन्होंने विदेश में इस छवि के लिए ज़्यादा कुछ नहीं किया है.

कई यूरोपीय देशों में अमरीका को लेकर सकारात्मक रुख़ रखने वाले लोगों की तादाद तक़रीबन 20 साल के निचले स्तर पर चली गई है.

अमरीका को लेकर ब्रिटेन में 41 फ़ीसदी लोगों की अनुकूल राय थी, जबकि फ्रांस में यह आंकड़ा 31 फ़ीसदी है जो कि 2003 के बाद सबसे कम है. जर्मनी में यह महज़ 26 फ़ीसदी ही है.

कोरोना वायरस महामारी को लेकर अमरीका के कदम इस बारे में एक बड़ा फैक्टर रहे हैं. जुलाई और अगस्त के आंकड़े बताते हैं कि केवल 15 फ़ीसदी रेस्पॉन्डेंट्स (सर्वे में भाग लेने वालों) को लगता है कि अमरीका ने इस वायरस का सही तरीक़े से मुक़ाबला किया है.

जलवायु परिवर्तन पर राज़ी न होना

राष्ट्रपति ट्रंप पर्यावरण बदलाव को लेकर क्या सोचते हैं उसे तय कर पाना मुश्किल है, क्योंकि वे कभी इसे "बेहद महंगा डर" बताते हैं तो कभी इसे "एक गंभीर विषय" कहते हैं जो कि "उनके दिल के काफ़ी क़रीब है."

लेकिन, जो चीज़ स्पष्ट है वह यह है कि दफ्तर में आने के छह महीने के भीतर ही उन्होंने पेरिस जलवायु संधि से हाथ पीछे खींच लिए थे. इस समझौते पर क़रीब 200 देश दुनिया के तापमान में बढ़ोतरी को दो फ़ीसदी से नीचे रखने के लिए राज़ी थे.

चीन के बाद अमरीका सबसे ज़्यादा ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करता है. ऐसे में रिसर्च करने वालों का कहना है कि अगर ट्रंप दोबारा राष्ट्रपति बने तो शायद ग्लोबल वॉर्मिंग पर लगाम लगाना मुश्किल हो जाएगा.

पेरिस क्लाइमेट डील से अमरीका का एग्जिट राष्ट्रपति चुनाव होने के अगले दिन 4 नवंबर को औपचारिक रूप से प्रभावी हो जाएगा. जो बाइडन ने वादा किया है कि अगर वे जीत गए तो इस डील से फिर से जुड़ जाएंगे.

कुछ जानकारों का कहना है कि अमरीका के डील से निकलने के चलते ही ब्राज़ील और सऊदी अरब ने कार्बन उत्सर्जन घटाने की कोशिशों को ठंडे बस्ते में डाल दिया है.

कुछ लोगों के लिए सीमाएं बंद

राष्ट्रपति ट्रंप ने पदभार संभालने के एक हफ़्ते के भीतर ही सात मुस्लिम बहुसंख्यक देशों से आने वाले आप्रवासियों के लिए अमरीका के दरवाज़े बंद कर दिए थे. फिलहाल 13 देश इस तरह की ट्रैवल पाबंदियों के अधीन हैं.

दूसरे देशों में पैदा होने और अमरीका में रह रहे लोगों की संख्या 2016 के मुकाबले 2019 में 3 फीसदी ज्यादा थी. लेकिन, अमरीका कौन लोग यहां रहने आए हैं इसमें बदलाव हुआ है.

मेक्सिको में पैदा हुए अमरीकी नागरिकों की फीसदी में संख्या ट्रंप के शासन के दौरान लगातार गिरी है. दूसरी ओर, लातिन अमरीका के बाकी देशों से यहां आने वालों की संख्या बढ़ी है.

अमरीका में स्थाई रूप से बसने का अधिकार देने वाले वीजा में भी सख्ती की गई है. खासतौर पर जिनके रिश्तेदार पहले से अमरीका रह रहे थे उनके लिए ये वीजा हासिल करना मुश्किल हुआ है.

मेक्सिको की अमरीका से लगती सीमा पर दीवार बनाने की शपथ राष्ट्रपति ट्रंप की आप्रवासन नीति का प्रतीक है.

यूएस कस्टम्स एंड बॉर्डर प्रोटेक्शन के मुताबिक, 19 अक्तूबर तक 371 मील लंबी दीवार बनाई जा चुकी थी. लेकिन, ये दीवार अमरीका जाने की चाहत रखने वालों को रोकने में नाकाम रही है.

अमरीका-मेक्सिको बॉर्डर पर पकड़े गए माइग्रेंट्स की संख्या 2019 में अपने 12 साल के चरम पर पहुंच गई थी. इनमें से ज्यादातर लोग ग्वाटेमाला, होंडुरास और अल सल्वाडोर के थे, जहां हिंसा और गरीबी ने लोगों को शरण लेने और दूसरी जगह बसने के लिए मजबूर किया है.

ट्रंप ने ऐसे लोगों की तादाद भी घटाई है जो कि अमरीका में फिर से बस सकते हैं. 2016 में यह आंकड़ा 85,000 का था, जो कि इसके अगले साल घटकर 54,000 रह गया. 2021 में यह संख्या घटकर 15,000 रह जाएगी जो कि 1980 में लॉन्च हुए इस प्रोग्राम का सबसे कम लेवल होगा.

फ़ेक न्यूज़ में इजाफ़ा

डोनाल्ड ट्रंप ने 2017 में एक इंटरव्यू में कहा था, "मुझे लगता है कि मैं जिन शब्दों से रूबरू हुआ हूं उनमें सबसे बड़ा शब्द 'फ़ेक' है." हालांकि, फ़ेक न्यूज़ की खोज निश्चित तौर पर ट्रंप ने नहीं की, लेकिन यह कहा जा सकता है कि उन्होंने इसे लोकप्रिय जरूर बनाया है.

फैक्सबीए.एसई के मॉनिटर किए जाने वाले सोशल मीडिया पोस्ट्स और ऑडियो ट्रांसक्रिप्ट्स के मुताबिक़, दिसंबर 2016 में पहली बार ट्वीट किए जाने के बाद से ट्रंप ने इस शब्द का इस्तेमाल क़रीब 2,000 बार किया है.

फ़ेक न्यूज़ के लिए गूगल सर्च करने पर आपको पूरी दुनिया से 1.1 अरब से ज़्यादा रिजल्ट मिलेंगे. चार्ट के तौर पर देखें तो आपको पता चलेगा कि कैसे 2016-17 की सर्दियों में अमरीका की दिलचस्पी इसमें बढ़ी है और यह ट्रंप के "फ़ेक न्यूज़ अवॉर्ड" का खुलासा करने वाले हफ्ते में ऊपर चला गया. ये ऐसी स्टोरीज़ की लिस्ट है जिसे ट्रंप झूठी खबरें मानते हैं.

2016 में राष्ट्रपति पद की दौड़ के दौरान फ़ेक न्यूज़ का मतलब ग़लत ख़बरों से था जैसे कि एक ख़बर थी जिसमें कहा गया था कि पोप फ्रांसिस ने ट्रंप की दावेदारी का समर्थन किया है. लेकिन, जैसे-जैसे यह आम इस्तेमाल में बढ़ा, इसका मतलब केवल ग़लत सूचना होने से शिफ्ट हो गया.

राष्ट्रपति ने ऐसी ख़बरों को फ़ेक न्यूज़ बताना शुरू कर दिया है जिनसे वे इत्तेफाक नहीं रखते हैं. फरवरी 2017 में वे और आगे बढ़ गए और उन्होंने कई न्यूज़ आउटलेट्स को "अमरीकी लोगों का दुश्मन बता दिया."

अमरीका के अंतहीन युद्ध और मिडल ईस्ट डील

अपने फरवरी 2019 के स्टेट ऑफ द यूनियन संबोधन में राष्ट्रपति ट्रंप ने सीरिया से सैनिकों की वापसी का वादा किया. उन्होंने एलान किया था, "महान राष्ट्र अंतहीन युद्ध नहीं लड़ा करते."

लेकिन, आंकड़े एक दूसरी ही कहानी कहते हैं. कुछ महीनों बाद ही ट्रंप ने तेल कुओं की रखवाली के लिए सीरिया में 500 सैनिक रखने का फैसला किया.

राष्ट्रपति ने अफ़ग़ानिस्तान में सैन्य मौजूदगी कम की है और ऐसा ही इराक़ और सीरिया में भी किया गया है. लेकिन, अमरीकी सेनाएं अभी भी उस हर जगह मौजूद हैं जहां वे उनके राष्ट्रपति बनने के दौरान थीं.

निश्चित तौर पर बिना सेनाओं के भी मध्य पूर्व पर असर डाला जा सकता है. ट्रंप ने 2018 में अमरीकी दूतावास को इसराइल के तेल अवीव से यरूशलम शिफ्ट कर दिया और इस तरह से उनके पहले के राष्ट्रपति की आपत्तियां दरकिनार कर दीं.

पिछले महीने उन्होंने संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन के इसराइल के साथ रिश्ते बहाल करने के समझौते करने को "एक नए मध्य पूर्व का सवेरा" क़रार दिया. ये समझौते अमरीकी मदद से ही मुमकिन हुए और इसे ट्रंप प्रशासन की शायद सबसे बड़ी कूटनीतिक उपलब्धि कहा जा सकता है.

ट्रेड डील की कला

ट्रंप ऐसी डील्स को रद्दी की टोकरी में डालने के लिए जाने जाते हैं जो उन्होंने नहीं की थीं. दफ्तर में आने के पहले दिन ही उन्होंने ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप को रद्द कर दिया. यह 12 देशों की ट्रेड डील थी जिसे ओबामा ने मंजूरी दी थी.

इस डील से बाहर निकलने से सबसे ज़्यादा फ़ायदा चीन को हुआ. लेकिन, अमरीका में जिन लोगों को लग रहा था कि इस डील से अमरीकी नौकरियां चली जाएंगी उन्होंने इस डील से हटने का जश्न मनाया.

ट्रंप ने कनाडा और मेक्सिको के साथ नॉर्थ अमरीकन फ्री ट्रेड एग्रीमेंट पर फिर से सौदेबाज़ी की. वे इसे "सबसे बुरी डील" मानते थे. नई डील में ज़्यादा कुछ नहीं बदला, हालांकि, लेबर प्रावधान सख़्त कर दिए.

ट्रंप की पूरी कोशिश यह रही है कि किस तरह से दुनिया भर के साथ ट्रेड डील्स से अमरीका को फ़ायदा हो सकता है. इस मुहिम ने चीन के साथ एक कड़वी ट्रेड जंग शुरू कर दी. दोनों देशों को इसका नुक़सान हुआ.

2 दिसंबर 2016 को ट्रंप ने एक बड़ा अप्रत्याशित कदम उठाया और ताइवान के राष्ट्रपति के साथ सीधे बातचीत की. इस तरह से 1979 में ताइवान के साथ औपचारिक संबंध तोड़े जाने की परंपरा को तोड़ दिया.

साउथ चाइना सी पर चीन के दावों को अमरीका ने अवैध क़रार दिया. चीन के टिकटॉक और वीचैट जैसे एप्स बैन कर दिए गए और चीनी टेलीकॉम दिग्गज ख्वावे को ब्लैकलिस्ट कर दिया गया.
ईरान के साथ तक़रीबन जंग के हालात

2019 में नए साल पर ट्रंप ने ट्वीट किया था, "हमारी किसी भी इकाई को होने वाले नुक़सान या किसी के मरने के लिए ईरान पूरी तरह से ज़िम्मेदार होगा. उन्हें बहुत बड़ी क़ीमत चुकानी पड़ेगी. यह चेतावनी नहीं है, यह धमकी है."

कुछ दिन बाद दुनिया को चौंकाते हुए अमरीका ने ईरान के सबसे ताक़तवर जनरल कासिम सुलेमानी की हत्या कर दी. ईरान ने जवाबी प्रतिक्रिया देते हुए इराक़ में दो अमरीकी ठिकानों पर दर्जन भर से ज़्यादा मिसाइलें दाग दीं. 100 से ज़्यादा अमरीकी सैनिक इसमें घायल हुए. दोनों देश इससे युद्ध की कगार पर पहुंच गए.

युद्ध न होने के बावजूद निर्दोषों की जानें जाना जारी रहा. ईरान की मिसाइलों के हमलों के चंद घंटों के भीतर ही इसकी सेना ने यूक्रेन के एक पैसेंजर जहाज़ को मिसाइल से ग़लती से उड़ा दिया. इस में 176 लोग मारे गए.

मई 2018 में ट्रंप ने 2015 में ईरान के साथ हुई न्यूक्लियर डील को रद्द कर दिया. ईरान पर भारी आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए गए. इससे ईरान की अर्थव्यवस्था बुरे संकट में चली गई और परेशान ईरानी लोगों को विरोध-प्रदर्शनों पर उतारू होना पड़ा.(https://www.bbc.com/hindi)

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