सामान्य ज्ञान
जील्मा रूसैफ दूसरी बार ब्राज़ील की राष्ट्रपति चुनी गईं हैं। जील्मा रूसैफ़ का राजनीतिक कॅरिअर उतार-चढ़ाव से भरा रहा है और फ़ौजी हुकूमत के खिलाफ़ आंदोलन करने पर उन्हें जेल भी जाना पड़ा था।
वह पहली बार पूर्व राष्ट्रपति लूला डी सिल्वा के सहयोगी के रूप में चर्चा में आईं। हालांकि लोकप्रियता के मामले में वे लूला सिल्वा की बराबरी नहीं कर पाई हैं। उनके आलोचकों का तो यह भी कहना है कि वे लूला के समर्थन के बिना राष्ट्रपति भी नहीं बन पातीं। रूसैफ़ को उनकी सामाजिक कल्याण की नीतियों से लाखों गऱीबों का जीवन स्तर बेहतर करने के श्रेय दिया जाता है, लेकिन सुस्त आर्थिक वृद्धि के लिए उनकी आलोचना भी होती रही है। अपने प्रतिद्वंद्वी आसयू नैविस के खिलाफ़ नजदीकी मुक़ाबला जीतने के साथ उन्होंने वादा किया है कि राष्ट्रपति के रूप में वह पहले से भी बेहतर कार्य करेंगी।
तुनुक मिजाज स्वभाव और कड़े व्यवहार के कारण उनकी छवि आयरन लेडी की है। जनता के बीच में उनकी छवि एक ऐसे सख्त राजनेता की है जो अपने मंत्रियों को सार्वजनिक रूप से फटकार लगाती हैं। उन्होंने भ्रष्टाचार के आरोप में कई मंत्रियों को बर्खास्त भी किया है और उन्हें भ्रष्टाचार के दावों की सफल जांच करने के अपने प्रशासन के रिकॉर्ड पर गर्व भी है। रूसैफ़ का राजनीतिक कद उस वक्त बढ़ा जब लूला के चीफ़ ऑफ़ स्टाफ़ जोजे जियर्से को सरकारी धन के दुरुपयोग के मामले में इस्तीफ़ा देना पड़ा था। साफ़-सुथरी छवि वाली रूसैफ़ को जियर्से की जगह पर चीफ़ ऑफ़ स्टाफ़ बनाया गया। हाल ही में विपक्ष ने उनका नाम सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनी पेट्रोब्रास से संबंधित भ्रष्टाचार के आरोपों में घसीटने की कोशिश की है। हालांकि रूसैफ़ ने किसी भी तरह की गड़बड़ी की जानकारी से इनकार किया है। रूसैफ़ के समाज कल्याण के कार्यक्रम बोल्सा फैमिलिया के तहत तीन करोड़ साठ लाख लोगों को फ़ायदा हुआ है। फ़ुटबॉल विश्व कप जैसे बड़े आयोजनों पर बेहिसाब ख़र्च को लेकर उनकी आलोचनाएं भी हुईं हैं।
1947 में जन्मी रूसैफ़ बेलो होरीज़ोंटे के एक उच्च मध्यवर्गीय परिवार से आती है। उनके पिता पेड्रो रूसैफ़ बुल्गारिया के अप्रवासी थे और पुराने कम्युनिस्ट थे। वे नर्तकी बनना चाहती थीं लेकिन फ़ौजी हुकूमत के खिलाफ़ जारी वामपंथी आंदोलन में शामिल होने के लिए उन्होंने अपना ये इरादा बदल दिया। वर्ष 1964 में ब्राजील में सत्ता पर सेना ने कब्ज़ा कर लिया था। 1970 में रूसैफ़ पकड़ी गईं और उन्हें तीन साल की सज़ा हुईं। सज़ा के दौरान उन्हें बिजली के झटके जैसी क्रूर यातनाएं दी गईं, लेकिन वे कमज़ोर नहीं पड़ीं। अदालत में मामले की सुनवाई के दौरान उन्हें विनाश की पुजारिन कहकर संबोधित किया गया। इस कठिन परीक्षा से गुजरने के बाद 2009 में उन्हें कैंसर से भी जूझना पड़ा। अब उनके सामने एक बार फिर ब्राज़ील की राष्ट्रपति के रूप में नई जिम्मेदारियां और चुनौतियां हैं।