संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : ममता और मोदी के बीच टकराव, जिम्मेदार कौन?
07-Feb-2021 6:09 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : ममता और मोदी के बीच टकराव, जिम्मेदार कौन?

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आज इस वक्त असम और पश्चिम बंगाल के दौरे पर हैं। इन दो चुनावी राज्यों में वे कई शिलान्यास और लोकार्पण करने वाले हैं। इस बार के केन्द्रीय बजट में देश के चुनावी राज्यों के लिए इतना खास इंतजाम किया गया है कि लोग सोशल मीडिया पर उसका मजाक भी बना रहे हैं। पश्चिम बंगाल का चुनाव सबसे अधिक उत्तेजना से भरा हुआ है, क्योंकि वहां पहले तो वामपंथियों और ममता बैनर्जी के समर्थकों के बीच हिंसक टकराव होते रहता था, अब वामपंथियों के किनारे हो जाने के बाद तृणमूल कांग्रेस का टकराव भाजपा से होता है जो कि राज्य में अगली सरकार बनाने का दावा कर रही है। इस मुद्दे पर आज लिखने की जरूरत इसलिए है कि बंगाल में प्रधानमंत्री के एक सरकारी कार्यक्रम में शामिल होने का न्यौता मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी को भी भेजा गया था, लेकिन वे उसमें शामिल नहीं हो रही हैं। पखवाड़े पहले नेताजी सुभाषचंद्र बोस की 125वीं जयंती के राष्ट्र स्तर के समारोह में बंगाल में प्रधानमंत्री के साथ ममता बैनर्जी भी मौजूद थीं, और उसमें जब ममता बोलने के लिए खड़ी हुईं, तो भाजपा के कार्यकर्ताओं ने उनका भाषण शुरू होते ही जयश्रीराम के नारे लगाने शुरू कर दिए थे। उस पर ममता ने अपनी बात खत्म कर दी, और सार्वजनिक रूप से इस बर्ताव पर विरोध जाहिर किया था। देश के मीडिया के एक बड़े हिस्से ने इस घटना पर भाजपा के नेताओं के इस बयान को खूब बढ़-चढक़र दिखाया और छापा कि जयश्रीराम सुनने पर ममता के तन-मन में आग लग जाती है, या वे भडक़ जाती हैं। जबकि जिम्मेदार मीडिया में यह तथ्य साफ-साफ छपा था कि ममता को बोलते एक मिनट ही हुआ था कि कार्यक्रम में बड़ी संख्या में मौजूद भाजपा के कार्यकर्ताओं में से जयश्रीराम के नारे लगने लगे थे। 

यह घटना और इससे एक पखवाड़े बाद आज इस राज्य में केन्द्र सरकार के एक सरकारी कार्यक्रम में जाने से ममता के इंकार को समझने की जरूरत है। भारत के संघीय ढांचे में ऐसा होते ही रहेगा कि केन्द्र में किसी पार्टी या गठबंधन की सरकार रहेगी, और अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग पार्टियों और गठबंधनों की। बहुत से ऐसे सार्वजनिक मौके रहेंगे जब एक सरकार के कार्यक्रम में दूसरी सरकार के लोगों को न्यौता दिया जाएगा, और सार्वजनिक जीवन के शिष्टाचार का यह तकाजा भी रहेगा कि दलगत पसंद-नापसंद से परे लोग ऐसे कार्यक्रमों में जाएं, और ऐसा आमतौर पर होता भी है। लेकिन बंगाल उन राज्यों में से है जहां पर सत्तारूढ़ पार्टी और उसकी मुखिया मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी के साथ केन्द्र के सत्तारूढ़ गठबंधन की मुखिया भाजपा का बहुत कड़वाहट भरा टकराव चल रहा है। ममता बैनर्जी भी अपना आपा जल्दी खोने के लिए जानी जाती हैं, और दूसरी तरफ भाजपा के मंत्री और दूसरे नेता बंगाल में ममता को भडक़ाने का कोई मौका चूकते नहीं हैं। देश की संघीय व्यवस्था का तकाजा यह था कि जब कलकत्ता में प्रधानमंत्री की मौजूदगी में केन्द्र सरकार का एक कार्यक्रम चल रहा था, तो उसमें आमंत्रित और मौजूद मुख्यमंत्री के भाषण के बीच उन्हें हूट करना बदतमीजी भी थी, और अतिथि सत्कार की परंपरा के खिलाफ बात भी थी। लेकिन अपनी आंखों के सामने ऐसा होते देखकर भी प्रधानमंत्री की खामोशी को हुड़दंगियों को मौन सहमति के अलावा और तो कुछ समझा भी नहीं जा सकता है। खासकर जब केन्द्र और राज्य के बीच राजनीतिक और सरकारी संबंध तनातनी के चल रहे हैं, तब अपने कार्यक्रम में बुलाकर ममता बैनर्जी को पहले तो हूट करना, और फिर इस बात को ममता बैनर्जी के हिन्दू-विरोधी होने की तरह प्रचारित करना कोई अच्छी बात नहीं थी। 

भारत में केन्द्र और राज्य के बीच संबंधों में कई बातें पारंपरिक शिष्टाचार पर आधारित रहती हैं। यह कहीं लिखा हुआ नहीं है कि राज्य के मुख्यमंत्री को प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में जाना ही होगा, यह सिर्फ शिष्टाचार का मामला है। केन्द्र के कार्यक्रम में आमंत्रित मुख्यमंत्री के साथ प्रधानमंत्री की नजरों के सामने की गई एक बड़ी अशिष्टता के बाद शिष्टाचार की परंपरा का तकाजा नहीं दिया जा सकता। लोकतंत्र में असहमतियों के बीच परस्पर सम्मान की दरियादिली अगर खत्म हो जाती है, तो दिलों को जोडऩे के लिए किसी कानूनी बंदिश की मदद नहीं ली जा सकती। चुनाव तो आते-जाते रहते हैं, चुनावी भाषणों में कई किस्म की गंदगी भी उगली जाती है, लेकिन आमंत्रित अतिथियों के साथ बदसलूकी कोई इज्जत नहीं दिलाती, फिर चाहे यह बदसलूकी कोई भी क्यों न करे। 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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