विचार / लेख
देश में अडल्टरी को जुर्म की श्रेणी से हटाए जाने के तीन साल बाद केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की है कि सेना में अडल्टरी को जुर्म ही रहने दिया जाए. सरकार का कहना है कि इससे सेना में अनुशासन के पालन पर असर पड़ता है.
डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय का लिखा -
सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में अडल्टरी को डीक्रिमिनलाइज कर दिया था यानी यह कह दिया था कि अब से उसे जुर्म नहीं माना जाएगा. 2018 के फैसले के पहले यह भारतीय दंड संहिता की धारा 497 के तहत एक जुर्म था और इसके लिए पांच साल तक की जेल और जुर्माने का प्रावधान था. तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने इस कानून को असंवैधानिक ठहराते हुए कहा था कि "अडल्टरी एक जुर्म नहीं हो सकता और इसे जुर्म होना भी नहीं चाहिए."
लेकिन तीनों सेनाओं की तरफ से सरकार का कहना है कि सेनाओं को 2018 के आदेश से बाहर रखा जाना चाहिए क्योंकि उनके अपने नियमों में अडल्टरी को एक संगीन जुर्म के रूप में देखा जाता है और दोषी पाए जाने वाले को नौकरी से बर्खास्त किया जा सकता है. केंद्र की इस अपील पर अदालत ने अभी फैसला नहीं दिया है और चीफ जस्टिस से कहा है कि वो इस मामले को सुनने के लिए पांच जजों की एक संवैधानिक पीठ का गठन करें.
सरकार का कहना है कि सेना के कर्मी जब सीमा पर या दूर-दराज इलाकों में लंबे समय तक चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में तैनात रहते हैं तो ऐसे में वे अपने परिवार के प्रति निश्चिन्त रहें, इसलिए सेना उनके परिवार का ध्यान रखती है. सरकार का कहना है कि ऐसे में सेना के दूसरे कर्मी या अधिकारी जब उनके परिवार वालों से मिलने जाएंगे तब अपने परिवार से दूर तैनात कर्मियों को यह चिंता सताएगी की उनका "परिवार" कोई "प्रतिकूल गतिविधि" तो नहीं कर रहा. सरकार का कहना है कि ऐसे में अडल्टरी को एक जुर्म बनाए रखना बेहद अनिवार्य है.
सरकार ने यह भी कहा है कि अनुशासन सेनाओं में काम करने की संस्कृति की रीढ़ है और इस अनुशासन के पालन के लिए संविधान संसद को सेनाओं के अंदर कुछ मौलिक अधिकारों को दिए जाने से भी रोका जा सकता है. जानकारों का कहना है कि हालांकि आर्मी एक्ट में अडल्टरी का कहीं भी जिक्र नहीं है, फिर भी सेना में "अपने सहयोगी अधिकारी की पत्नी के स्नेह को चुरा लेना" एक संगीन जुर्म माना जाता है और ये सेना के नियमों के तहत "अनुचित व्यवहार" की परिभाषा में आता है.
भारतीय सेना के कुछ सेवानिवृत्त अधिकारी भी अडल्टरी को जुर्म बनाए रखनी की जरूरत में विश्वास रखते हैं. सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल डी एस हूडा ने डीडब्ल्यू को बताया कि अडल्टरी को सेना में सख्त नापसंद किया जाता है और सेना में अनुशासन बनाए रखने के लिए यह जरूरी है कि उसे एक जुर्म ही समझा जाए. उनका कहना है कि सेना के कर्मी काफी करीब और बंद समुदायों में रहते हैं और सबके एक दूसरे से निजी ताल्लुकात होते हैं.
ऐसे में जूनियर और सीनियर अफसर या उनकी पत्नियों को लेकर ऐसा कुछ हुआ तो पूरा माहौल बिगड़ जाता है. लेफ्टिनेंट जनरल डी एस हूडा का यह भी कहना है कि भारत में ही नहीं बल्कि सभी देशों में सेना का अपना संगठनात्मक सदाचार होता और एक विशिष्ट सैन्य न्याय प्रणाली होती है जो आम न्याय प्रणाली से अलग होती है.
सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल उत्पल भट्टाचार्य ने डीडब्ल्यू को बताया कि सेना में एक कमांड प्रणाली होती है और इस वजह से किसी भी विषय को 'ग्रे एरिया' या अस्पष्ट स्थिति में नहीं छोड़ा जा सकता. उनका कहना है कि सेना में इस तरह की "लेजे फेयर" छूट देना अनुशासनहीनता की तरफ बढ़ने की शुरुआत है. लेफ्टिनेंट जनरल उत्पल भट्टाचार्य ने यह भी बताया कि वियतनाम युद्ध के दौरान अमेरिकी सेना में ऐसी चीजें देखी गई थीं और वहीं से अमेरिकी सेना की हार की शुरुआत हो गई थी. (dw.com)