विचार / लेख
-प्रकाश दुबे
इंग्लैंड के प्रधानमंत्री बोरिस जानसन चाहते हैं कि वेस्ट मिनिस्टर यानी ब्रिटेन के संसद भवन में आधे आसनों पर महिलाएं विराजमान हों। ईसाई धर्म के कैथोलिक पंथ पर रूढिवादी सोच का दबदबा है। अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में कैथोलिक पादरी घूम घूम कर रिपब्लिकन पार्टी का प्रचार करते हैं। मतदान के लिए रात रात भर कतार में लगे रहते हैं। चर्च ने गर्भपात को अनैतिक घोषित कर रखा है। रिपब्लिकन पार्टी गर्भपात कानून का विरोध करती है।
भारत के कुछ साधु-संतों की सक्रिय सहभागिता से हल्का सा अंतर है। पादरी चुनाव राजनीति से दूरी बनाकर रखते हैं। इंग्लैंड में प्रोटेस्टेंट पंथ के अनुयायी अधिक हैं। नर नारी समता का विरोध नहीं करते। गिरजाघर और ईसाई धर्म संस्थाओं के बड़े पद पर महिलाओं की नियुक्ति के पक्ष में अभियान जोर पकड़ रहा है। यह बात और है कि गत वर्ष चुनाव में बोरिस की कंजरवेटिव पार्टी ने मात्र 30 प्रतिशत महिलाओं को उम्मीदवारी दी जबकि लेबर पार्टी ने 53 प्रतिशत महिलाओं को मैदान में उतारा।
इंग्लैंड की संसद दुनिया की संसदों की लकड़दादी है।102 वर्ष पूर्व महिलाओं को संसद चुनाव लडऩे का अधिकार मिला। पहला विरोधाभास-लोकतंत्र में सत्ता की कमान सदियों से राजपरिवार के पास है। कई दशकों से महारानी राज करती है। राजा नहीं। यूरोप विरोधाभासों का महाद्वीप है। कोरोना से बचाव में मास्क लगाने के समर्थन में महिलाओं ने जुलूस निकाला। जुलूस के चित्र और वीडियो करोड़ों लोगों ने बार बार देखे। इतने प्रभावित? कारण जानिए। महिलाओं के मुंह पर पट्?टी या नकाब था। बाकी देह अनावृत्त। जिम्मेदारी भरे ओहदों के लिए महिलाओं की पात्रता को स्वीकृति मिल रही है। अमेरिका में महिला उपराष्ट्रपति निर्वाचित हुई। इंग्लैंड की गृहमंत्री महिला है। दोनों भारतीय मूल की हैं।
चीन, रूस और भारत की तरह डोनाल्ड ट्रम्प भी अमेरिका के एकमात्र लोकप्रिय नेता बनकर उभरना चाहते थे। मतदाताओं ने उनकी दाल नहीं गलने दी। महिलाओं को खास अदा में महत्व देने में ट्रम्प की बराबरी सिर्फ ब्लादिमिर पुतिन कर सकते हैं। सहयोगी सुंदरी के साथ यात्रा के कारण कोरोना संक्रमण ट्रम्प के गले पड़ा। पुतिन ने जिमनास्ट अलीना को गले लगाकर राष्ट्रीय संवाद ग्रुप का नियंत्रण सौंपा। साढ़े 78 करोड़ रूबल सालाना (करीब सवा 6 करोड़ रुपए मासिक) की व्यवस्था कर दी। अलीना को रूस की गुप्त प्रथम महिला कहा जाता है। पहली मर्तबा राष्ट्रपति चुनाव लड़ते समय पुतिन की सहेली का नाम स्वेतलाना था। स्वेतलाना आज एक बेटी की मां तथा सात अरब रुपए की स्वामिनी हैं। स्वेतलाना की बेटी ने जन्म प्रमाणपत्र में पिता के नाम का कालम खाली छोड़ा। वह गोत्र या जातिनाम व्लादिमिरोव्ना लिखती है। 25 नवम्बर को पुतिन के प्रवक्ता पेस्कोव ने पूछताछ की बौछार का सामना करते हुए सफाई दी-एलिजावेता व्लादिमिरोव्ना नाम की लडक़ी को मैं नहीं जानता। पत्रकार पीछे पडऩे के आदी होते हैं। इसीलिए नेताओं से पिटते और प्रताडि़त होते हैं। पत्रकार ने पलट कर कहा-पेस्कोव से नहीं पूछा कि वह जानता है या नहीं। पुतिन उसे जानते हैं या नहीं? हम यह जानना चाहते हैं। पंगा लेने वाले जान लें कि राजनीति में आने से पहले पुतिन लगभग वही जिम्मा संभालते थे जो भारत में अजीत डोभाल के सिपुर्द है। विकसित या विकासशील देशों में महिलाओं को बराबरी पर लाने के नाम पर होने वाले गोरखधंधों के कई किस्से हैं।
भारत में केन्द्रीय वित्त मंत्री महिला है। झारखंड, उत्तराखंड, तेलंगाना के राजभवन महिलाओं के सिपुर्द हैं। पुद्दुचेरी में किरण बेदी बेंत फटकार रही हैं। मानव संसाधन मंत्री महिला थी। न तो ईरानी-तूरानी होने के कारण पद से हटना पड़ा, न शिक्षा-दीक्षा का बखेड़ा कारण बना। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ या अन्य किसी की आपत्ति के कारण हटाने की बात गले नहीं उतरती। केन्द्रीय वित्तमंत्री के कामकाज पर अंगुली उठाने वाले विचार करें। कुछ अपवाद छोडक़र बाकी केन्द्रीय मंत्रियों ने कौन से किले फतह कर लिए? प्रतिपक्ष की काबिलियत का प्रधानमंत्री समय समय पर बखान करते रहते हैं। मंत्रिमंडलीय सहयोगियों के कामकाज का कच्चा-चिट्?ठा उनकी नजऱ से छुपा नहीं है। पश्चिम बंगाल छोडक़र किसी अन्य राज्य में महिला मुख्यमंत्री नहीं है। पत्थर टांकने वाले समुदाय की बेटी को बिहार में उपमुख्यमंत्री बनाया गया। प्रशासन और शोध संस्थाओं में अनुपात कम है। सत्ता के बूते महिला मित्रों को उपकृत करना महत्वपूर्ण नहीं है। भारत में महिलाओं की बराबरी के किस्सों के अनुपात में बलात्कार और प्रताडऩा की कहानियों की भरमार है। राष्ट्रीय दल बार बार चुनाव घोषणा पत्र में महिलाओं को निर्वाचित सदनों में एक तिहाई आरक्षण देने का वादा दोहराते हैं। चुनाव के दौरान मीठी मीठी बातें कर दिलासा देते हैं। दो तिहाई बहुमत जुटाने में किसी प्रकार की कठिनाई न होने के बावजूद वचन पूरा नहीं कर सके। चुनाव में महिलाओं को एक तिहाई उम्मीदवारी नहीं मिलती। वादाखिलाफी का कलंक उनके माथे पर चिपका है। सात समुंदर पार से आकर भारत को डेढ़ सदी तक गुलाम बनाने वाले फिरंगी नर नारी समता को लागू करने के निर्णय तक पहुंच चुके हैं। राजनीतिक दलों का एक तिहाई आरक्षण का वचन समता नहीं है। इस वादे को चुनाव घोषणा पत्र में टांके रखना बेतुका लगता है। बेहतर है, इसे अन्य वादों की तरह भुला दिया जाए।
खफा मुझसे है अहले-दैरो-हरम (काशी-काबे वाले) जो मैंने का था-मुकरता नहीं।
मिरी एक खूबी यही है बहुत, जुबां से जो कहता हूं, करता नहीं।–जाजि़ब आफ़ाक़ी
(लेखक दैनिक भास्कर नागपुर के समूह संपादक हैं)