संपादकीय

दैनिक ‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : क्या इंसाफ के लिए कोर्ट ऐसी कमेटी बनाता है?
13-Jan-2021 2:29 PM
 दैनिक ‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  क्या इंसाफ के लिए कोर्ट   ऐसी कमेटी बनाता है?

photo from twitter

किसान आंदोलन को लेकर दो दिन पहले बड़ी हमदर्दी दिखाने वाला सुप्रीम कोर्ट उस शाम से ही शक के घेरे में था, कल आंदोलन पर सुप्रीम कोर्ट का अंतरिम आदेश उस शक को गहरा कर गया, और शाम होते-होते यह साफ हो गया कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर एक बड़ा ही विवादास्पद आदेश दिया है। कल अदालत ने आंदोलनकारी किसानों से बात करने के लिए चार लोगों की एक कमेटी बनाई, और शाम होते-होते लोगों ने तुरंत ही इन चारों के कई बयान ढूंढकर सामने रख दिए कि किस तरह ये चारों ही सरकार समर्थक लोग हैं, उन तीनों कृषि-कानूनों का खुलकर समर्थन कर चुके लोग हैं जिन कानूनों को खारिज करने के लिए किसानों का आंदोलन चल रहा है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश में यह खुलासा भी नहीं है कि आंदोलनकारी किसानों से बात करने के लिए बनाई गई कमेटी का नाम किसके सुझाए हुए हैं, या किस आधार पर ये नाम छांटे गए हैं। फिलहाल पहली नजर में ये नाम ऐसे लगते हैं कि आठ लोगों की कमेटी में चार नाम सरकार ने दिए हैं, और चार नाम आंदोलनकारियों की तरफ से आएंगे। दिक्कत बस छोटी सी है कि कमेटी में चार ‘सरकारी’ नामों से परे और कोई नाम नहीं आने वाले हैं। ये तीनों कृषक-कानून पिछले कुछ महीनों के ही हैं, इसलिए उन पर इस कमेटी के मेम्बरान की कही बातें पल भर में सामने आ रही हैं। इन सबने खुलकर इन कानूनों का साथ दिया हुआ है, और उनकी अपनी सोच ही उन्हें ऐसी किसी मध्यस्थ कमेटी में रहने का अपात्र साबित करती है। ऐसे नामों की कमेटी बनाकर सुप्रीम कोर्ट जजों ने अपने आपको एक अवांछित विवाद के कटघरे में खड़ा कर दिया है। ऐसी कमेटी न तो सरकारी ने मांगी थी जो कि किसानों के साथ बातचीत में लगी हुई है, न ही किसानों ने ऐसी कमेटी मांगी थी, बल्कि किसान तो ऐसी कमेटी के खिलाफ थे और उनके वकील ने साफ-साफ कहा है कि किसान इनसे बात नहीं करेंगे। 

कमेटी के एक सदस्य कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी को मोदी सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया था, वे सरकार की कमेटियों में अध्यक्ष रह चुके हैं, हाल ही में उन्होंने एक लेख लिखकर विवादास्पद कृषि कानूनों का समर्थन का समर्थन किया था, और उनकी वकालत की थी। कमेटी के एक दूसरे सदस्य अनिल घनवत का एक इंटरव्यू आज ही सुबह सामने आया है। सुप्रीम कोर्ट ने जब उन्हें कमेटी में रख ही दिया है, तो उसके बाद तो कम से कम उन्हें अपनी निजी सोच अलग रख देनी थी, लेकिन उन्होंने एक समाचार एजेंसी से कहा किसानों को ये भरोसा दिलाया जाना जरूरी है कि जो भी हो रहा है, वो उनके हित में ही हो रहा है। उन्होंने कहा कि ये आंदोलन कहीं जाकर रूकना चाहिए। इसके पहले वे कह चुके हैं कि इन कानूनों को वापिस लेने की कोई जरूरत नहीं है जिन्होंने किसानों के लिए अवसरों के द्वार खोले हैं। कमेटी के एक और सदस्य डॉ. पी.के. जोशी कह चुके हैं कि कृषि-कानूनों में कोई भी नर्मी बरतना भारतीय कृषि को वैश्विक संभावनाओं से दूर करने का काम होगा। अशोक गुलाटी बहुत लंबी-लंबी बातों में इन कानूनों की जरूरत बता चुके हैं। कमेटी के चौथे सदस्य भूपिन्दर सिंह मान ने केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर से मुलाकात करके कृषि-कानूनों का समर्थन किया था। उन्होंने द हिन्दू अखबार से बात करते हुए कहा था कृषि क्षेत्र में प्रतियोगिता के लिए सुधार जरूरी हैं लेकिन किसानों की सुरक्षा के उपाय किए जाने चाहिए, और खामियों को दुरूस्त किया जाना चाहिए। 

कुल मिलाकर सुप्रीम कोर्ट ने उसके सामने पेश मुद्दों से परे जाकर एक ऐसे अप्रिय काम में अपने आपको उलझा लिया है कि उससे उसकी ऐसी पहल की जरूरत पर सवाल उठ रहे हैं। कृषक-कानूनों के मुद्दे पर किसानों ने सरकार के साथ बैठक के हर न्यौते पर अपने टिफिन सहित जाकर हाजिरी दी थी। सरकार के साथ बैठकों का सिलसिला खत्म नहीं हुआ था। ऐसे में उन्हीं मुद्दों पर किसानों से बात करने के लिए एक ऐसी कमेटी बनाई गई जिसके गठन के भी किसान खिलाफ थे। और फिर उसमें ऐसे नाम रख दिए गए जो कि किसानों के खिलाफ हैं। हाल के बरसों में सुप्रीम कोर्ट ने एक के बाद एक बहुत से ऐसे फैसले दिए हैं जो कि सरकार को तो जाहिर तौर पर सुहा रहे हैं, लेकिन इंसाफ की समझ रखने वाले बहुत से रिटायर्ड जज और संविधान विशेषज्ञ ऐसे फैसलों पर हक्का-बक्का हैं। जैसा कि सोशल मीडिया पर कल से बहुत से लोग लिख रहे हैं, सुप्रीम कोर्ट के कल के अंतरिम आदेश से किसान आंदोलन को खत्म करने का काम होते दिख रहा है, और इससे भारत में न्यायपालिका की विश्वसनीयता पर आंच आई है। कल से लेकर आज तक चारों कमेटी मेंबरों के जो बयान सामने आए हैं, वे हैरान करते हैं कि क्या मध्यस्थ ऐसे छांटे जाते हैं? 

और इस मुद्दे पर एक आखिरी बात और। अदालत ने यह भी कहा है कि इस आंदोलन में बच्चे, बुजुर्ग, और महिलाएं शामिल न हों। क्या हिन्दुस्तान की खेती में महिलाएं शामिल नहीं हैं? सुप्रीम कोर्ट की यह सोच भारी बेइंसाफी की है, और महिला विरोधी है क्योंकि यह ऐसा जाहिर करती है कि भारत में किसानी एक गैरमहिला काम है। सुप्रीम कोर्ट की दिग्गज महिला वकीलों से लेकर देश की प्रमुख महिला आंदोलनकारियों ने भी अदालत की इस बात की जमकर आलोचना और निंदा की है। कल हमने भी इस अखबार में अदालत के इस रूख पर लिखा था। लेकिन क्या आज हिन्दुस्तान की अदालतें दीवारों पर लिक्खे हुए को भी पढ़ पा रही हैं?   (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

 

 

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news