विचार / लेख
-फ़रहत जावेद
मेरे सामने साल 2005 में पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर के उस वक़्त के प्रधानमंत्री को लिखा गया एक ख़त पड़ा है. यह ख़त एक मां ने लिखा है जो पिछले तीन बरसों से अपने बेटे फ़ारूक़ के जवाब की प्रतीक्षा कर रही है.
वो लिखती हैं, "मैं अपने बच्चे की रिहाई के लिए हर क़िस्म की क़ुर्बानी देने को तैयार हूं."
उनके इस ख़त के बाद एक स्थानीय संगठन ने रेडक्रॉस से संपर्क किया फिर रेडक्रॉस के लोगों ने भारत के राजस्थान जेल में बंद फ़ारूक़ से मुलाक़ात की.
रेडक्रॉस के दस्तावेज़ के अनुसार उन्होंने फ़ारूक़ की मां को लिखा कि उनका बेटा ठीक है और वो अपने बेटे को ख़त लिखना जारी रखें.
उसके बाद भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के कारण उन मां-बेटे का क्या हुआ, क्या फ़ारूक़ वापस लौटे और मां से मिल सके, इन सारे सवालों का जवाब नहीं मिल सका.
बीबीसी के पास मौजूद दूसरे कई ख़तों में से एक ख़त एक बूढ़े बाप के बारे में भी है.
यह ख़त पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ के भारत दौरे से पहले लिखा गया था.
ख़त लिखने वाले व्यक्ति के अनुसार, उनके पिता मोहम्मद शरीफ़ लाइन ऑफ़ कंट्रोल के क़रीब मवेशी चरा रहे थे कि उन्हें भारत की बीएसएफ़ ने गिरफ़्तार कर लिया था और वो जम्मू सेंट्रल जेल में पिछले पाँच साल से अपनी रिहाई की राह देख रहे हैं.
भारत, पाकिस्तान और दोनों के बीच बंटे कश्मीर में पिछले दो दशकों में सरकारें बदलती रही हैं और सरकारों के साथ-साथ उनकी प्राथमिकताएं भी बदलती रही हैं.
भारत और पाकिस्तान के बीच सीज़फ़ायर हुआ और एलओसी के बड़े हिस्से पर बाड़ भी लगा दी गई. मगर इस तरह की कहानियां ख़त्म नहीं हुईं.
शमशाद बेगम के पति जो 2008 से लापता हैं
शमशाद बेगम से मिलें
13 साल पहले शमशाद बेगम के पति लापता हुए और वह आज तक अपने पति की राह तक रही हैं.
उनका संबंध नीलम घाटी के गांव चकनार से है.
चकनार नाम का यह गांव एलओसी से महज़ 50 मीटर की दूरी पर बसा हुआ है और यहां जाने की इजाज़त नहीं है.
साल 2008 की बात है. चकनार गांव की तरफ़ जाने वाला रास्ता एक भारतीय सैन्य पोस्ट से गुज़रता है. शमशाद बेगम ने अपने पति की गुमशुदगी की कहानी सुनाते हुए कहा था कि वो पाकिस्तानी सेना की एक यूनिट में धोबी की हैसियत से काम कर रहे थे लेकिन वो सरकारी मुलाज़िम नहीं थे.
शमशाद बेगम कहती हैं, "एक दिन जब वो छुट्टी पर घर आ रहे थे तो रास्ते में गांव के ही दो लोग उनके साथ हो लिए. जब वे लोग सैन्य पोस्ट के पास पहुँचे तो भारतीय सैनिकों ने उन्हें पकड़ लिया. जब शाम तक कोई घर नहीं आया तो गांव वालों ने तलाशना शुरू किया. मेरे पति का सामान जिसमें मेरे लिए नए कपड़े भी थे, वहीं सैन्य पोस्ट के क़रीब पड़ा मिला. आज तक मेरे पति वापस नहीं आए."
शमशाद बेगम ने इंतज़ार करने का फ़ैसला किया
कश्मीर दुनिया के उन क्षेत्रों में से एक है जहां सबसे ज़्यादा सेना तैनात है. उसे विभाजित करती हुई सीमा रेखा कई जगहों पर ऐसी है कि कोई भी धोखा खा सकता है. भारत और पाकिस्तान दोनों के सैनिक यहां तैनात हैं और दोनों एक-दूसरे पर कड़ी नज़र रखते हैं.
शमशाद बेगम कहती हैं कि वो पाकिस्तान और भारत की सरकार से गुज़ारिश करती रही हैं कि उनके पति का पता लगाया जाए.
वो कहती हैं, "मैंने हर दर पर हाथ फैलाएं हैं, जब मौक़ा मिला कहती रही कि मेरे पति का पता करवाया जाए. मगर किसी ने नहीं सुनी. आख़िर में मुझे यह विधवा का कार्ड पकड़ा दिया गया. मैंने तो अपने पति को मरा हुआ नहीं देखा, किसी ने नहीं देखा मगर किसी ने ख़बर भी नहीं ली."
शमशाद बेगम की हालत यह हो गई है कि अब हंसते हुए भी उनकी आंखें नम ही रहती हैं.
"मैं हर रोज़ उन्हें ख़्वाब में देखती थी...हर रोज़. मैं देखती थी कि वो ज़िंदा हैं. मुझे अभी भी यक़ीन है कि वो ज़िंदा हैं और जब तक मुझमें आख़िरी सांस है, मैं उनका इंतज़ार करूंगी. मुझे बस यह पता है कि अभी वो बस अपनी क़िस्मत में लिखी तकलीफ़ काट रहे हैं."
उनके पति के साथ लापता होने वाले दूसरे दो लोगों की पत्नियों ने दोबारा शादी कर ली है मगर शमशाद बेगम ने इंतज़ार करने का फ़ैसला किया है.
यह और ऐसी कई कहानियां उन लोगों की हैं जो 1990 से अब तक सिर्फ़ इसलिए भारतीय सेना की हिरासत में गए क्योंकि उन पर एलओसी पार करने का आरोप था.
उनके परिजन दावा करते हैं कि उनमें से कई लोगों ने अनजाने में एलओसी पार कर ली और कई तो अपने ही इलाक़े में मौजूद थे जब उन्हें गिरफ़्तार किया गया.
लाइन ऑफ़ कंट्रोल (एलओसी) भारत और पाकिस्तान के बीच विवादित कश्मीर को बांटती हुई एक लकीर है. उसके ज़्यादातर हिस्से पर भारत ने अपनी तरफ़ बाड़ लगा दी है लेकिन फिर कई जगह ऐसे हैं जहां बाड़ नहीं लगाई गई है और कई जगहों पर आबादी के पीछे बाड़ लगा दी गई है.
अगर एलओसी के साथ सफ़र करें तो एक बड़े हिस्से पर सैन्य चौकियां या तो आबादी के पीछे हैं और कई जगहों पर ये बाड़ से आगे पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर की तरफ़ हैं. और यह दोनों तरफ़ है.
हर साल ख़ासतौर पर फसलों और घांस की कटाई के दौरान ग़लती से एलओसी पार करने की घटना सामने आती रहती है.
एलओसी पार करने वाले तो ख़ैर दूसरे देश की जेलों में क़ैद हो जाते हैं लेकिन पीछे रह जाने वाले उनके घरवालों की ज़िंदगी भी किसी क़ैद से कम दुश्वार नहीं होती है.
ख़ासकर उन घरानों में जहां घरवालों को लंबे अर्से तक यह पता नहीं चलता कि उनके घर के लापता लोग ज़िंदा भी हैं या नहीं.
शमशाद बेगम के बेटे मोहम्मद सिद्दीक़ ने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि उनकी उम्र 10 साल थी जब उनके पिता लापता हुए थे.
उस गांव में इस तरह का यह चौथा मामला था. यह गांव ज़ीरो लाइन पर होने के कारण क्रॉस बॉर्डर फ़ायरिंग की ज़द में भी रहता था जिसके बाद फ़ैसला किया गया कि गांववालों को किसी सुरक्षित जगह पर भेज दिया जाए.
शमशाद बेगम के अनुसार उनके गांव चकनार और क़रीबी आबादी वाले ढक्की को ख़ाली कराया गया और उन्हें नीलम घाटी में ही एक अस्थायी कैंप में शिफ़्ट कर दिया गया.
शमशाद बेगम कुछ अर्से तक तो कैंप में रहीं लेकिन बाद में मुज़फ़्फ़राबाद चली गईं.
उस वक़्त को याद करते हुए शमशाद बेगम कहती हैं, "मैंने घरों में, खेतों में काम शुरू किया तो मेरे बच्चों ने कहा कि वो मुझे काम नहीं करने देंगे. मेरा बड़ा बेटा सिर्फ़ 10 साल का था, उसने स्कूल छोड़ दिया और मुज़फ़्फ़राबाद में मज़दूरी करने लगा. मेरे दूसरे बच्चों ने भी ऐसा ही किया. हमारा गुज़र-बसर बहुत मुश्किल था. लोगों से क़र्ज़ लेते और घर का सौदा लाते. यह कमरा और टीन की छत भी क़र्ज़ लेकर बनाई. पति के चले जाने से मेरी और मेरे बच्चों की ज़िंदगी तबाह हो गई."
पाक प्रशासित कश्मीर
जब पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर के पीएम भी पार कर गए सीमा
लेकिन इस तरह की घटना आम नागरिकों तक ही सीमित नहीं है.
पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर के प्रधानमंत्री राजा फ़ारूक़ हैदर ने इस बारे में बीबीसी उर्दू को बताया कि वो भी ग़लती से एलओसी पार कर गए थे.
वो कहते हैं, "मैं चुनाव प्रचार के लिए अपने इलाक़े में गया हुआ था और वाशरूम नहीं होने के कारण मुझे लोगों से कुछ दूर जाना पड़ा. अचानक एक व्यक्ति की आवाज़ आई, तुम इधर क्या कर रहे हो मैंने ऊपर देखा तो एक भारतीय सैनिक था. मैंने उसको बताया कि भाई मुझे क्या पता कि यह तुम्हारा इलाक़ा है, मैं तो अब कॉल ऑफ़ नेचर अटेंड करके ही जाऊंगा."
राजा फ़ारूक़ हैदर कहते हैं, "मेरी जगह कोई आम आदमी होता तो उसको गिरफ़्तार कर लिया जाता या गोली मार दी जाती."
लेकिन एक भूल कैसे ज़िंदगी भर का ख़ौफ़ बन सकती है, अपनी पहचान ज़ाहिर ना करने की शर्त पर उस व्यक्ति ने बीबीसी को बताया जिसने ग़लती से एलओसी पार कर ली थी और भारतीय सेना की हिरासत में भी रहे.
साद (बदला हुआ नाम) को भारतीय सेना ने यह कहते हुए हिरासत में ले लिया था कि वो भारत प्रशासित कश्मीर में दाख़िल हो गए हैं. हालांकि साद का कहना है कि वो अपने दोस्त के साथ अपने ही गांव में घास काट रहे थे जब भारतीय सैनिको ने उन्हें पकड़ा था.
साद कहते हैं, "हम घास काट रहे थे और मवेशी चरा रहे थे. हम गांव के क़रीब अपने ही इलाक़े में मौजूद थे. इतने में चारों तरफ़ से सैनिक आए और हममें से दो लोगों को ले गए. उन्होंने ख़ुद को भारतीय सैनिक बताया और कहा कि हम उनके इलाक़े में आ गए हैं. हमने कहा भी कि यह तो हमारा अपना इलाक़ा है मगर उन्होंने हमारी बात नहीं सुनी और हमें क़ैद कर लिया."
"जब हमें यह एहसास हुआ कि भारतीय सैनिक हमें अपने कैंप में ले जा रहे हैं तो हमारी ज़िंदा रहने की उम्मीद भी ख़त्म हो गई थी. उन्होंने हमारी आंखों पर कानों पर कई दिनों तक पट्टी बांधे रखी थी. हम जब भी कहते कि हम बेकसूर हैं तो वो हमें मारते थे. हमें यह भी नहीं पता था कि हम कहां हैं और हमारे साथ कोई और है या नहीं."
साद के परिजनों ने पाकिस्तानी सेना से संपर्क किया और पाकिस्तानी सरकार ने भारत सरकार से बातचीत की.
वापसी का तरीक़ा
लगभग एक हफ़्ते बाद लाइन ऑफ़ कंट्रोल के एक क्रॉसिंग प्वाइंट पर उन्हें पाकिस्तानी सेना के हवाले कर दिया गया.
बीबीसी ने इस बारे में जब पाकिस्तानी सेना के प्रवक्ता से संपर्क किया और पूछा कि एलओसी पर बाड़ लगने के बाद अब हालात कैसे हैं तो सेना की तरफ़ से कहा गया कि साल 2005 के बाद इस तरह की घटनाओं में कमी आई है.
सेना का कहना था, "पहले इस तरह की घटना बहुत ज़्यादा होती थी. लेकिन यह समझना भी ज़रूरी है कि यह कश्मीरी जनता का इलाक़ा है और वो जहां चाहें जा सकते हैं. कई जगहों पर दोनों तरफ़ आबादी सैनिक पोस्टों के आगे है. ऐसी स्थिति में हम लोगों को लगातार बताते रहते हैं कि उन्होंने ध्यान रखना है और उस तरफ़ नहीं जाना है. यह भी बताया जाता है कि एलओसी कहां है. एलओसी की पूरी तरह से निशानदेही नहीं की जा सकी है, इसलिए लोग ग़लती से दूसरी तरफ़ चले जाते हैं."
सेना के प्रवक्ता के अनुसार इम मामले में दो तरह की घटनाएं अमूमन होती हैं. एक वो जिनमें किसी ने ग़लती से एलओसी क्रॉस कर ली हो और दूसरी वो जिन्हें भारतीय सैनिक हमारी तरफ़ आकर गिरफ़्तार कर लेते हैं. दोनों हालत में गिरफ़्तार किए गए लोगों को वापस लाने की कोशिश की जाती है.
अगर कोई व्यक्ति एलओसी के इलाक़े से लापता हुआ है या उसको भारतीय सैनिकों ने अपनी हिरासत में लिया है तो उनकी वापसी का क्या तरीक़ा होगा, इस सवाल के जवाब में पाकिस्तानी सेना के एक अधिकारी ने बताया कि लापता या हिरासत में लिए जाने वाले व्यक्ति के घर वाले क़रीबी सैन्य पोस्ट से संपर्क करते हैं जिसके बाद केस को फ़ॉलो किया जाता है.
केस को फ़ॉलो करने के दो तरीक़े होते हैं.
"एक तो मिलिट्री ऑपरेशन डायरेक्टरेट को सूचना दी जाती है, दूसरी तरफ़ स्थानीय सतह पर भी पहले से स्थित हॉटलाइन पर भारतीय अधिकारियों से संपर्क किया जाता है और उन्हें बताया जाता है कि फ़लां व्यक्ति ने ग़लती से एलओसी पार कर ली है, क्या वो आपके पास है?"
सेना के अनुसार साल 2005 के बाद से इस तरह की घटना में कमी आई है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार पिछले 15 वर्षों में इस तरह के 52 मामले सामने आएं हैं जिनमें से 33 लोगों को भारतीय सेना ने हिरासत में लेने के बाद वापस भेज दिया. मगर उनमें से छह लोग ऐसे भी थे जिनकी लाशें वापस मिलीं.
उनमें से ज़्यादातर उस वक़्त मारे गए जब एलओसी पर तैनात बॉर्डर फ़ोर्स ने उन पर गोली चला दी.
पाकिस्तानी सेना के अनुसार 13 लोग अभी भी भारतीय सेना की हिरासत में हैं और अपने देश लौटने का इंतज़ार कर रहे हैं.
मगर पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर की सरकार के अनुसार एलओसी के क़रीबी देहातों से साल 2005 से पहले लापता हुए लोगों की सही संख्या का कोई सरकारी रिकॉर्ड मौजूद नहीं है.
उस इलाक़े में लापता लोगों के लिए काम करने वाली एक ग़ैर-सरकारी संस्था के अनुसार साल 2005 तक लापता होने वालों की संख्या क़रीब 300 थी. लेकिन उस एनजीओ ने भी साल 2008 के बाद वहां काम करना बंद कर दिया था.
पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर के प्रधानमंत्री राजा फ़ारूक़ हैदर
भारत-पाकिस्तान के अपने-अपने दावे
पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर के प्रधानमंत्री राजा फ़ारूक़ हैदर ने बीबीसी को बताया था कि इस तरह की घटनाएं पहले भी होती रहीं हैं.
उन्होंने कहा था, "अगर पहले कोई ग़लती से चला जाए तो हम भी वापस कर देते थे और वो भी कर देते थे. मगर पाँच अगस्त 2019 के बाद दोनों तरफ़ तनाव पैदा हो गया है. अक्सर वो मार देते हैं. यहां कोई नहीं मारता किसी को. वो गोली मार देते हैं. वापस नहीं करते, बताते भी नहीं कि वहां गया था या नहीं. मैं विदेश मंत्रालय को लिखूंगा कि वो यूएन में यह मामला उठाएं ताकि उनकी वापसी हो सके."
वो कहते हैं, "जो बाड़ लगी है वो एलओसी से कुछ पीछे है. हमारे यहां मवेशी के लिए घास की बहुत ज़्यादा ज़रूरत पड़ती है. इस कारण यह लोग घास काटने के लिए चले जाते हैं. वो उन्हें पकड़ लेते हैं कि एलओसी पार किया है. हालांकि फ़ेन्स तो पीछे लगा है. इस तरह के बेशुमार लोग हैं."
लेकिन भारत इन तमाम आरोपों को ख़ारिज करता है. भारतीय विदेश मंत्रालय के अनुसार पाकिस्तान एलओसी के पार चरमपंथी और हथियार भेजता है.
बीबीसी के सवालों का जवाब देते हुए भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, "पाकिस्तान की जानिब से सिविलियन सरगर्मियों की आड़ में असलहा और बारूद एलओसी की इस जानिब भेजने की कोशिश की गई हैं. हमने सीमापार दहशतगर्दी, हथियारों और ड्रग्स की तस्करी में भी पाकिस्तान की मदद देखी है. उन सरगर्मियों के लिए ड्रोन और काडकॉप्टर भी इस्तेमाल किए गए हैं."
पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर के लापता (एलओसी पार करके भारत में दाख़िल होने वाले) लोगों की संख्या और उनकी रिहाई के बारे में पूछे गए सवाल का भारत ने कोई सीधा जवाब नहीं दिया.
भारतीय प्रवक्ता का कहना था, "पाकिस्तानी सेना एक तरफ़ तो सीज़फ़ायर का उल्लंघन करती है और अक्सर इस तरह का उल्लंघन आबादी वाले इलाक़ों में होता है जिनसे चरमपंथियों को एलओसी पार करने में मदद मिलती है. यह 2003 के सीज़फ़ायर का खुल्लम खुल्ला उल्लंघन है."
इस बारे में पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय का क्या कहना है, बीबीसी की तमाम कोशिशों के बावजूद भी उनका कोई जवाब नहीं मिल सका.
पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर के प्रधानमंत्री मानते हैं कि पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय में उन लापता लोगों के लिए काम होना चाहिए और एक ऐसा डेस्क बनाया जाना चाहिए जो भारतीय अधिकारियों से उनकी वापसी या उनसे संबंधित जानकारियां जमा करने के लिए बात करे.
लेकिन यह होगा या नहीं और होगा तो कब होगा?
इसका जवाब फ़िलहाल किसी के पास नहीं है.
जिन्होंने ना तो यह जंग शुरू की और न ही इसे ख़त्म करने की हैसियत रखते हैं, उनकी मदद करने वाला कोई नहीं.
जब हम शमशाद बेगम से मिलकर वापस आ रहे थे, वो अपने घर में अपनी भतीजी का स्वागत कर रही थीं. उनकी भतीजी की शादी थी और वो एक स्थानीय रस्म के तहत दुलहन को एक दिन के लिए अपने घर ले आई थीं.
उनके बेटे सिद्दीक़ मेहमानों के लिए खाना बना रहे थे.
यह ख़ानदान भी कश्मीर को विभाजित करने वाली एलओसी की दोनों जानिब बसे दर्जनों परिवारों की तरह ज़िंदगी में आगे बढ़ रहा है. मगर उनका ना तो दुख कम हुआ है और ना ही लापता हुए लोगों की वापसी की उम्मीद टूटी है. (bbc)