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विस्थापन के लिए आगजनी व सामाजिक बहिष्कार
और न्याय के लिए अंतहीन इंतजार की कहानी
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 29 अक्टूबर। धमतरी जिले के नगरी विकासखंड के दुगली ग्राम पंचायत के आश्रित ग्राम बिरनपुर में 13 अक्टूबर 2020 को की गई आगजनी में 20 नहीं, 35 घर जलाए गए हैं। इस हमले का नेतृत्व कांग्रेस नेता शंकर नेताम कर रहा था, जो दुगली वन प्रबंधन समिति का अध्यक्ष भी है और जिसने मीडिया को दिए अपने बयान में स्वीकार किया है कि उसने इन घरों को हटाया है।
पिछले पांच वर्षों में तीन बार इन आदिवासियों पर हमला करके उनके घरों को जलाया गया है, फसल को नष्ट किया गया है और पीडि़तों का सामाजिक बहिष्कार जारी है। इन हमलों में वन विभाग की भी स्पष्ट संलिप्तता सामने आई है, जिसने हमलावरों के साथ मिलकर पीडि़तों पर ही झूठे मुक़दमे दर्ज किए है और उन्हें जेलों में भेजा गया है। पीडि़त पुरूषों को उच्च न्यायालय से ही जमानत मिल पाई है। इन पांच वर्षों में पीडि़तों को 2 करोड़ रुपयों का नुकसान पहुंचा है। पीडि़तों द्वारा बार-बार स्थानीय थाने, एसपी और कलेक्टर को शिकायत किए जाने के बावजूद हमलावरों पर कोई कार्यवाही नहीं की गई है। पीडि़तों के वनाधिकार के आवेदन बिना कोई कारण बताये चार बार निरस्त किए गए हैं। इस जघन्य आगजनी कांड के 15 दिनों बाद और राष्ट्रीय मीडिया में सुर्खियों में आने के बाद भी प्रशासन का कोई अधिकारी पीडि़तों की सुध लेने उनके गांव नहीं पहुंचा है।
ये वे तथ्य हैं, जो दुगली में हुए आगजनी कांड की जांच के लिए गठित माकपा जांच दल को मिले हैं। इस दल में पार्टी के धमतरी जिला सचिव समीर कुरैशी, जिला समिति सदस्य मनीराम देवांगन, महेश शांडिल्य और स्थानीय नेता तेजराम चक्रधारी शामिल थे. उन्होंने 26-27 अक्टूबर 2020 को क्षेत्र का दौरा किया, पीडि़त परिवारों और अन्य ग्रामीणों से बातचीत की, घटनास्थल का दौरा किया और आवश्यक तथ्य, दस्तावेज और जानकारियां एकत्रित की। रिपोर्ट का शीर्षक है : ‘विस्थापन के लिए आगजनी व सामाजिक बहिष्कार और न्याय के लिए अंतहीन इंतज़ार की कहानी’।
3000 शब्दों से ज्यादा की 5 पेजी जांच रिपोर्ट को मीडिया के लिए जारी करते हुए माकपा राज्य सचिव संजय पराते ने मांग की है कि हमलावरों को गैर-जमानती धाराओं में गिरफ्तार किया जाए, सभी पीडि़त परिवारों को उनको हुए आर्थिक नुकसान और सामाजिक बहिष्कार के कारण उनकी प्रतिष्ठा को पहुंची ठेस की भरपाई के लिए दस-दस लाख रूपये मुआवजा दिया जाएं और उन पर लादे गए फर्जी मुक़दमे वापस लिए जाये, सभी पीडि़त आदिवासी परिवारों को वनाधिकार पट्टे दिए जाएं, हमलावरों को बचाने वाले पुलिसकर्मियों को निलंबित किया जाए, इन पीडि़त परिवारों को एक साल तक मनरेगा में 300 दिन काम और ग्राम पंचायत के जरिये मुफ्त राशन देना सुनिश्चित किया जाए तथा वन विभाग की सूची में शामिल बिरनपुर गांव के सभी लोगों को आवासीय पट्टे दिए जाएं।
इस रिपोर्ट के साथ ही माकपा ने घटना स्थल की तस्वीरों, पीडि़तों के बयानों के वीडियो तथा कुछ दस्तावेजों को भी मीडिया के माध्यम से सार्वजनिक किया है, जिससे वन भूमि पर पीडि़तों का दावा पुख्ता होता है और उन्हें भगाने के लिए उनके घरों में आगजनी करना प्रमाणित होता है. इस जांच रिपोर्ट को आज ही माकपा जिला सचिव समीर कुरैशी के नेतृत्व में धमतरी कलेक्टर और एसपी को भी सौंपा गया है. प्रतिनिधिमंडल में जांच दल के सदस्यों के अलावा पीडि़त परिवारों से राकेश परते, बीरबल सोनवानी, सुखवती परते और सुरेखा कोर्राम शामिल थीं। इस रिपोर्ट को मुख्यमंत्री को भी भेजकर पीडि़तों को न्याय देने और हमलावर अपराधियों को सजा देने की मांग माकपा ने की है।
माकपा ने अपनी जांच रिपोर्ट में पाया है कि पिछले पांच वर्षों में पीडि़तों पर तीन बार हमला किया गया है और तीनों बार इसका नेतृत्व कांग्रेस के स्थानीय नेता शंकर नेताम ने किया है। यही कारण है कि इसके खिलाफ आज तक कोई कार्यवाही नहीं की गई है. 13 अक्टूबर की आगजनी के बाद भी पीडि़तों की एफआईआर दर्ज करने के बजाये उन्हें न्यायालय जाने के लिए कहा गया। पार्टी ने पीडि़तों के साथ बातचीत के बाद गणना की है कि इन हमलों के कारण हर पीडि़त परिवार को औसतन 6 लाख रुपयों का नुकसान हुआ है।
सामाजिक बहिष्कार के कारण उनकी प्रतिष्ठा को जो ठेस पहुंची है, वह अलग है।
माकपा ने आरोप लगाया है कि आगजनी जैसी जघन्य वारदात के 15 दिनों बाद भी हमलावर अपराधियों को गिरफ्तार नहीं किया गया है. इससे साबित होता है कि प्रशासन की अपराधियों के साथ खुली मिलीभगत है और वह उन्हें बचाने का प्रयास कर रही है. यही कारण है कि कलेक्टर द्वारा इस घटना की जांच के निर्देश दिए जाने के बावजूद नगरी एसडीएम 20 किमी. दूर दुगली तक नहीं पहुंच पाए हैं। जांच रिपोर्ट जिलाधीश को सौंपने के बाद धमतरी में माकपा नेता समीर कुरैशी ने कहा है कि पीडि़तों ने न्याय मिलने के आश्वासन पर अपना धरना समाप्त किया है, लेकिन जरूरत पडऩे पर पीडि़त आदिवासी परिवार राजधानी रायपुर तक पदयात्रा करके मुख्यमंत्री के दरवाजे तक पहुंचकर न्याय की गुहार लगाने का हौसला रखते हैं और अब इस संघर्ष की अगुआई माकपा करेगी।