संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : मंदिर में जाकर नमाज पढऩा निहायत गैरजिम्मेदारी का...
02-Nov-2020 5:18 PM
 ‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : मंदिर में जाकर नमाज पढऩा निहायत गैरजिम्मेदारी का...

मथुरा के एक मंदिर में दो मुस्लिम नौजवानों ने भीतर जाकर वहां के आंगन में नमाज पढ़ी, और उनकी तस्वीरों को एक मुस्लिम-मामले के वकील ने फेसबुक पर पोस्ट किया। कुछ हिन्दुओं और मंदिर में इसके खिलाफ पुलिस रिपोर्ट की और अब इस पर जुर्म दर्ज किया गया है। यह पूरा सिलसिला मासूमियत से परे का लग रहा है। नमाज पढऩे वाले मुस्लिम तो फुटपाथ पर, रेलवे प्लेटफॉर्म पर नमाज पढ़ लेते हैं, किसी बाग-बगीचे में पढ़ लेते हैं, लेकिन किसी धर्मनगरी के मंदिर में जाकर इस तरह नमाज पढ़ें, यह बात कुछ अटपटी है। खासकर आज के तनाव में जहां उत्तरप्रदेश में ही कई मंदिर-मस्जिद विवाद अदालत में चल रहे हैं, और बाबरी मस्जिद पर अदालत के फैसले के बाद एक अलग किस्म का तनाव भरा सन्नाटा भी चल रहा है। 

आज हिन्दुस्तान में अलग-अलग धर्मों के लोगों के बीच रिश्ते वैसे तो बहुत अच्छे हैं, लेकिन अधिकतर धर्मों में कुछ ऐसे बवाली नेता भी हैं जो ऐसी किसी भी बात को लेकर बखेड़ा खड़ा करने की ताक में रहते हैं। उत्तरप्रदेश में पिछले दो-चार दिनों से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की यह धमकी भी चल रही है कि ‘लव जेहाद’ के मामले में न थमे तो ऐसा करने वाले लोगों का राम नाम सत्य कर दिया जाएगा। कई लोग इसे एक संवैधानिक शपथ लेकर ओहदे पर आए व्यक्ति की गैरकानूनी धमकी भी बतला रहे हैं क्योंकि भारत की जुबान में राम नाम सत्य के मायने एकदम साफ हैं। ऐसे प्रदेश में इस तरह का बवाल न तो मुस्लिमों के साम्प्रदायिक सद्भाव की तरह देखा जाएगा, और न उसके खिलाफ रिपोर्ट लिखाना हिन्दू संगठनों की ज्यादती कहलाएगी। 

जिन्हें साम्प्रदायिक सद्भाव के लिए काम करना होता है, उनके तेवर अलग होते हैं। हिन्दुस्तान में सैकड़ों बरस से ऐसे सैकड़ों मुस्लिम संत और कवि हुए हैं जिन्होंने राम और कृष्ण की आराधना में जाने कितना लिखा है। दर्जनों ऐसे मशहूर कव्वाल हैं जो कृष्ण की कहानियां गाते हैं। हिन्दुस्तान में खुदा की इबादत गाने वाले हिन्दुओं का कोई नाम शायद याद भी नहीं आएगा, लेकिन हिन्दू देवी-देवताओं को गाने वाले, उन पर लिखने वाले मुस्लिम शायर, कवियों, संतों, और कव्वालों की कोई कमी नहीं है। लेकिन वे लोग हवा में तैरते हुए तनाव के बीच इस तरह की कोई नाटकीय हरकत नहीं करते हैं। 

आज जब फ्रांस की एक कार्टून पत्रिका से शुरू हुआ धार्मिक तनाव पूरी दुनिया में मुस्लिमों को प्रभावित कर रहा है, उत्तेजित कर रहा है, जिस वक्त हिन्दुस्तान का एक मशहूर शायर खुलेआम यह कह रहा है कि फ्रांस में वह होता तो वह वही करता जो वहां पर एक मुस्लिम ने कार्टून का विरोध करते हुए एक का सिर धड़ से अलग कर दिया था। यह वक्त एक अजीब से तनाव का है, यह वक्त हिन्दुस्तान के एक हमलावर तबके के बीच मुस्लिमों को पाकिस्तान के साथ जोडक़र देखता है, आज यहां के तनाव में बात-बात में लोगों को पाकिस्तान भेजने की बात की जाती है, मानो पाकिस्तान का वीजा देना वहां के उच्चायोग का काम न होकर इस देश के धर्मान्ध और साम्प्रदायिक संगठनों के हाथ आ गया है। यह वक्त बहुत सम्हलकर चलने का है, और यहां एक-एक शब्द लोगों के देशप्रेम और उनकी गद्दारी तय करने के लिए इस्तेमाल हो रहे हैं। ऐसे सामाजिक और राजनीतिक माहौल में किसी को भी गैरजिम्मेदारी का कोई काम नहीं करना चाहिए। 
फ्रांस में एक इस्लामी आतंकी ने जितने खूंखार तरीके से कार्टून का विरोध करते हुए एक बेकसूर का गला काट डाला, और उसके बाद फिर हमले हुए, उन पर भारत सरकार ने बहुत ही रफ्तार से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की वकालत करते हुए फ्रांस की सरकार के साथ खड़े रहने की घोषणा की है। भारत सरकार की यह घोषणा लोगों को चौंकाने वाली रही क्योंकि देश के भीतर ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का साथ देने का ऐसा कोई रूख इन बरसों में केन्द्र सरकार का दिखा नहीं है। भारत के कुछ शहरों में फ्रांस के कार्टूनों के खिलाफ प्रदर्शन भी हुए हैं, फ्रांस सरकार के खिलाफ भी प्रदर्शन हुए हैं, और शायर मुनव्वर राणा का ताजा बयान तो इन तमाम प्रदर्शनों से आगे बढक़र आतंकी की वकालत करने वाला है जो कि हिन्दुस्तान के मुस्लिमों की एक खराब तस्वीर पेश कर रहा है। यह पूरा माहौल बहुत तनाव का चल रहा है, और दूसरे देशों में कुछ गिने-चुने मुस्लिम आतंकी भी जैसी हिंसा कर रहे हैं, उनसे भी हिन्दुस्तान में मुस्लिम-विरोधी लोगों को इस धर्म और इस बिरादरी के खिलाफ कहने को तर्क मिल रहे हैं। इसलिए आज लोगों को दूसरे धर्मों के प्रति अपना कोई प्रेम है, तो उसे बड़ी सावधानी से ही इस्तेमाल करना चाहिए। आज कोई मंदिर में जाकर नमाज पढ़े, कल कोई मस्जिद में जाकर हवन करने लगे, और परसों किसी गुरूद्वारे में जाकर कोई बपतिस्मा करने लगे, तो यह साम्प्रदायिक सद्भाव कम रहेगा, यह एक नया तनाव, एक नया बखेड़ा खड़े करने की हरकत अधिक रहेगी।
 
हम इसे एक बड़ी गैरजिम्मेदारी की हरकत मानते हैं, और मंदिर में जाकर नमाज पढऩे के पीछे चाहे जो भी नीयत रही हो, उससे इन दोनों धर्मों के बीच सद्भाव खत्म करने की नीयत रखने वाले लोगों के हाथ एक ताजा ईंधन लग गया है।  (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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