सामान्य ज्ञान
लिंगराज मंदिर भारत के ओडिशा प्रांत की राजधानी भुवनेश्वर में स्थित है। यह इस शहर के प्राचीनतम मंदिरों में से एक है। हालांकि भगवान त्रिभुवनेश्वर को समर्पित इस मंदिर का वर्तमान स्वरूप 1090-1104 में बना, किंतु इसके कुछ हिस्से 1400 वर्ष से भी ज्यादा पुराने हैं। इस मंदिर का वर्णन छठी शताब्दी के लेखों में भी आता है।
लिंगराज मन्दिर, भुवनेश्वर का मुख्य मन्दिर है, जिसे ललाटेडुकेशरी ने 617-657 ई. में बनवाया था। धार्मिक कथा है कि लिट्टी तथा वसा नाम के दो भयंकर राक्षसों का वध देवी पार्वती ने यहीं पर किया था। संग्राम के बाद उन्हें प्यास लगी, तो शिवजी ने कूप बनाकर सभी पवित्र नदियों को योगदान के लिए बुलाया। यहीं पर बिन्दूसागर सरोवर है तथा उसके निकट ही लिंगराज का विशालकाय मन्दिर है। सैकड़ों वर्षों से भुवनेश्वर यहीं पूर्वोत्तर भारत में शैवसम्प्रदाय का मुख्य केन्द्र रहा है। कहते हैं कि मध्ययुग में यहां सात हज़ार से अधिक मन्दिर और पूजास्थल थे, जिनमें से अब कऱीब पांच सौ ही शेष बचे हैं। गर्भग्रह के अलावा जगमोहन तथा भोगमण्डप में सुन्दर सिंहमूर्तियों के साथ देवी-देवताओं की कलात्मक प्रतिमाएं हैं। यहां की पूजा पद्धति के अनुसार सर्वप्रथम बिन्दुसरोवर में स्नान किया जाता है, फिर क्षेत्रपति अनंत वासुदेव के दर्शन किए जाते हैं, जिनका निर्माणकाल नवीं से दसवीं सदी का रहा है।। गणेश पूजा के बाद गोपालनीदेवी, फिर शिवजी के वाहन नंदी की पूजा के बाद लिंगराज के दर्शन के लिए मुख्य स्थान में प्रवेश किया जाता है। जहां आठ फ़ीट मोटा तथा कऱीब एक फ़ीट ऊंचा ग्रेनाइट पत्थर का स्वयंभू लिंग स्थित है। इस मंदिर का निर्माण सोमवंशी राजा जजाति केशरि ने 11वीं शताब्दी में करवाया था। उसने तभी अपनी राजधानी को जाजपुर से भुवनेश्वर में स्थानांतरिक किया था। इस स्थान को ब्रह्म पुराण में एकाम्र क्षेत्र बताया गया है।
मंदिर का प्रांगण 150 मीटर वर्गाकार का है तथा कलश की ऊंचाई 40 मीटर है। प्रतिवर्ष अप्रैल महीने में यहां रथयात्रा आयोजित होती है। मंदिर के निकट ही स्थित बिंदुसागर सरोवर में भारत के प्रत्येक झरने तथा तालाब का जल संग्रहीत है और कहा जाता है कि उसमें स्नान करने से पापमोचन होता है।