संपादकीय

दैनिक ‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : पासपोर्ट-तबके का लाया कोरोना मार रहा है बेकसूर राशन कार्ड वाले तबके को
30-Dec-2020 6:01 PM
दैनिक ‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : पासपोर्ट-तबके का लाया कोरोना मार रहा है बेकसूर राशन कार्ड वाले तबके को

ब्रिटेन में कोरोना की एक नई किस्म सामने आने के बाद हडक़म्प मचा हुआ है। इससे लोगों को सीधे तो खतरा उतना ही है जितना कि कोरोना की अभी तक चल रही किस्म से है, लेकिन इसका संक्रमण बहुत तेज रफ्तार से दूसरों तक होता है इसलिए यह अधिक खतरनाक है। यह बात खबरों में दस दिनों से चली आ रही है, और दुनिया के दर्जनों देशों ने ब्रिटेन से विमानों की आवाजाही बंद कर दी है। लेकिन हिन्दुस्तान में ब्रिटेन से उड़ान बंद होने के पहले जो मुसाफिर यहां पहुंचे हैं उनमें दर्जनों लोग कोरोना की इस नई किस्म से संक्रमित मिले हैं। और सैकड़ों लोग ऐसे हैं जिन्होंने अपने फोन बंद कर लिए हैं, और राज्य सरकारें उन्हें ढूंढ नहीं पा रही हैं। जो लोग अंतरराष्ट्रीय हवाई सफर करके आ रहे हैं, उन्हें कोरोना की पिछली और नई किस्म दोनों के खतरे मालूम हैं, लेकिन वे जांच से भाग रहे हैं, सरकार से भाग रहे हैं। 

लोगों को याद होगा कि जब यह बात स्थापित हो गई थी कि हिन्दुस्तान में कोरोना दूसरे देशों से आया है, और हवाई मुसाफिर इसे लेकर आए हैं, तब एक तीखी लाईन इस्तेमाल हो रही थी कि पासपोर्ट वाले इसे लेकर आए, और राशन कार्ड वालों को थमा दिया। आज फिर वही नौबत हो रही है कि देश का गरीब तबका किसी तरह कोरोना, और उससे कहीं अधिक खतरनाक लॉकडाऊन, से उबरने की कोशिश कर रहा है, और विदेशों से लौट रहे संपन्न लोग गैरजिम्मेदारी दिखा रहे हैं। दिक्कत यह भी है कि जब सरकारी अस्पतालों में जांच और इलाज की बात आती है तो विदेशों से लौटने वाले लोग अपनी संपन्नता या दूसरे किसी किस्म की ताकत के चलते पहले बारी पाते हैं, और गरीब वहां भी पिछड़ जाते हैं। 

आज ट्विटर पर एक महिला मुसाफिर ने एक फोटो पोस्ट की है जिसमें भारत के एक यात्री विमान की एक कतार दिख रही है, और यह पूरी कतार ही बिना मास्क के बैठी हुई है। इस महिला ने लिखा है कि विमान के कर्मचारी किसी को मास्क पहनने नहीं कह रहे थे। और यह बात सही इसलिए लग रही है कि अब तक चली आ रही मास्क, और उसके ऊपर फेस-शील्ड वाली तस्वीरें आज लागू नहीं लग रही हैं। लोग अब सावधानी बरतते हुए थक चुके हैं, वैक्सीन आने की खबरों से उनका भरोसा जरूरत से अधिक बढ़ गया है, और बिना मास्क के नेताओं को देख-देखकर उन्हें यह लग रहा है कि अब सावधानी फिजूल है। एक तरफ तो प्रदेशों में मुसाफिर बसों में क्षमता से आधे मुसाफिर ले जाने का नियम लादा गया है जिसके चलते बसों ने किराया बढ़ा दिया है। दूसरी तरफ तंग सीटों वाले विमानों की हर सीट पर मुसाफिर बिठाने की छूट दी गई है जिससे खतरा अधिक दिखता है। हिन्दुस्तानी रेलगाडिय़ों में अभी चुनिंदा स्टेशनों से चुनिंदा रेलगाडिय़ां चल रही हैं जिनमें रिजर्वेशन से ही चढ़ा जा सकता है। आम मुसाफिरों के लिए बिना रिजर्वेशन वाली रेलगाडिय़ां नहीं चल रही हैं। 

इन तमाम बातों को एक साथ लिखने का मकसद यह है कि हिन्दुस्तान की सरकार से लेकर अदालतों तक, और राज्य सरकारों तक, सबके फैसलों में संपन्न तबके और विपन्न तबके के बीच एक बड़ा साफ फर्क दिखाई पड़ता है। पासपोर्ट वालों और राशन कार्ड वालों में भेदभाव किया जा रहा है। आम जनता को तो बिहार के चुनाव से लेकर हैदराबाद के चुनाव तक, और बंगाल की राजनीतिक रैलियों तक झोंका जा रहा है, लेकिन कुल 540 सदस्यों वाली लोकसभा, और उससे भी छोटी राज्यसभा पर कोरोना का खतरा बताते हुए उनका सत्र टाल दिया गया है। अगर तमाम सहूलियतों और चिकित्सा सुविधाओं, सावधानियों के बीच संसद में सदस्यों के बैठने में भी कोरोना का खतरा है, तो फिर चुनावी और राजनीतिक रैलियों में लोगों का रेला जुटाना खतरे से परे कैसे हो गया? 

आम मुसाफिरों के लिए बसें घट गईं, ट्रेनें बहुत ही कम रह गईं, लेकिन खास मुसाफिरों के लिए हवाई जहाज की तंग सीटें भी महफूज मानी जा रही हैं। राज्यों में उन लोगों की गिरफ्तारियां हो रही हैं जो कोरोना पॉजिटिव मिले थे लेकिन होम क्वारंटीन में रहते हुए बाहर घूम रहे थे। ऐसी कोई गिरफ्तारी किसी हवाई मुसाफिर की नहीं सुनी गई है जबकि विदेशों से लौटकर वे गायब हुए जा रहे हैं। 

जैसा कि कोरोना के हमले के शुरू के महीनों में ही देखा गया था कि विदेशों से आने वाले आम मुसाफिरों से लेकर ट्रंप की अहमदाबाद की चुनावी सभा में आने वाले हजारों विदेशियों से खतरा आया, और गरीब हिन्दुस्तानियों की जिंदगी को तबाह कर गया। आज भी वही सिलसिला जारी है। मास्क न लगाने पर देश भर में कई शहरों में सडक़ों पर आम लोगों को रोक-रोककर सैकड़ों रूपए जुर्माना लिया जा रहा है, और खास लोग विमान से लेकर रेस्त्रां और बार तक हर किस्म की लापरवाही की आजादी का मजा ले रहे हैं। हालत यह है कि हिन्दुस्तान में आम लोग तो चूसी हुई गुठली जितने महत्वपूर्ण भी नहीं रह गए। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

 

 

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