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किसान आंदोलन: MSP पर माँग मान क्यों नहीं लेती मोदी सरकार? जानिए क्या है वजहें
30-Nov-2020 6:22 PM
किसान आंदोलन: MSP पर माँग मान क्यों नहीं लेती मोदी सरकार? जानिए क्या है वजहें

-सरोज सिंह

भारत की राजधानी दिल्ली के बॉर्डर पर किसानों के धरना प्रदर्शन का सोमवार को पाँचवा दिन है.

पंजाब हरियाणा उत्तर प्रदेश से दिल्ली की तरफ़ कूच कर रहे किसान हाल ही केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए तीन कृषि क़ानूनों का विरोध कर रहे हैं.

अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के मुताबिक़ उनकी अहम माँगों में से एक है, "सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से कम कीमत पर ख़रीद को अपराध घोषित करे और एमएसपी पर सरकारी ख़रीद लागू रहे."

एमएसपी पर ख़ुद प्रधानमंत्री ट्वीट कर कह चुके हैं, "मैं पहले भी कहा चुका हूँ और एक बार फिर कहता हूँ, MSP की व्यवस्था जारी रहेगी, सरकारी ख़रीद जारी रहेगी.

हम यहां अपने किसानों की सेवा के लिए हैं. हम अन्नदाताओं की सहायता के लिए हरसंभव प्रयास करेंगे और उनकी आने वाली पीढ़ियों के लिए बेहतर जीवन सुनिश्चित करेंगे."

उनका ये ट्वीट 20 सितंबर 2020 का है.

लेकिन ये बात सरकार बिल में लिख कर देने को तैयार नहीं है. सरकार की दलील है कि इसके पहले के क़ानूनों में भी लिखित में ये बात कहीं नहीं थी. इसलिए नए बिल में इसे शामिल नहीं किया गया है.

लेकिन बात इतनी आसान है, जैसा तर्क दिया जा रहा है?

दरअसल एमएसपी पर सरकारी ख़रीद चालू रहे और उससे कम पर फसल की ख़रीदने को अपराध घोषित करना, इतना आसान नहीं हैं जितना किसान संगठनों को लग रहा है.

सरकार के लिए ऐसा करना मुश्किल क्यों हैं?

ये जानने से पहले ये जानना ज़रूरी है कि एमएसपी क्या है और ये तय कैसे होता है.

एमएसपी क्या है?

किसानों के हितों की रक्षा करने के लिए देश में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की व्यवस्था लागू की गई है. अगर कभी फसलों की क़ीमत बाज़ार के हिसाब से गिर भी जाती है, तब भी केंद्र सरकार तय न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ही किसानों से फसल ख़रीदती है ताकि किसानों को नुक़सान से बचाया जा सके.

किसी फसल की एमएसपी पूरे देश में एक ही होती है. भारत सरकार का कृषि मंत्रालय, कृषि लागत और मूल्य आयोग (कमिशन फ़ॉर एग्रीकल्चर कॉस्ट एंड प्राइजेस CACP) की अनुशंसाओं के आधार पर एमएसपी तय करता है. इसके तहत अभी 23 फसलों की ख़रीद की जा रही है.

इन 23 फसलों में धान, गेहूँ, ज्वार, बाजरा, मक्का, मूंग, मूंगफली, सोयाबीन, तिल और कपास जैसी फसलें शामिल हैं.

एक अनुमान के अनुसार देश में केवल 6 फीसदी किसानों को एमएसपी मिलता है, जिनमें से सबसे ज्यादा किसान पंजाब हरियाणा के हैं. और इस वजह से नए बिल का विरोध भी इन इलाकों में ज्यादा हो रहा है.

कृषि क़ानून से अब तक क्या बदला?

भारत सरकार के पूर्व कृषि सचिव सिराज हुसैन कहते हैं कि एमएसपी को लेकर किसानों की चिंता के पीछे कुछ वजहें हैं. सरकार ने अब तक लिखित में ऐसा कोई ऑर्डर जारी नहीं किया है कि फसलों की सरकारी खरीद जारी रहेगी. अब तक जो भी बातें हो रही हैं वो मौखिक ही है. ये एक वजह है नए कृषि क़ानून के बाद किसानों की चिंता बढ़ने की.

यहाँ गौर करने वाली बात ये है कि सरकारी ख़रीद जारी रहेगी इसका ऑर्डर कृषि मंत्रालय से नहीं बल्कि खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय की तरफ़ से आना है.

दूसरी वजह है रूरल इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फंड राज्य सरकारों को ना देना. केंद्र सरकार तीन फीसद का ये फंड हर साल राज्य सरकारों को देती थी. लेकिन इस साल केंद्र सरकार ने ये फंड देने से मना कर दिया है. इस फंड का इस्तेमाल ग्रामीण इंफ्रास्ट्रक्चर (जिसमें कृषि सुविधाएँ भी शामिल है) बनाने के लिए किया जाता था.

नए कृषि क़ानून बनने के बाद ये दो महत्वपूर्ण बदलाव किसानों को सामने सामने दिख रहे हैं.

कारण 1 : फसलों की गुणवत्ता के मानक कैसे तय होंगे?

सिराज हुसैन कहते हैं कि अगर एमएसपी पर ख़रीद का प्रावधान सरकार कानून में जोड़ भी दे तो आख़िर क़ानून का पालन किया कैसे जाएगा? एमएसपी हमेशा एक 'फेयर एवरेज क्वॉलिटी' के लिए होता है. यानी फसल की निश्चित की गई क्वॉलिटी होगी तो ही उसके लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य दिया जाएगा. अब कोई फसल गुणवत्ता के मानकों पर ठीक बैठती है या नहीं इसे तय कैसे किया जाएगा?

जो फसल उन मानकों पर खरी नहीं उतरेगी उसका क्या होगा?

ऐसी सूरत में सरकार कानून में किसानों की माँग को शामिल कर भी ले तो कानून को अमल में लाना मुश्किल होगा.

कारण 2: भविष्य में सरकारी ख़रीद कम होने की संभावना

दूसरी वजह के बारे में सिराज हुसैन कहते हैं कि सरकार को कई कमेटियों ने सिफारिश दी है, कि गेंहू और धान की खरीद सरकार को कम करना चाहिए. इससे संबंधित शांता कुमार कमेटी से लेकर नीति आयोग की रिपोर्ट सरकार के पास है.

सरकार इसी उद्देश्य के तहत काम भी कर रही है. आने वाले दिनों में ये ख़रीद कम होने वाली है. यही डर किसानों को सता भी रहा है.

ऐसे में जो फसल सरकार खरीदेगी या नहीं, खरीदेगी तो कितना, और कब खरीदेगी जब ये तय नहीं है तो लिखित में पहले से एमएसपी वाली बात कानून में कैसे कह सकती है?

आरएस घुमन, चंडीगढ़ के सेंटर फॉर रिसर्च इन रूरल एंड इंडस्ट्रीयल डेवलपमेंट में प्रोफेसर हैं. कृषि और अर्थशास्त्र पर इनकी मजबूत पकड़ है. बीबीसी से बातचीत में उन्होंने ऊपर लिखे तर्कों के अलावा भी कई वजहें गिनाई हैं, जिस कारण सरकार किसानों की एमएसपी संबंधित माँग नहीं मान रही.

कारण 3 - निजी कंपनियाँ एमएसपी पर फसल ख़रीद को तैयार नहीं होंगी

आरएस घुमन के मुताबिक़ भविष्य में सरकारें कम खरीदेंगी तो जाहिर है किसान निजी कंपनियों को फसलें बेचेंगे. निजी कंपनियाँ चाहेंगी कि वो एमएसपी से कम पर खरीदें ताकि उनका मुनाफ़ा बढ़ सके. इसलिए सरकार निजी कंपनियों पर ये शर्त थोपना नहीं चाहती. इसमें सरकार के भी कुछ हित जुड़े हैं और निजी कंपनियों को भी इससे दिक्कत होगी.

हालांकि केंद्र सरकार में कृषि सचिव के पद पर रहे, सिराज हुसैन नहीं मानते कि कॉरपोरेट के दबदबे की वजह से सरकार ऐसा नहीं करना चाहती. उन्हें ये दलील स्वीकार नहीं है.

कारण 4 - किसान भी पड़ सकते हैं दिक्कत में

आरएस घुमन के मुताबिक़ अर्थव्यवस्था के लिहाज से भी एमएसपी पर सरकार की हिचकिचाहट को एक और तरीके से समझा जा सकता है. इसके लिए दो शब्दों को समझना ज़रूरी होता है.

पहला शब्द है 'मोनॉपली'. मतलब जब बेचने वाला एक ही और उसकी ही मनमानी चलती हो, तो वो मनमानी कीमत वसूल करता है.

दूसरा शब्द है 'मोनॉप्सनी'. मतलब ख़रीदने वाला एक ही हो और उसकी मनमानी चलती है यानी वो जिस कीमत पर चाहे उसी कीमत पर सामान ख़रीदेगा.

आरएस घुमन का कहना है कि सरकार ने जो नए क़ानून पास किए हैं उससे आने वाले दिनों में कृषि क्षेत्र में 'मोनॉप्सनी' बनने वाली है. कुछ एक कंपनियाँ ही कृषि क्षेत्र में अपना एक कार्टेल (गठजोड़) बना लेंगी तो वो जो कीमत तय करेगी उसी पर किसानों को सामान बेचना होगा.

अगर एमएसपी का प्रावधान क़ानून में जोड़ दिया गया तो किसानों पर निजी कंपनियों का वर्चस्व ख़त्म हो सकता है. इसका नतीजा ये भी हो सकता है कि ये कंपनियाँ फसलें कम खरीदेंगी.

सरकार के पास कोई रास्ता नहीं है जिससे वो एमएसपी पर पूरी फसल ख़रीदने के लिए निजी कंपनियों को बाध्य कर सके. वो भी तब जब सरकार किसानों की फसल कम खरीदने का मन पहले से बना रही हैं.

ऐसे में किसान के लिए भी दिक्कत बढ़ सकती है. वो अपनी फसल किसको बेचेंगे. ऐसे में हो सकता है कि एमएसपी तो दूर उनकी लागत भी ना निकल पाए.

कारण 5 : फसल की कीमत का आधार - सरकार तय करने से बचना चाहती है

आरएस घुमन कहते हैं, "एमएसपी - किसानों को फसल की कीमत तय करने का एक न्यूनतम आधार देता है, एक रेफ्रेंस प्वॉइंट देता है, ताकि फसल की कीमत उससे कम ना हो. एमएसपी उन्हें एक सोशल सुरक्षा प्रदान करती है.

जबकि निजी कंपनियाँ, सामान की कीमतें डिमांड और सप्लाई के हिसाब से तय करती है. ये उनका तर्क है.

'मोनॉपली' से कृत्रिम तौर पर कुछ अनाज की सप्लाई की कमी पैदा की जा सकती है, ताकि उपभोग्ता से ज्यादा कीमत वसूल कर सकें. वहीं 'मोनॉप्सनी' से कम खरीद करके डिमांड की कमी पैदा की जा सकती है, ताकि किसान कम कीमत पर बेचने को मजबूर हों.

इसलिए सरकार दोनों पक्षों के विवाद में पड़ना ही नहीं चाहती.

सरकार इस पूरे मसले को द्विपक्षीय रखना चाहती है. अगर क़ानून में एमएसपी का प्रावधान जोड़ दिया तो इससे जुड़े हर मुकदमें में तीन पक्ष शामिल होंगे - एक सरकार, एक किसान और तीसरा निजी कंपनी.

विवाद का हल क्या है?

अनुमान के मुताबिक़ भारत में 85 फीसदी छोटे किसान है, जिनके पास खेती के लिए पाँच एकड़ से छोटी ज़मीन है.

आरएस घुमन का मानना है कि एमएसपी से नीचे ख़रीद को अपराध घोषित करने पर भी विवाद खत्म नहीं होता दिख रहा है. तीनों क़ानून को वापस लेना ही एक मात्र रास्ता है.

फिलहाल क़ानून वापस लेने पर सरकार राज़ी होती नहीं दिख रही है.

लेकिन पूर्व कृषि सचिव सिराज हुसैन कहते हैं, इसका एक रास्ता है कि सरकार किसानों को डायरेक्ट फ़ाइनेंशियल सपोर्ट दे जैसा किसान सम्मान निधि के ज़रिए किया जा रहा है.

और दूसरा उपाय है किसान दूसरी फसलें भी उगाए जिनकी मार्केट में डिमांड है. अभी केवल गेंहू, धान उगाने पर किसान ज्यादा ज़ोर देते हैं और दलहन और ऑयल सीड पर किसान कम ध्यान देते हैं. इससे मार्केट का डायनमिक्स बना रहेगा.(https://www.bbc.com/hindi)

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