संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : लाल किले पर इस कार्रवाई की जिम्मेदारी किसने ली है देखें !
27-Jan-2021 5:00 PM
 ‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : लाल किले पर इस कार्रवाई की जिम्मेदारी किसने ली है देखें !

दिल्ली में कल गणतंत्र दिवस के मौके पर लाल किले पर जो अभूतपूर्व बल प्रदर्शन हुआ है उसने देश के एक सबसे मजबूत आंदोलन, किसान आंदोलन को कमजोर करने का काम किया है। यह समझने की जरूरत है कि सिख पंथ के झंडे को लाल किले के एक खंबे या किसी गुंबद पर फहरा कर किसका भला किया गया है? यह बहुत मासूम बल प्रदर्शन नहीं था। किसान तो महीनों से सबसे सर्द मौसम को खुले में झेलते हुए अपना आंदोलन चलाए हुए थे। गणतंत्र दिवस के मौके पर वह देश की राजधानी में एक ट्रैक्टर रैली निकालकर किसानों की ताकत का प्रदर्शन करना चाहते थे जो कि किसी भी लोकतांत्रिक और शांतिपूर्ण आंदोलन के प्रतीकात्मक तरीकों जैसा ही एक तरीका था। लेकिन ऐसे में किसानों के मोटे तौर पर शांत रहते हुए भी उनके बीच के कुछ लोग एक गैर किसान नेता की अगुवाई में जिस तरह लाल किले पर पहुंचे और वहां उन्होंने सिख पंथ का झंडा फहराया उससे देशभर में किसानों को धिक्कारने का दौर शुरू हो गया। यह समझने की जरूरत है कि बिना किसी हिंसा के जो किसान महीनों से सडक़ों पर बैठे हुए हैं और जिनमें से दर्जनों किसानों की शहादत इस आंदोलन में अब तक हो चुकी है, कल उनमें से कुछ लोग एकाएक ऐसे बल प्रदर्शन पर क्यों उतारू हो गए? 

यह एक खुला तथ्य है कि कल लाल किले पर जो बल प्रदर्शन किया गया वह भाजपा से जुड़े हुए पंजाबी फिल्मों के एक अभिनेता की अगुवाई में हुआ और उसने कल शाम फेसबुक पर एक वीडियो पोस्ट करके लाल किले की कार्रवाई का जिम्मा भी लिया। दीप सिद्धू नाम का यह पंजाबी अभिनेता भाजपा के नेताओं से जुड़ा हुआ है, वह पिछले महीनों में कई बार ऐसी कोशिश कर चुका है कि उसे किसान आंदोलन में घुसपैठ करने मिले। किसानों ने औपचारिक रूप से दीप सिद्धू के दाखिले को रोका, उसे बार-बार कहा कि किसान आंदोलन में उसकी कोई जगह नहीं है। कल ट्रैक्टर रैली के चलते हुए वह एक पीछे के दरवाजे से इस आंदोलन में दाखिल हुआ, लाल किले पर हुई कार्रवाई की अगुवाई की, अपने खुद के वीडियो बनाए, सेल्फी ली, और उन्हें पोस्ट किया। 

किसानों का जो आंदोलन महीनों से शांतिपूर्ण चल रहा था उसके बारे में कल मीडिया के एक हिस्से से लेकर सोशल मीडिया तक फर्जी तस्वीरों के साथ ऐसी जानकारी फैलाई गई कि किसानों ने लाल किले से तिरंगा झंडा निकालकर फेंक दिया और खालिस्तानी झंडा फहरा दिया। यह बात गणतंत्र दिवस के दिन लोगों को भडक़ाने के लिए काफी थी। दिक्कत यह थी कि अफवाहों की कुछ घंटों की जिंदगी के बाद यह सच सामने आना ही था कि तिरंगे झंडे को किसी ने छुआ नहीं था, और ना ही कोई खालिस्तानी झंडा लाल किले पर फहराया गया था। आंदोलनकारी किसानों के बीच कम्युनिस्टों के लाल झंडे से लेकर सिख पंथ के निशान साहब वाले झंडों की जगह बनी हुई थी, और उनमें से ही निशान साहब वाले सिख पंथ के कुछ झंडे कल लाल किले के कुछ  खंभों पर, और कुछ गुंबद ऊपर फहराए गए। यह बात जब तक साफ हो पाती कि तिरंगे झंडे का किसी ने अपमान नहीं किया, और ना ही कोई खालिस्तानी झंडा फहराया गया, तब तक तो देश के लोगों ने किसान आंदोलन को ही धिक्कारना शुरू कर दिया था। 

यह बात समझने की दिमागी हालत देश के लोगों की बची नहीं है कि जो आंदोलनकारी लाल किले तक पहुंचे भी थे उनमें से भी बहुत से लोग देश का तिरंगा झंडा न सिर्फ लहरा रहे थे बल्कि वे अपने बदन पर भी तिरंगे झंडे को लपेट कर रखे हुए थे। हिंदुस्तान में शक्ति प्रदर्शन का इतिहास नया नहीं है। 1996 में जब बाबरी मस्जिद को गिराया गया तब वह सोची-समझी साजिश थी, और उसके नेता सामने एक मंच पर इक_े होकर खुशियां मनाते हुए यह काम कर रहे थे। इसके बाद कई ऐसे मौके आए जब लोगों ने इस किस्म का बल प्रदर्शन किया। राजस्थान में एक मुस्लिम मजदूर को जिंदा जलाने वाले एक घोर सांप्रदायिक हत्यारे हिंदू को बचाने के लिए उदयपुर की जिला अदालत पर हिंसक लोगों की भीड़ ने हमला किया था और अदालत पर भगवा झंडा फहरा दिया था। देश की लोकतांत्रिक संस्थाओं को, कानून को चुनौती देते हुए जब भी कानून के राज को  चुनौती दी जाती है तो वह कई दूसरी शक्लों में, कई दूसरी जगहों पर भी सामने आती है। लेकिन किसानों के महीनों से चले आ रहे शांतिपूर्ण आंदोलन को बदनाम करने के लिए उसे हिंसक, देशद्रोही बताने के लिए जो अभियान कल दोपहर शाम से ही शुरू हो गया है, वह भयानक है। देश के तिरंगे झंडे को निकालकर फेंक देने की अफवाह को जिस तरीके से फैलाया गया उससे यह जाहिर है कि यह हमला, यह शक्ति प्रदर्शन बहुत मासूम नहीं था। इसके पीछे इस आंदोलन को खत्म करने की एक साजिश भी थी। जिस दीप सिद्धू नाम के पंजाबी अभिनेता ने कल के इस हमले की अगुवाई की और दावा भी किया वह दीप सिद्धू लोकसभा चुनाव में भाजपा उम्मीदवार सनी देओल का चुनाव एजेंट था और सनी देओल के साथ प्रधानमंत्री से उसकी मुलाकात की तस्वीरें कल से सामने आई है। इन तमाम बातों को अलग करके देखना मुमकिन नहीं है। किसानों के इस आंदोलन को हरियाणा सरकार के मंत्री कभी पाकिस्तानी बता रहे थे तो कभी चीनी, और खालिस्तानी तो बताया ही जा रहा था। यह सिलसिला भी जब किसानों को नहीं तोड़ पाया तो कल के उनके प्रतीकात्मक आंदोलन, ट्रैक्टर रैली बदनाम करने के लिए लाल किले पर यह हमला हुआ, और उसे देश के गौरव के प्रतीक तिरंगे झंडे से जोडक़र किसानों को बदनाम करने की एक और कोशिश हुई। आज केंद्र सरकार पर दिल्ली पुलिस की जिम्मेदारी भी है, वह केंद्र सरकार के मातहत ही काम करती है कम ऐसे में भाजपा से जुड़े एक नेता ने जब कल लाल किले पर हमले की जिम्मेदारी ली है, तो यह केंद्र सरकार का जिम्मा बनता है कि वह इस पर कार्रवाई करें। किसानों का यह आंदोलन ऐतिहासिक है, और इसे शांतिपूर्ण तरीके से जारी रहने देना चाहिए।

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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