विचार / लेख
-कबीर संजय
उत्तराखंड से बेहद बुरी खबर आ रही है। उत्तराखंड के लोग अपनी जमीन को देवभूमि भी कहते हैं। आशय यह है कि यह देवताओं की पवित्र भूमि है। लेकिन, इस देवभूमि की सरकार अब हाथियों का आशियाना छीन लेने वाली है। जी हां, उत्तराखंड सरकार 14 एलीफेंट रिजर्व खत्म करने जा रही है। उसके हिसाब से एलीफेंट रिजर्व विकास परियोजनाओं के लिए अड़ंगा साबित हो रहे हैं।
आज के जमाने के लिए विकास एक भयंकर और खौफनाक शब्द होता जा रहा है। विकास परियोजनाओं के नाम पर तमाम जगहों पर पर्यावरण और वन्यजीवन का विनाश ही देखने को मिलता है। आम लोगों को भी इसका लाभ नहीं मिलता। जबकि, कारपोरेट और उनसे कमीशन खाने वाले राजनीतिज्ञ इसकी मलाई चाटते हैं। जाहिर है उनके खयाल में भी कहीं वन्यजीवन, जंगल और पर्यावरण नहीं है। उनके लिए तो यह एक पार्टी चल रही है। जिसमें जितना ज्यादा वे भकोस और ठूंस सकते हैं, उतना भकोस और ठूंस लेना चाहते हैं। भले ही आगे आने वाली पीढिय़ों को उनकी झूठी पत्तलें उठानी पड़ें और गंदगी साफ करनी पड़ें। उन्हें इसकी जरा भी परवाह नहीं है। यह विकास आखिर इतना मानव और प्रकृति द्रोही क्यों है।
कुछ ही दिन पहले उत्तराखंड सरकार ने जौलीग्रांट एयरपोर्ट को विस्तार देने के लिए थानों के जंगलों के एक हिस्से को अधिकार में लेने का प्रस्ताव किया था। इसके लिए हजारों पेड़ों का काटा जाना था और देहरादून, ऋषिकेश और हरिद्वार का प्रबुद्ध समाज और युवा इसके खिलाफ प्रदर्शन भी कर रहे थे। पेड़ों को रक्षासूत्र बांधे जा रहे थे। अब सरकार इससे भी एक कदम आगे बढ़ गई है।
उत्तराखंड के शिवालिक एलीफेंट रिजर्व में चौदह प्रकोष्ठ में हैं। इनमें लगभग दो सौ वर्ग किलोमीटर का हिस्सा एलीफेंट रिजर्व के नाम पर नोटीफाइड हैं। उत्तराखंड के वन मंत्री द्वारा इस पूरे इलाके को डी-नोटीफाई करने की बात कही गई थी। मंगलवार की शाम को स्टेट वाइल्ड लाइफ बोर्ड की बैठक में इस प्रस्ताव को हरी झंडी भी दे दी गई। यानी हाथियों से उनका आशियाना छीने जाने पर मुहर लग गई। वन मंत्रालय हो या वाइल्ड लाइफ बोर्ड, ऐसा लगता है कि ये जंगल को बढ़ाने और जंगली जीवों के जीवन के संरक्षण के लिए नहीं बल्कि उनकी मौत के परवाने पर दस्तखत करने के लिए ही बने हुए हैं।
आशियाना छिन जाने के बाद हाथियों का क्या होगा। उनके अपने जंगल सुरक्षित नहीं रहेंगे। उनके अपने जंगलों में तमाम योजनाएं बनाई जाएंगी। इंसान उन इलाकों में घुस जाएगा। हाथी और इंसान के बीच टकराव और तनाव बढ़ेगा। जिसका खामियाजा इंसान और हाथी दोनों ही भुगतना पड़ेगा। जाहिर है कि हाथियों को करंट लगाकर मार देने की घटनाओं में भी इजाफा होने वाला है।
सरकारें जंगलों को चूस लेना चाहती हैं, वे वन्यजीवों के रक्त की एक-एक बूंद को मुनाफे में ढाल लेना चाहती हैं। हाथियों के जीवन की परवाह किसे है। उसकी पूजा तो सिर्फ मूर्तियों में की जानी है।
एक दिन ऐसा भी आएगा जब सिर्फ मूर्तियां ही बचेंगी।