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कोरोना वायरस से बचाने वाली वैक्सीन क्या दुनिया की अर्थव्यवस्था को भी बचा लेगी?
30-Nov-2020 3:13 PM
कोरोना वायरस से बचाने वाली वैक्सीन क्या दुनिया की अर्थव्यवस्था को भी बचा लेगी?

एलेक्सी काल्मीकोव

एक साथ इतनी सारी वैक्सीन आने की ख़बरों से कोरोना की मार झेल रहे देशों में ख़ुशी की लहर दौड़ गई है.

वैक्सीन पुरानी सामान्य ज़िंदगी लौट आने का वादा लेकर आ रही है. लेकिन क्या ये दुनिया की अर्थव्यवस्था को भी बचा पाएगी जो सदियों में पहली बार ऐसे संकट से जूझ रही है?

इतने बड़े संकट ने दुनिया की बढ़ती अर्थव्यवस्था को रोक दिया है और कई देश तो कई साल पीछे हो गए हैं. कम से कम 12 ख़रब डॉलर का नुक़सान हो चुका है.

संकट से उबरने के कदमों पर अब ज़्यादा ख़र्च करने की ज़रूरत होगी जबकि कमाई घट रही है.

आईएमएफ़ के अनुमान के मुताबिक़ दुनिया को अगले पाँच साल में 28 ख़रब डॉलर का नुक़सान होगा.

दुनिया की सालाना अर्थव्यवस्था
अब जीवन और विकास के लिए कम पैसा होगा लेकिन क़र्ज़ बढ़ेगा. साल 2020 में क़र्ज़ 20 ख़रब डॉलर बढ़ेगा और ये आँकड़ा दुनिया की सालाना अर्थव्यवस्था से साढ़े तीन गुना ज़्यादा है.

इस संकट का कारण सिर्फ़ एक वायरस था तो वैक्सीन पर काम होने की ख़बर से आर्थिक बाज़ारों में ख़ुशी पैदा हुई.

जिनके पास पैसा है वे तो बिज़नेस और घरेलू कमाई के भविष्य में बढ़ने का सोच कर पैसा लगा रहे हैं.

लेकिन अर्थशास्त्री, अधिकारी और बैंकर जिनकी वजह से आर्थिक स्थिरता बनी रहती है और जो संकट में सहयोग देने का काम करते हैं, उन्होंने इस खबर के बाद भी नियंत्रित और संतुलित प्रतिक्रिया दी है.

अमेरिका के केंद्रीय बैंक के प्रमुख जेरोम पॉवेल जो दुनिया के एक जाने-माने और प्रभावशाली बैंकर हैं, जिनके एक शब्द से दुनिया के बाज़ार गिर सकते हैं.

उन्होंने वैक्सीन की ख़बर पर कहा कि "ये एक अच्छी ख़बर है जिसका इंतज़ार था. लेकिन उन्होंने ये भी कहा कि इसका असर निकट भविष्य में नहीं दिखेगा."

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यूरोपीय केंद्रीय बैंक
अमेरिका के बाद सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था यूरोप में भी उनके जैसे बैंकर अभी 'संकट का अंत' कहने में जल्दबाज़ी नहीं कर रहे.

आइरिश अर्थशास्त्री फ़िलिप लेन यूरोपीय केंद्रीय बैंक की परिषद में हैं.

वे कहते हैं, "वैक्सीन के आने से बस ये अनुमान मिल सकता है कि अगले साल के अंत में और साल 2022 में स्थिति क्या मोड़ लेगी, अगले छह महीने के बारे में इससे कुछ नहीं पता चलेगा."

आईएमएफ की प्रमुख क्रिस्टालीना जॉर्जीवा भी इनकी बात का समर्थन करती हैं.

जी20 देशों के नेताओं को अपने संदेश में उन्होंने कहा था कि समस्या का मेडिकल निवारण तो दिख रहा है लेकिन अर्थव्यवस्था की रिकवरी बहुत मुश्किल है और रुकावटों से भरी है.

रोशनी की किरण
तो क्या वैक्सीन वैश्विक अर्थव्यवस्था को नहीं बचा पाएगी जब तक कि बड़े स्तर पर टीकाकरण नहीं शुरू होता? अर्थशास्त्री कहते हैं ऐसा बिलकुल नहीं होगा.

यूरोपीय केंद्रीय बैंक के फ़ेबीओ पनेटा ने कहा, "वैक्सीन का आना एक अच्छी ख़बर है, उस हिसाब से ये अंधेरी सुरंग के अंत में दिखती रोशनी की तरह है."

अर्थशास्त्री इस बात से ख़ुश हैं कि वैक्सीन के आने से कम से कम समस्या का मुख्य कारण ख़त्म हो जाएगा. इसका असर अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा. वो कैसे?

दरअसल, इस संकट से व्यापारिक गतिविधियों और बाज़ार पर बुरा प्रभाव पड़ा क्योंकि लोगों का भविष्य में भरोसा कम हो गया और वे पैसा कम खर्च कर रहे हैं.

अथॉरिटी इस बात से डरी हुई थी कि वायरस अनियंत्रित तरीक़े से फैल जाएगा तो उन्होंने लॉकडाउन लगाए.

तो वैक्सीन के बड़े स्तर पर लोगों तक पहुँचने से पहले भी कम से कम ये दो डर तो ख़त्म हो जाएँगे.

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उत्पादन और व्यापार
वैक्सीन आने से लोगों और बिज़नेस जगत को एक उम्मीद मिलेगी कि अब नया लॉकडाउन नहीं होगा.

इस पूरे वक़्त में उन्होंने जो बचाया होगा किसी मुश्किल वक़्त के लिए, वे उसे खर्च करना शुरू करेंगे जिससे खपत बढ़ेगी.

वे भविष्य में पैसा लगाएँगे जैसे कि प्रॉपर्टी ख़रीदने में या अपने बिज़नेस को बढ़ाने में जिसका मतलब निवेश बढ़ेगा.

अर्थव्यवस्था के बढ़ने के लिए दो मुख्य चीज़ों की ज़रूरत है- खपत और निवेश. इस संकट में सबसे ज़्यादा प्रभाव इन्हीं पर पड़ा.

उत्पादन और व्यापार इतने कम नहीं हुए थे और गर्मियों के बाद वे बेहतर हुए थे.

आईएमएफ का अनुमान है कि वैक्सीन के आने से अगले पाँच साल में होने वाले नुक़सान को 9 ख़रब डॉलर कम कर लिया जाएगा.

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दुनिया की एक तिहाई सम्पत्ति
हालाँकि इस रोशनी के साथ-साथ दुनिया को इन सर्दियों में फिर से एक अंधेरी सुरंग का सामना करना है.

यूरोप में दूसरे लॉकडाउन और अमेरिका में महामारी की दूसरी लहर की वजह से. अमेरिका और यूरोपीय संघ के पास दुनिया की एक तिहाई सम्पत्ति है.

माँग और निवेश के ये दो मुख्य स्रोत हैं. इसलिए दुनिया की अर्थव्यवस्था की सेहत उनकी सेहत पर निर्भर करती है.

इनके बिना वे देश भी अपना घाटा पूरा नहीं कर पाएँगे जिन्होंने कोरोना पर विजय पा ली है जैसे कि चीन.

दुनिया में इस बात की ख़ुशी मनायी जा रही है कि एक के बाद एक वैक्सीन आ गयी हैं लेकिन आर्थिक आँकड़े इस हफ़्ते उसी बात की पुष्टि कर रहे हैं जो आईएमएफ प्रमुख ने कही थी.

उन्होंने कहा था कि रिकवरी होगी लेकिन संकट भी वापस आता रहेगा. 19 यूरोपीय देशों में जहाँ यूरो मुद्रा है वहाँ नयी गिरावट के लक्षण दिख रहे हैं.

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क्या कहते हैं अर्थशास्त्री
अमेरिका में भी स्थिति कुछ ऐसी ही है. जिस नवंबर में वृद्धि की संभावना थी, वहाँ अब आशंका है.

अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि जो अर्थव्यवस्था अभी रिकवर भी नहीं हो पायी है, उसमें एक और मंदी का दौर आने वाला है.

उनका ये निष्कर्ष बिज़नेस और उपभोक्ता की गतिविधियों के डाटा विश्लेषण पर आधारित है.

एयरलाइन्स को अपने खर्च कम करने पड़े, फ़्लाइट्स घटानी पड़ी और इसलिए यहाँ नौकरी करने वाले लोग घाटा उठा रहे हैं.

इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन (आइएटीए) ने इस साल और अगले साल के लिए इंडस्ट्री को 100 अरब डॉलर के नुक़सान का अनुमान लगाया था.

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भविष्य को लेकर आश्वस्त नहीं
लेकिन इस हफ़्ते आए अनुमानों के मुताबिक़ ये नुक़सान 150 अरब डॉलर का हो गया है. मुख्य समस्या है कि उपभोक्ता भविष्य को लेकर आश्वस्त नहीं है.

वैक्सीन की ख़बर के बावजूद ये चिंता बढ़ रही है क्योंकि आर्थिक संकट के देरी से दिखने वाले नतीजे सामने आने लगे हैं, जैसे कि बेरोज़गारी.

यूरोपीय संघ के देशों ने रोज़गार और बिज़नेस को अप्राकृतिक तरीक़े से संभाला हुआ है पैसे का सहयोग देकर.

लेकिन जैसे ही ये देश अपनी योजनाओं का पैसा कम करने लगेंगे तो हर कोई झेल नहीं पाएगा.

यूरोज़ोन में लगातार दूसरे महीने में रोज़गार इंडेक्स नीचे जा रहा हैं जिसका मतलब है बेरोज़गारी ज़्यादा तो खपत कम.

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संकट का एक और साल
महामारी की दूसरी लहर ने दूसरे आर्थिक संकट की आशंका बढ़ा दी है. लेकिन एक अच्छी ख़बर भी है. दूसरी बार का झटका थोड़ा धीरे लगेगा.

वो इसलिए क्योंकि सभी उद्योगों ने महामारी के साथ जीना सीख लिया है.

फ़ैक्टरियाँ अब पूरी तरह खुल रही हैं और जिन देशों में मैन्युफ़ैक्चरिंग एक अहम रोल निभाता है, वे सर्विस सेक्टर वाले देशों के मुक़ाबले संकट से जल्दी उबर रहे हैं, जैसे कि जर्मनी.

स्पेन और ग्रीस जैसे देश टूरिज़्म पर निर्भर करते हैं तो उनके लिए रास्ता अब भी कठिन है.

ये झटका ना सिर्फ़ हल्का होगा बल्कि कम वक्त के लिए होगा. यूरोप में संक्रमण के केस कम हो रहे हैं और लॉकडाउन ज़्यादातर जगहों से हटाया जा चुका है.

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पहले वाले ग्रोथ रेट पर
लेकिन तमाम उम्मीदों के साथ ये जानना भी ज़रूरी है कि इतनी जल्दी संकट से पहले वाले ग्रोथ रेट पर नहीं पहुँच पाएँगे.

संकट से पैदा हुए 28 ख़रब डॉलर के नुक़सान की भरपाई भी जल्दी शुरू नहीं हो सकेगी. फ़िलिप लेन का कहना है कि जीडीपी 2019 के स्तर पर 2022 के अंत तक तो नहीं पहुँच पाएगी.

"वैक्सीन की वजह से भरोसा, सेविंग और रोज़गार तो पैदा नहीं होगा."

फ़ेबीओ पनेटा कहते हैं, "लोगों को भरोसा होने में अभी लम्बा वक़्त लगेगा कि संकट अब ख़त्म हो गया. दूसरे शब्दों में कहूँ तो साल 2021 दूसरा 'महामारी का साल' होगा." (bbc.com)

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