संपादकीय
लॉकडाऊन के दौर में हिन्दुस्तान में डिजिटल माध्यम का भरपूर इस्तेमाल भी हुआ, और उसका भरपूर विस्तार भी हुआ। लोगों ने इंटरनेट कंपनियों से बड़े डेटा पैक खरीदे, और घर बैठे ऑनलाईन काम भी अधिक किया, ऑनलाईन मनोरंजन भी अधिक किया। अब देश भर से ऐसी खबरें आ रही हैं कि इंटरनेट पर हार्डकोर कहे जाने वाले पोर्नो पर सरकारी रोक लगने के बाद देश के भीतर बहुत से शहरों में ऐसा सॉफ्ट पोर्नो बन रहा है जिसे देखने में हिन्दुस्तानियों की बड़ी दिलचस्पी दिख रही है। ऐसी सेक्सी वीडियो ओटीटी प्लेटफॉर्म पर देखने के लिए थोक में पैकेज मिल रहे हैं, या हर महीने के, या साल भर के पैकेज भी। इस कारोबार पर अभी छपी एक लंबी रिपोर्ट के मुताबिक उत्तरप्रदेश का मेरठ शहर सॉफ्ट पोर्नो वीडियो बनाने का एक बड़ा केन्द्र बनकर उभरा है। बिना किसी कहानी के जो हार्डपोर्नो रहते हैं उनकी वेबसाईटों पर तो भारत सरकार आसानी से रोक लगाते आई है। लेकिन सॉफ्टपोर्नो तो थोड़ी-बहुत कहानी के साथ लपेटकर परोसे गए बहुत सारे सेक्स का पैकेज रहता है जिसे लेकर आसानी से सरकारी फैसला नहीं हो सकता। इन्हें बनाने वाले इसे असल जिंदगी की कहानियों से जुड़ा हुआ मनोरंजन बताते हैं, और खुद के पोर्नो होने से इंकार करते हैं। दूसरी तरफ जिस रफ्तार से इसके दर्शक बढ़ रहे हैं, यह एक फिक्र का सामान बनता जा रहा है कि क्या जनता के बीच कानूनी रूप से मौजूद मनोरंजन इस तरफ इतना मुड़ रहा है!
भारत में आम लोगों के लिए कानूनी बाजार में उपलब्ध मनोरंजन वैसे भी घटिया माना जाता है। ऐसे में जब उससे और सौ गुना घटिया मनोरंजन बाजार पर कब्जा करते दिख रहा है, तो लगता है कि देश में कला और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का यह कारोबार कहां जाकर खत्म होगा? ऐसा मानने वाले लोग भी बहुत हैं कि पोर्नो देख-देखकर सेक्स-अपराध करने वाले लोग कम नहीं हैं, तो फिर देश में बने हुए इस देशी सॉफ्टपोर्नो का असल जिंदगी पर क्या असर होगा? और क्या इसे बनाने वाले लोगों के इस दावे में सचमुच ही कुछ दम है कि ये असल जिंदगी की कहानियां हैं, और असल जिंदगी में ऐसा होता है?
यह सिलसिला कुछ बेचैन करता है। कानूनी प्रतिबंध तो अधिक अश्लील और अधिक हार्डपोर्नो पर लगाना अधिक आसान है, जिन लोगों ने पिछले कुछ महीनों में सॉफ्टपोर्नो के कारोबार को हिन्दुस्तान में सैकड़ों करोड़ रूपए का बना दिया है, और जो रात-दिन छलांगें लगाकर बढ़ रहा है, वे लोग अपने पर लगे किसी सरकारी प्रतिबंध को बिना अदालती चुनौती के बर्दाश्त तो करने वाले है नहीं। अब यह समझना कुछ मुश्किल है कि हर हाथ में स्मार्टफोन वाला जो तबका ऑनलाईन भुगतान कर सकता है, वह सौ रूपए महीने में ऐसे हजारों वीडियो देखने से कैसे रोका जा सकेगा?
अभी-अभी कुछ दिनों में फेसबुक पर भी ऐसे वीडियो छाने लगे हैं जो कि किसी भुगतान के बिना दो-चार वीडियो परोसकर उसके बाद किसी ओटीटी प्लेटफॉर्म को भुगतान करने के लिए उकसाते हैं ताकि महीने भर या साल भर उसे देखा जा सके। जो लोग इंटरनेट पर हिन्दुस्तान का सॉफ्टपोर्नो ढूंढ भी नहीं रहे हैं, उन्हें भी फेसबुक पर दूसरे वीडियो के बीच ऐसे वीडियो दिख रहे हैं।
इस कारोबार का एक और खतरनाक पहलू यह है कि उत्तरप्रदेश के मेरठ के अलावा देश के दर्जन भर और ऐसे छोटे शहर हैं जहां लोग ऐसे अभिनेताओं को ढूंढ लेते हैं जो आगे चलकर किसी टीवी सीरियल या फिल्म में काम करना चाहते हैं, और फिर कुछ लाख रूपए लगाकर ऐसी छोटी वीडियो फिल्म बना लेते हैं। ऐसे सॉफ्टपोर्नो को एकदम से अश्लील करार देकर उस पर कानूनी रोक भी मुश्किल है, दूसरी तरफ जो महत्वाकांक्षी अभिनेता-अभिनेत्री ऐसे वीडियो में उलझ जाते हैं, उन्हें बचाना भी मुश्किल है।
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