विचार / लेख

किसान आंदोलन पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, हम नहीं चाहते किसी के ख़ून के छींटे हमारे हाथों पर पड़े
11-Jan-2021 6:41 PM
किसान आंदोलन पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, हम नहीं चाहते किसी के ख़ून के छींटे हमारे हाथों पर पड़े

photo credit sikh coalition twitter page

केंद्र सरकार ने कृषि क़ानूनों को जिस तरह से पारित किया और उसके बाद शुरू हुए किसानों के विरोध प्रदर्शन को जैसे हैंडल किया गया है, उसे लेकर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने गहरी नाराज़गी जताई है.

सुप्रीम कोर्ट कवर करने वाले वरिष्ठ पत्रकार सुचित्र मोहंती ने बीबीसी हिंदी को बताया कि केंद्र सरकार ने किसानों के मुद्दे को जिस तरह से हैंडल किया है, उसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को नाराज़गी जताते हुए पूछा कि क्या हो रहा है?

कोर्ट ने सरकार से कहा, "आपने बिना पर्याप्त राय-मशविरा किए हुए एक ऐसा क़ानून बनाया है जिसका नतीजा इस विरोध प्रदर्शन के रूप में निकला है. आप लोग सार्वजनिक जीवन में हैं, भारत सरकार को इसकी ज़िम्मेदारी लेनी होगी. अगर सरकार में ज़िम्मेदारी की कोई भावना होती तो आपको इन्हें थोड़े समय के लिए रोक लेना चाहिए था. आप क़ानून ला रहे हैं तो आप इसे बेहतर तरीक़े से कर सकते हैं."

चीफ़ जस्टिस अरविंद बोबडे की अध्यक्षता में तीन जजों की बेंच ने कृषि क़ानूनों और किसानों के विरोध प्रदर्शन के मुद्दे पर दायर की गई याचिकाओं पर सुनवाई की. इनमें द्रमुक के सांसद तिरुचि शिवा और राजद के सांसद मनोज झा की याचिकाएं भी थीं. इन लोगों ने कृषि क़ानूनों की संवैधानिक वैधता को लेकर सवाल खड़े किए हैं.

कोर्ट ने कहा, "हमें नहीं लगता कि केंद्र सरकार इस मामले को अच्छी तरह से हैंडल कर रही है. हमें आज ही कोई क़दम उठाना होगा. ये एक गंभीर मामला है. हम इस पर एक कमेटी गठित करने का प्रस्ताव रख रहे हैं. हम ये भी विचार कर रहे हैं कि अगले आदेश तक इन क़ानूनों के अमल पर रोक लगा दी जाए."

कमेटी के गठन का प्रस्ताव

इस मामले पर केंद्र सरकार के रवैये को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा, "हमारा सुझाव है कि कमेटी के सामने बातचीत का रास्ता खोलने के लिए इन क़ानूनों के अमल पर रोक लगाई जाए. हम और कुछ नहीं कहना चाहते. विरोध प्रदर्शन जारी रखे जा सकते हैं. लेकिन इसकी ज़िम्मेदारी कौन लेगा?"

"भले ही आपको भरोसा हो या न हो पर सुप्रीम कोर्ट अपना काम करेगा. भले ही आप प्रदर्शन स्थल पर अपना धरना जारी रखें या प्रदर्शन थोड़ा आगे बढ़े या किसी अन्य क्षेत्र में इसका दायरा बढ़े. हमें आशंका है कि इससे शांति भंग हो सकती है. अगर कुछ हुआ तो हममें से हर कोई इसके लिए ज़िम्मेदार होगा. हम नहीं चाहते कि हमारे हाथों पर किसी के ख़ून के छींटे पड़े. हम सुप्रीम कोर्ट हैं. हम वो करेंगे जो हमें करना है. इसे समझने की कोशिश कीजिए."

सुप्रीम कोर्ट ने ज़ोर देकर कहा, "अगर केंद्र सरकार कृषि क़ानूनों के अमल को रोकना नहीं चाहती तो हम इस पर स्थगन आदेश देंगे. भारत सरकार को इसकी ज़िम्मेदारी लेनी होगी. आप (केंद्र) ये क़ानून ला रहे हैं तो आप ये बेहतर तरीक़े से कर सकते हैं."

शांति भंग की आशंका

कोर्ट ने ये भी कहा कि एक भी ऐसी याचिका नहीं दायर की गई है जिसमें इन क़ानूनों को अच्छा बताया गया हो. "अदालत ने पूछा, हम नहीं जानते हैं कि क्या बातचीत चल रही है? लेकिन क्या इन क़ानूनों को थोड़े समय के लिए रोका नहीं जा सकता है?"

"अगर हम लोग कृषि क़ानूनों के लागू किए जाने पर रोक लगा देते हैं तो आप अपना विरोध जारी रख सकते हैं. हम इस तरह की आलोचनाएं नहीं चाहते हैं कि कोर्ट प्रोटेस्ट दबा रहा है. इस पर ग़ौर किए जाने की ज़रूरत है कि क्या प्रदर्शनकारियों को वहां से थोड़ी दूर हटाया जा सकता है. सच कहें तो हमें ये आशंका है कि वहां कुछ ऐसा हो सकता है जिससे शांति भंग हो सकती है. भले ही ये इरादतन हो या फिर ग़ैर-इरादतन. हम ये सुनिश्चित करना चाहते हैं कि सड़कों पर कोई हिंसा न हो."

"हम कृषि क़ानूनों के अमल पर रोक लगाएंगे. हम ये स्पष्ट करना चाहते हैं कि हम प्रदर्शन को दबा नहीं रहे हैं. आप विरोध-प्रदर्शन जारी रख सकते हैं. लेकिन सवाल ये है कि क्या विरोध प्रदर्शन उसी जगह पर जारी रहना चाहिए? अगर केंद्र सरकार क़ानून पर रोक नहीं लगाना चाहती, तो हम इन क़ानूनों के अमल पर रोक लगाएंगे."

क़ानूनों पर स्थगन आदेश

सुप्रीम कोर्ट में एक किसान संगठन की तरफ़ से पैरवी कर रहे सीनियर एडवोकेट दुष्यंत दवे ने कहा, "इतना महत्वपूर्ण क़ानून संसद में ध्वनि मत से कैसे पारित किया जा सकता है? अगर सरकार गंभीर होती तो वो संसद का संयुक्त सत्र बुला सकती थी और सरकार ऐसा करने से संकोच क्यों कर रही है. किसानों को रामलीला मैदान में जाने की इजाज़त दी जानी चाहिए. हमें किसी क़िस्म की हिंसा में दिलचस्पी नहीं है."

अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के पुराने फ़ैसलों में ये कहा गया है कि कोर्ट क़ानूनों पर स्थगन आदेश नहीं दे सकती है. वेणुगोपाल ने उन फ़ैसलों की नज़ीर सुप्रीम कोर्ट के सामने रखी जिनमें कोर्ट ने ये कहा था कि क़ानूनों पर स्टे नहीं दिए जा सकते हैं.

उन्होंने कहा, "कोर्ट किसी क़ानून पर तब तक स्टे ऑर्डर नहीं दे सकता है जब तक कि कोर्ट ये मान ले कि वो क़ानून बिना किसी क़ानूनी अधिकार के पारित किया गया हो और उससे बुनियादी अधिकारों का हनन होता हो."

शांतिपूर्ण तरीक़े से विरोध प्रदर्शन

इस दलील पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमें ये कहते हुए अफ़सोस हो रहा है कि केंद्र सरकार की हैसियत से आप इस समस्या का हल नहीं निकाल पाए हैं. हालांकि अटॉर्नी जनरल ने ये कहा कि किसान शांतिपूर्ण तरीक़े से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.

वेणुगोपाल ने कहा, "हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की रैली में जो कुछ हुआ, वो नहीं हो सकता है. 26 जनवरी जैसे राष्ट्रीय महत्व के दिन को बर्बाद करने के लिए किसान अपने ट्रैक्टर्स से राजपथ पर मार्च करने की योजना बना रहे हैं."

याचिकाकर्ताओं में से एक पक्ष की पैरवी कर रहे सीनियर एडवोकेट हरीश साल्वे ने कहा कि कुछ ऐसे तत्व हैं जिन्हें प्रदर्शन स्थल से हटाये जाने की ज़रूरत है. साल्वे ने कनाडा के एक संगठन का ज़िक्र किया जो 'जस्टिस फ़ॉर सिख' के बैनर तले पैसा जुटा रहा है.

याचिकाकर्ता एमएल शर्मा ने कहा कि संसद को कृषि क़ानून बनाने का कोई अधिकार नहीं था. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम आपकी दलीलें समझ नहीं पा रहे हैं. हम इस पर बाद में सुनवाई करेंगे.(bbc.com/hindi)

 

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news