संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : सिक्ख किसानों को बदनाम करने की साजिश के खिलाफ कार्रवाई केन्द्र की जिम्मेदारी..
30-Nov-2020 5:44 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : सिक्ख किसानों को बदनाम करने की साजिश के खिलाफ कार्रवाई केन्द्र की जिम्मेदारी..

हिन्दुस्तान के लोगों का कम से कम एक तबका अपनी राजनीतिक पसंद और नफरत के मुताबिक किसी पर ओछे हमले करने में बहुत से दूसरे देशों के लोगों को मात देते दिखते हैं। अभी जिन लोगों को किसानों के आंदोलन से नफरत है, और जो इसे गैरजरूरी या मोदी-विरोधी समझ रहे हैं, वे इसका मखौल उड़ाते हुए यह भूल जा रहे हैं कि दिन में तीन बार वे किसानों का उगाया हुआ ही खा रहे हैं। जब बाजार में सोना-चांदी आसमान पर पहुंच जाते हैं, तब फसल के दाम में पसीने के दाम जोडऩे में भी लोगों को तकलीफ होती है, किसी को किसानों की कार खटकती है, तो किसी को किसानों के ट्रैक्टर पर लगी गद्दी। इनमें से हर बात किसानों के खिलाफ इस्तेमाल की जा रही है मानो उनका हक नंगा और भूखा रहना ही है, उससे अधिक कुछ भी मांग करना देश के साथ गद्दारी है। 

ऐसे में किसानों के आंदोलन को बदनाम करने के लिए एक वीडियो इस्तेमाल किया जा रहा है जिसमें कुछ सिक्ख (किसानों) के बीच बैठा एक आदमी केन्द्र सरकार के खिलाफ नाराजगी जाहिर कर रहा है, और बीच में वह खालिस्तान के बारे में भी कुछ बोलते सुनाई पड़ता है। हमने कम से कम एक दर्जन अलग-अलग जगहों पर इस वीडियो को देखने-सुनने के बाद पाया जहां पर वह कोई उत्तेजक बात कह रहा है, वहां आवाज अचानक बदलती सुनाई पड़ती है, और ऐसा लगता है कि रिकॉर्डिंग में छेड़छाड़ की गई है। लेकिन इसकी जांच करने के लिए देश में भारत सरकार और प्रदेशों के पास साइबर-सहूलियतें हैं, और इसकी जांच की जा सकती है कि क्या आंदोलन के बीच अचानक सामने आया ऐसा एक वीडियो आंदोलन को बदनाम करने के लिए गढ़ा गया है या आंदोलन से जुड़े किसी एक व्यक्ति ने कोई उत्तेजक बात सचमुच ही कही है। जब पंजाब की अधिकतर आबादी किसानी से जुड़ी हुई है, और अधिकतर आबादी केन्द्र सरकार के कृषि कानूनों के खिलाफ है, तो उनमें से कोई एक व्यक्ति हो सकता है कि मन से खालिस्तान-समर्थक भी हो, लेकिन उससे बाकी तमाम आंदोलन का क्या लेना-देना? किसी पार्टी के कुछ नेता अगर बलात्कारी को माला पहनाते हैं तो क्या पूरी की पूरी पार्टी को बलात्कारी कहा जाएगा, जैसा कि आज किसानों को लेकर सोशल मीडिया पर सुनियोजित तरीके से खालिस्तानी लिखना शुरू किया गया है। लोगों को एक ताजा मामला भूलना नहीं चाहिए कि कन्हैया कुमार के बताए गए जेएनयू के एक वीडियो को लेकर अदालत ने बाद में यह पाया कि देश के टुकड़े-टुकड़े करने का कोई नारा नहीं लगाया गया था, और उस वीडियो को गढ़ा गया था। लेकिन उस झूठ को इतनी बार दुहराया गया था कि आज भी बड़े-बड़े नेता अपने भाषणों में टुकड़े-टुकड़े गैंग जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। 

कन्हैया कुमार तो फिर भी वामपंथी विचारधारा का और सीपीआई का कार्यकर्ता था, और जेएनयू तो वामपंथ-विरोधियों की आंखों की किरकिरी रहता ही है इसलिए उसके खिलाफ एक वीडियो-ऑडियो गढक़र टुकड़े-टुकड़े गैंग विशेषण को उछालना एक राजनीतिक हरकत थी। लेकिन आज पंजाब के किसानों को अगर खालिस्तानी कहा जा रहा है, तो देश के बहुत से लोगों ने इस पर ऐतराज करते हुए यह लिखना शुरू किया है कि देश के मुस्लिम पाकिस्तानी करार दिए जा रहे हैं, देश के सिक्ख किसान खालिस्तानी करार दिए जा रहे हैं, तो फिर हिन्दुस्तानी है कौन? यह सवाल जायज है, और किसी तबके को बदनाम करने की यह साजिश नाजायज है। कल तक इसी पंजाब में भाजपा और अकाली दल की सरकार थी। भाजपा का एक सबसे पुराना भागीदार, अकाली दल तो धर्म पर आधारित सिक्ख समाज की ही राजनीति करता है। आज अकाली दल भाजपा और एनडीए से अलग है, तो क्या सिक्ख समाज को खालिस्तानी कहना किसी भी कोने से जायज है? यह सिलसिला खतरनाक है, देश के दलित-आदिवासियों को कहीं चमार, तो कहीं सरकारी दामाद कहा जाता है, दलितों को अछूत तो समझा ही जाता है, और उन्हें प्रताडि़त करने की जितनी पुरातनी प्रथाएं हैं, उनको नई-नई शक्लों में आज भी इस्तेमाल किया जा रहा है। यह देश आखिर है किसका? मुसलमानों को पाकिस्तान भेजने पर आमादा है, दलित-आदिवासियों से मांस छुड़वाना चाहता है, ईसाईयों को धर्मांतरण के आरोप में जिंदा जलाया जाता है, सिक्खों को किसान मानने से इंकार किया जा रहा है, और उन्हें खालिस्तानी करार दिया जा रहा है। यह सिलसिला कहां जाकर थमेगा? राजनीति इतनी ओछी नहीं हो जानी चाहिए कि वह लोगों को सम्प्रदायों में बांटकर एक-दूसरे के खिलाफ खड़े कर दे, वह लोगों को देश के प्रति गद्दार और किसी दुश्मन देश के प्रति वफादार करार दे, राजनीति इतनी ओछी भी नहीं होनी चाहिए कि वह बेकसूरों पर देश के टुकड़े करने की तोहमत थोपे। राजनीति इतनी ओछी भी नहीं हो जानी चाहिए कि वह इस मुल्क की फौज में काम करते हुए जिंदगी गुजारने वालों को यहां का नागरिक मानने से इंकार कर दे, और देश के भीतर ही शरणार्थी शिविरों में डाल दे। पंजाब बिल्कुल दिल्ली के करीब है, और पंजाब के लोगों की इज्जत को इस तरह मिट्टी में मिलाना, उन्हें गद्दार करार देना उन लोगों को बहुत भारी पड़ेगा जिनके प्रशंसक और समर्थक ऐसा अभियान चला रहे हैं। आज हिन्दुस्तानी फौज में किसी एक राज्य से सबसे अधिक लोग हैं, तो वह पंजाब है। पंजाब के जो किसान आज सरकार के कृषि कानून के खिलाफ सडक़ पर हैं, उनके बच्चे फौजी वर्दियों में सरहदों पर तैनात हैं। आज जब वे फौजी अपने परिवार के लिए खालिस्तानी नाम की गाली सुन रहे होंगे, तब उनके दिल पर क्या गुजर रहा होगा? कुदरत ने मुंह में जुबान दी है इसलिए लोकतंत्र ने किसी को भी गद्दार करार देने का हक दे दिया है ऐसा भी नहीं है। यह सिलसिला अलोकतांत्रिक है, और जिन लोगों के समर्थन में यह चलाया जा रहा है उनकी जिम्मेदारी है कि वे इसे धिक्कारें। हालांकि हमारी इस नसीहत का किसी पर कोई असर होगा ऐसी उम्मीद नहीं है क्योंकि हरियाणा के भाजपा-मुख्यमंत्री किसानों के आंदोलन को खालिस्तानी समर्थकों का समर्थन जैसी बातें कहकर माहौल को और बिगाड़ ही चुके हैं। सिक्खों की कौम ऐसी तोहमतों को सुनने की आदी नहीं है क्योंकि वह मुल्क के लिए बढ़-चढक़र शहादत देने को आगे रहते आई है। केन्द्र सरकार को यह सोचना चाहिए कि एक किसान आंदोलन को बदनाम करने के लिए एक पूरी कौम को जिस तरह बदनाम किया जा रहा है, वह एक बड़ा जुर्म है, और केन्द्र सरकार की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह इसके खिलाफ कार्रवाई करे। 

 क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

 

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news