संपादकीय

दैनिक ‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : खुद सेहतमंद रहकर दें पूंजीवाद को टक्कर !
18-Jan-2021 5:05 PM
दैनिक ‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  खुद सेहतमंद रहकर दें  पूंजीवाद को टक्कर !

पिछले दो-तीन दिनों में किसी की लिखी एक लाईन सोशल मीडिया पर सामने आई जिसमें शायद कोई संदर्भ नहीं था, लेकिन फिर भी बात सुहानी थी। लिखा था कि अपनी सेहत को ठीक रखना पूंजीवाद का एक किस्म का मुकाबला है। हो सकता है यह बात किसी और सोच के साथ लिखी गई हो, लेकिन इससे एक बात जो सूझती है, वह यह कि लोग सेहतमंद रहें, तो उन्हें पूंजीवादी इलाज और दवा कारोबार की जरूरत कम पड़ेगी। आज बहुत सी बीमारियां लोगों की अपनी लापरवाही की वजह से होती है, और इनसे बचा जा सकता है।

आज दुनिया में दवा कारोबार, मेडिकल-जांच का कारोबार, इलाज, और बदन के महंगे रखरखाव की कसरतें, ये तमाम बातें एक पूंजीवादी व्यवस्था खड़ी कर चुकी हैं। अलग-अलग देशों और समाजों में जो परंपरागत चिकित्सा पद्धति चलती थीं, वे सब कुछ तो अपने देश-प्रदेश की सरकारों की लापरवाही से खत्म होती चली गईं, और कुछ उन्हें गैरजिम्मेदार और मिलावटखोर कारोबारियों ने खत्म कर दिया। हजारों बरस पुरानी चिकित्सा पद्धतियां अपनी पकड़ और उपयोगिता खो बैठीं, और पश्चिम की एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति ने मानो एकाधिकार कायम कर लिया। इस फेरबदल का एक बड़ा शिकार हिन्दुस्तान जैसा देश भी रहा जहां हजारों बरस पुराना आयुर्वेद, और वैसा ही पुराना योग, सनसनीखेज बाबाओं के बाजारू दावों का शिकार होकर साख खो बैठे हैं। नतीजा यह है कि बीमारी से दूर रहने का जो चौकन्नापन भारतीय जीवनपद्धति में सुझाया गया था, वह धरे रह गया, और लोग अब जिंदगी के हर दिन योग करने के बजाय, पैसों की ताकत होने पर नौबत आने पर बाईपास सर्जरी को आसान विकल्प मानने लगे हैं।

कसरत से लेकर सेहत और जांच से लेकर इलाज तक का पूरा कारोबार एक बड़ी पूंजीवादी व्यवस्था है। और सावधान रहने वाले लोग बहुत हद तक इससे बचकर भी रह सकते हैं। मामूली घूमना, जरूरत के लायक धूप में रहना, सेहतमंद खानपान तक सीमित रहना, उठते-बैठते बदन का ख्याल रखना, सोते और बैठते हुए सही तरीके इस्तेमाल करना, नशे से बचना, खेलकूद, कसरत, योग-ध्यान से अपने को चुस्त-दुरूस्त रखना, ये तमाम ऐसी बातें हैं जो लोगों को बीमारी, जांच, इलाज जैसे कई खर्चों से दूर रखती हैं।

भारतीय जीवनपद्धति में ऐसी सावधानियों का हजारों बरस पुराना इतिहास है। आधुनिक जीवनशैली की वजह से, लापरवाही और गैरजिम्मेदारी की वजह से लोग अपने तन-मन तबाह कर बैठते हैं, और इसलिए उन्हें अपनी क्षमता से बाहर जाकर भी खर्च करना पड़ता है। और ऐसा भी नहीं कि हर बार खर्च करने पर गई हुई सेहत लौट भी आती है। इसलिए इस बात का ख्याल रखने की जरूरत है कि खर्च की औकात रहने पर भी हर बार गई हुई सेहत पूरी हद तक वापिस नहीं पाई जा सकती। इसलिए भी लोगों को संपन्नता रहने पर भी सावधान रहना चाहिए।

यह भी ध्यान रखने की जरूरत है कि सेहत को लेकर सतर्कता परिवार में एक साथ आ सके या न आ सके, लापरवाही जरूर सब पर एक साथ हावी हो जाती है। घर पर या दोस्तों की टोली में कोई एक सिगरेट-शराब पीने वाले हों, तो बाकी लोगों की धडक़ खुलने लगती है, आसपास के लोग या अगली पीढ़ी बिना हिचक, बिना झिझक इन्हें पीने लगते हैं। ऐसा ही हाल बाजार के बने हुए खतरनाक खान-पान को लेकर होता है, और घरों में बनने वाले सेहत के लिए नुकसानदेह खानपान को लेकर भी होता है। जरूरत न सिर्फ खुद सावधान रहने की होती है, बल्कि अपने आसपास भी इस सावधानी को फैलाने की रहती है। पूंजीवादी व्यवस्था को खराब सेहत, खराब बदन, मोटापा सब कुछ बहुत माकूल बैठता है। लोगों का वजन ऐसा बढ़ते चले कि उन्हें हर बरस बड़े आकार के कपड़े लगते रहें, यह बाजार की सेहत के लिए अच्छा रहता है। धीरे-धीरे कुछ बरसों में यह महंगे अस्पतालों की सेहत के लिए अच्छी बात हो जाती है। आज जिस रफ्तार से लोगों की सोशल मीडिया की जानकारी, बातचीत, और उनकी तकलीफें जिस तरह दुनिया के इंटरनेट-कारोबारी एक-दूसरे को बेच रहे हैं, उससे लोगों तक बीमारी की खबर, और उसके इलाज की बाजारू जानकारी हो सकता है कि साथ-साथ ही पहुंचने लगे।

जो लोग बहुत खतरनाक और नुकसानदेह वातावरण में जीते हैं, और काम करते हैं, उनकी बात अगर छोड़ दें तो अधिकतर आम लोग मामूली सावधानी से ही, और थोड़ी-बहुत मेहनत से ही कई किस्म की बीमारियों से बच सकते हैं, और पूंजीवादी व्यवस्था के हाथों निचुडऩे से भी।

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

 

 

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