संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : ट्रंप सरकार के आखिरी हफ्तों में मंत्रियों का यह दौरा किस काम का?
26-Oct-2020 7:33 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : ट्रंप सरकार के आखिरी हफ्तों में मंत्रियों का यह दौरा किस काम का?

अमरीकी विदेश मंत्री माइक पाम्पियो, और अमरीकी रक्षामंत्री मार्क एस्पर आज दोपहर बाद हिन्दुस्तान पहुंचे हैं, और वे यहां मंत्री स्तर की बातचीत करेंगे। हिन्दुस्तान अमरीका के बीच आपसी हितों के बहुत से दूसरे मुद्दे हो सकते हैं, और होंगे भी, लेकिन आज चीन के साथ भारत के जारी सरहदी तनाव के वक्त पर हिन्दुस्तान के लोगों की उम्मीद यह है कि अमरीका चीन के खिलाफ भारत का कैसे साथ देता है। चूंकि दोनों देशों के इन दोनों मंत्रालयों को सम्हालने वाले लोग बैठेंगे, तो जाहिर है कि चीन एक बड़ा मुद्दा रहेगा, और भारत की जनता की आम भावना आज चीन के खिलाफ भडक़ी हुई है, इसलिए भारतीय जनता अमरीका से चीन के खिलाफ कुछ ठोस वायदों की उम्मीद भी करेगी। 

लेकिन इस बातचीत के वक्त पर भी ध्यान देना जरूरी है। अमरीका में आज डोनल्ड ट्रंप की सरकार अपने आखिरी कुछ हफ्ते गुजार रही है। वहां पर नए राष्ट्रपति को चुनने के लिए मतदान शुरू हो चुका है, और भारत से अलग अमरीका में यह मतदान कुछ हफ्ते चलता है, इसलिए भारतीय चुनाव की तरह यह दर्शनीय नहीं होता, यह अलग बात है कि 3 नवंबर के मतदान के बाद कुछ हफ्तों के भीतर अमरीकी राष्ट्रपति भवन ट्रंप से परे का कोई राष्ट्रपति काम सम्हाल सकता है, और जैसा कि वहां का चुनावी नजारा है, रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार ट्रंप के अलावा दूसरे उम्मीदवार डेमोक्रेटिक पार्टी के हैं, और अगर वे राष्ट्रपति बनते हैं, तो अमरीका की विदेश नीति, रक्षानीति में एक बुनियादी फेरबदल भी आ सकता है। ऐसे में अमरीकी विदेश मंत्री और रक्षामंत्री का यह भारत दौरा कुछ अटपटे वक्त पर हो रहा है क्योंकि हो सकता है कि ये अगली सरकार चुनने के लिए वोट डालकर यहां आए हों। अगली 21 जनवरी को अमरीकी राष्ट्रपति का शपथ ग्रहण होगा, और उसके साथ ही हो सकता है कि इसी राष्ट्रपति के रहते हुए भी सारे मंत्री बदल जाएं। ऐसे में भारत में जो लोग बहुत उम्मीद लगाए बैठे हैं, उन्हें सही संदर्भों में मंत्रियों की दो दिनों की इस बैठक को समझना चाहिए। 

हिन्दुस्तान ने अमरीका से इन बरसों में हथियारों की बड़ी खरीदी की है। हिन्दुस्तान अमरीका के लिए एक बड़ा ग्राहक भी है, और चीन का पड़ोसी होने के नाते भारत का एक रणनीतिक महत्व भी अमरीका के लिए है। हिन्दुस्तान के जो लोग यह मानते हैं कि भारत और चीन के टकराव के बीच अमरीका भारत का साथ देने आ रहा है, उन्हें यह बात सुनना अच्छा नहीं लगेगा कि चीन के साथ अपने बड़े टकराव के चलते हुए हो सकता है कि अमरीका यहां भारत का साथ लेने आ रहा हो। भारत का चीन से सरहदी टकराव तो चल रहा है, लेकिन यह टकराव चीन-अमरीका के टकराव जितना बड़ा और गंभीर नहीं है। अमरीका ने संयुक्त राष्ट्र से लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन तक कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों पर पिछले महीनों में हमले किए हैं, और ये हमले एक बददिमाग और बेदिमाग राष्ट्रपति की बकवास से अधिक इसलिए रहे हैं कि इन्होंने डब्ल्यूएचओ की साख गिराने की कोशिश भी की है। ऐसे बहुत से अंतरराष्ट्रीय विदेशी मसलों पर अमरीका भारत से साथ की उम्मीद कर सकता है क्योंकि भारत का उन संस्थाओं से ऐसा कोई टकराव नहीं है। 

इन सबसे ऊपर एक बात और समझने की जरूरत है कि भारत को इतना महत्व देते हुए इन दो मंत्रियों का प्रवास इस मौके पर इसलिए भी हो सकता है कि अभी अमरीका में जितने भारतवंशियों के वोट पडऩे हैं, उन पर इस प्रवास का एक असर पड़ जाए। ऐसे ही असर के लिए राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप इसी बरस अहमदाबाद आकर अपने प्रचार की शुरूआत कर गए थे, और आज मंत्रियों का यह दौरा उसी की एक अगली कड़ी भी हो सकती है। यह बात समझने की जरूरत है कि विदेश नीति और रक्षानीति ऐसी चीज नहीं है कि जिनसे अगले कुछ हफ्तों के अमरीकी सरकार के कार्यकाल में भारत कुछ हासिल कर पाए। इसलिए यह अमरीकी वोटरों में से भारतवंशियों की जनधारणा को प्रभावित करने की एक मशक्कत हो सकती है। 

ऐसी बैठकों के महत्व का अखबारी सुर्खियों के लिए अतिसरलीकरण एक आम बात है। जिनसे हासिल कुछ भी नहीं होता, उन्हें भी बड़े जोर-शोर से शोहरत मिल जाती है। खुद अमरीकी राष्ट्रपति से भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को गले मिलते देखकर हिन्दुस्तानी जनता ऐसी खुश हो गई थी कि देश में ट्रंप की जीत के लिए दर्जनों जगह हवन हुए, और कहीं-कहीं मूर्ति बनाकर पूजा भी होने लगी, लेकिन तब से अब तक के इन महीनों में ट्रंप ने भारत की बेइज्जती करने वाली ढेर सारी बकवास भी की है, जिसमें से सबसे ताजा तो अभी यह है कि हिन्दुस्तान एक बहुत ही गंदा देश है, यहां की हवा भी बहुत गंदी है। हिन्दुस्तानी कार्टूनिस्टों ने ट्रंप के ऐसे घटिया बयान पर यह कार्टून भी बनाया कि अहमदाबाद में तो झोपड़पट्टियों को छुपाने के लिए मोदी सरकार ने खासी ऊंची दीवार बनवा दी थी, फिर ट्रंप को दीवार पार की गंदगी कैसे दिख गई?
 
आज भारत में बिहार में चुनाव हो रहा है, और बाकी पूरे देश में जगह-जगह उपचुनाव भी हो रहे हैं। हो सकता है कि यह ट्रंप के अमरीकी भारतवंशी वोटरों को प्रभावित करने की कोशिश के अलावा यह कोशिश भी हो कि भारत में जहां कहीं चुनाव हो रहे हैं, वहां मतदान के ठीक पहले अमरीका के साथ प्रतिरक्षा और विदेश नीति पर ऐसी बड़ी बैठक से प्रभाव डालना। हिन्दुस्तानी वोटर गोरी चमड़ी देखकर तेजी से प्रभावित होते हैं, और हो सकता है कि इन दो दिनों में सरकार अपना मुंह खोले बिना भी ऐसा माहौल बनाने में कामयाब हो जाए कि चीन के साथ किसी बड़े टकराव की नौबत में अमरीका भारत के साथ खड़े रहेगा। 
यह बैठक अमरीकी ट्रंप-सरकार के कार्यकाल में इतनी लेट हो रही है कि इसका होना न होना एक बराबर है। ट्रंप की वापिसी से ही इस बैठक के किसी फायदे की उम्मीद की जा सकती है, लेकिन वह भी खासे दूर की बात है। तामझाम के साथ की जा रही दो दिनों की ऐसी बैठक कम से कम भारत को कुछ देकर जाने वाली नहीं है। यह जरूर हो सकता है कि अमरीकी मंत्री भारत के कुछ विदेशी हथियार-खरीद को प्रभावित कर सकें, और अमरीकी कारखानेदारों के लिए कमाई जुटा सकें। अमरीकी रक्षामंत्री अपनी किसी फौज की ताकत लेकर हिन्दुस्तान नहीं आ रहे हैं जैसा कि अमरीका अफगानिस्तान या इराक वगैरह में करते रहा है। अपने साथी देशों के लिए अमरीका के मन में कितनी इज्जत रहती है यह देखना हो तो लोगों को पाकिस्तान में घुसकर अमरीकी फौज द्वारा ओसामा-बिन-लादेन को मारने की घटना याद रखनी चाहिए जिसमें न इस हमले के पहले, और न इस हमले के बाद पाकिस्तान को भरोसे में लिया गया। किसी देश के अधिकारों के लिए ऐसी हिकारत वाले अमरीका से हिन्दुस्तान अगर कुछ पाने की उम्मीद कर रहा है, तो वह नासमझी की बात ही होगी। फिलहाल इस दौरे का सिर्फ एक महत्व हमें जाहिर तौर पर दिख रहा है, अमरीका में बसे हुए भारतवंशी वोटरों को प्रभावित करना, और हिन्दुस्तान में बिहार चुनाव-उपचुनावों में हिन्दुस्तानी वोटरों को गोरी चमड़ी दिखाना। 
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