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तो इसके दुष्परिणाम पीढिय़ां भोगेगी
27-Nov-2020 3:52 PM
तो इसके दुष्परिणाम पीढिय़ां भोगेगी

गिरीश मालवीय

गाँधी कहते थे किसान भारत की आत्मा है आज देखिए उसी आत्मा को दिल्ली बॉर्डर पर छलनी किया जा रहा है,  उन्हें रोकने की हर कोशिश की जा रही है!

बैरिकेडिंग की जा रही है, कंटीले तारों का पहरा बनाया जा रहा है। सडक़ों पर रेत बिछाई जा रही है  ताकि ट्रैक्टर आगे न बढ़ पाए, इस कडक़ड़ाती ठंड में किसानों पर पानी की बौछारें मारी जा रही है, लाठीचार्ज किया जा रहा है। बस कैसे भी किसान दिल्ली न पहुंचने पाए, कृषि कानूनों के विरोध में उत्तरप्रदेश, हरियाणा और पंजाब के किसान ‘दिल्ली चलो’ रैली निकाल रहे हैं।

आप बताइये की अगर दिल्ली किसान पुहंच गया तो ऐसा क्या हो जाएगा! क्या देश के किसान को इतना भी अधिकार नहीं है कि वह दिल्ली में अपनी बात न कह सके? क्या देश के लोकतंत्र में शांतिपूर्ण धरना-प्रर्दशन भी वह नहीं कर सकता? क्या इतना सा लोकतांत्रिक अधिकार भी आप उससे छीन लेना चाहते हैं ?

पानीपत बॉर्डर पर रुके किसान पूछ रहे हैं कि क्या हम आतंकवादी हैं? हमें देश की राजधानी के अंदर जाने से कैसे रोका जा सकता है?

आप पूछेंगे कि आखिरकार किसान को  दिल्ली क्यों आना चाहता है ? किसान को दिल्ली इसलिए आना पड़ रहा है क्योंकि मनमाने कानून लागू किए जा रहे हैं, उसकी बात कोई सुन नहीं रहा बल्कि वह जहाँ आंदोलन कर रहा है वहाँ की केंद्र सरकार ने सप्लाई लाईन काट दी है। वहां खाद की किल्लत होने लगी है। उद्योगों में सामान का स्टॉक बढऩे लगा है। बिजली की हालत तो यह है कि 24 घंटे जहाँ बिजली मिलती थी वहां अब 8 घंटे रोज की कटौती हो रही है। कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के लगातार विरोध के चलते केंद्र सरकार ने पंजाब में रेल सेवा पूरी तरह से रोक दी है।

ऐसा भी नही हैं कि इस मामले का शांतिपूर्वक समाधान निकालने की कोशिश नहीं की गई। जब से तीन किसान अध्यादेश संसद ने पास किए तबसे किसान इसका विरोध कर रहे हैं। पहले अनुयय विनय की नीति अपनाई गई। केंद्र सरकार अपनी हठधर्मिता पर अड़ी रही तो किसानों ने आंदोलन का सहारा लिया। दशहरे पर मोदी का पुतला जला कर अपना गुस्सा प्रकट किया। महीने भर पहले पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर प्रदेश के सभी विधायकों के साथ दिल्ली में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मिलना चाहते थे, लेकिन मुलाकात के लिए राष्ट्रपति की ओर से समय नहीं दिया गया।

सच यही है कि मोदी सरकार ने इन अध्यादेशों ने व्यापारियों को किसानों के साथ लूट मचाने का एक मार्ग उपलब्ध करा दिया है। किसानों को उन्हीं के खेतों पर मजदूर बना दिया जाएगा। किसान अब बाजार में अकेला खड़ा होगा, उसे सरकार का सहारा नहीं होगा। एक ओर छोटा किसान और दूसरी ओर उसके सामने बड़े-बड़े राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय व्यापारी। यह एक तरह की प्रॉक्सी वार है, जिसमें छल के जरिए सरकार बड़े पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाना चाहती है।

आज अगर यह विरोध-प्रदर्शन सफल नहीं होता है तो इसके दुष्परिणाम पीढिय़ां भोगेगी।

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