विचार / लेख
'वॉकर' ने भारत में अब तक दर्ज 'एक बाघ द्वारा सबसे लंबी पैदल-यात्रा' पूरी कर ली है. अब इस बाघ ने महाराष्ट्र के ज्ञानगंगा अभयारण्य को अपना घर बना लिया है.
वॉकर को वन्य-जीव अधिकारियों ने यह नाम दिया है.
साढ़े तीन साल के इस नर बाघ ने पिछले साल जून में महाराष्ट्र के एक वन्य-जीव अभयारण्य में अपना घर छोड़ दिया था.
वह संभवतः शिकार, अपने लिए अलग इलाक़े या एक साथी की तलाश में था.
जिस रेडियो कॉलर के सहारे उसे ट्रैक किया जा रहा था, उसे अप्रैल में हटा दिया गया था.
बाघ की यात्रा को दिखलाता नक्शा
मिल गया ठिकाना
205 वर्ग किलोमीटर में फैले ज्ञानगंगा अभयारण्य में तेंदुए, नीलगाय, जंगली सूअर, मोर और हिरण रहते हैं.
वन्यजीव अधिकारियों का कहना है कि वॉकर वहाँ रहने वाला एकमात्र बाघ है.
महाराष्ट्र के वरिष्ठ वन अधिकारी नितिन काकोडकर ने बीबीसी को बताया, "अब उसे 'टैरेटरी' (सीमा) की चिंता नहीं है और यहाँ शिकार भी पर्याप्त हैं."
अब वन्यजीव अधिकारी इस बात पर विचार कर रहे हैं कि क्या उन्हें वॉकर को संभोग साथी देने के लिए एक मादा बाघ को अभयारण्य में ले जाना चाहिए या नहीं.
बाघ अकेले रहने वाला जीव नहीं है. इसलिए उसे साथी की ज़रूरत तो है, लेकिन अभयारण्य में एक दूसरे बाघ को ले जाना, एक आसान निर्णय नहीं है.
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काकोडकर कहते है, "ज्ञानगंगा कोई बड़ा अभयारण्य नहीं है. इसके चारों ओर खेती होती है. इसके अलावा, अगर वॉकर यहाँ प्रजनन करता है, तो बाक़ी जानवरों पर दबाव बढ़ेगा."
भारत में बाघ के 'दुनिया में कुल हैबिटेट' का सिर्फ़ 25% हिस्सा है लेकिन दुनिया के 70 फ़ीसदी यानी क़रीब 3,000 बाघ यहीं रहते हैं.
विशेषज्ञों का कहना है कि बाघों की संख्या में वृद्धि हुई है, लेकिन उनके आवास सिकुड़ गए हैं और उन्हें अपना पेट भरने के लिए हमेशा शिकार भी नहीं मिल पाता.
जानकार बताते हैं कि हर बाघ को "फ़ूड बैंक" सुनिश्चित करने के लिए, अपने क्षेत्र में 500 जानवरों की आवश्यकता होती है.
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रेडियो कॉलर से ट्रैकिंग
वॉकर को पिछले साल फ़रवरी में एक रेडियो कॉलर लगाया गया था.
उसने अपने लिए सही स्थान खोजने के लिए मॉनसून की बारिश शुरू होने तक जंगलों में घूमना जारी रखा.
वन्यजीव अधिकारियों का कहना है कि "वॉकर ने ये 3000 किलोमीटर की यात्रा सीधे नहीं की. हर घंटे जीपीएस के सहारे उसकी लोकेशन दर्ज की जाती थी. इस दौरान वॉकर की लोकेशन 5,000 से अधिक स्थानों में दर्ज की गई."
वॉकर अधिकांश हिस्से में नदी, नालों और राजमार्गों के साथ-साथ खेतों में, कभी आगे-कभी पीछे यात्रा करते हुए ट्रैक किया गया.
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