संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : मातृ-पितृ दिवस नाम का पाखंड खत्म किया जाए
14-Feb-2021 5:43 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : मातृ-पितृ दिवस नाम का  पाखंड खत्म किया जाए

आज प्रेम का त्यौहार वेलेंटाइन डे है, और इसके लिए प्रेमी दिलों ने फूलों और तोहफों की तैयारी कर रखी है, दूसरी तरफ प्रेम से नफरत करने वालों ने प्रेमियों को मारने के लिए लाठियों को तेल पिला रखा है। छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में प्रशासन और पुलिस गुंडों को रोकने और जेल भेजने के बजाय बाग-बगीचों से लडक़े-लड़कियों को, दोस्तों और प्रेमी जोड़ों को बाहर रखने के लिए हथियार लेकर जवान तैनात कर रखेंगे। नतीजा यह है कि गुंडागर्दी रोकने के बजाय, नफरत और हिंसा रोकने के बजाय, सरकार की पूरी ताकत प्रेम को रोकने में झोंक दी जाएगी।

इस राज्य में कुछ बरस पहले, उस वक्त बापू कहलाने वाले, और अब आसाराम रह गए एक आदमी ने सरकार को सलाह दी थी कि वेलेंटाइन डे को मनाना बंद करके 14 फरवरी के इस अंग्रेजी तारीख वाले त्यौहार के दिन मातृ-पितृ दिवस मनाया जाए। चूंकि उस वक्त आसाराम, बापू भी कहलाता था इसलिए उस वक्त की भाजपा सरकार ने उसके पांव छूते हुए वह राय मान ली थी, और सरकारी स्तर पर, सरकारी खर्च पर, स्कूलों में यह नए मुखौटे वाला त्यौहार शुरू हो गया था। यह फेरबदल करते हुए सरकार ने किसी भी समाजशास्त्री या मनोवैज्ञानिक से यह सलाह नहीं ली थी कि नौजवान पीढ़ी को, लडक़े-लड़कियों को अगर स्वाभाविक प्रेम से रोका जाएगा, तो उनके मानसिक विकास पर क्या फर्क पड़ेगा। 

यह देश इसी तरह के धर्मान्ध पाखंडियों की राय पर अपनी रीति-नीति बदलते रहता है, और यही वजह है कि नौजवान पीढ़ी से लेकर बच्चों तक को अंतहीन बलात्कारों का शिकार होना पड़ता है, कुंठाओं में जीना पड़ता है, और अपनी स्वाभाविक संभावनाओं से कोसों पीछे रहकर मन मारकर दूसरे सभ्य देशों को हसरत से देखना पड़ता है।

इस देश के इतिहास में इस किस्म की इतनी बड़ी मूर्खता कभी नहीं हुई थी कि नौजवान लडक़े-लड़कियों को प्रेम से रोका जाए। सैकड़ों बरस पहले का संस्कृत साहित्य प्रेम की कहानियों से, प्रेम की बातों से ऐसा लबालब है कि उसमें से मादक रस टपकते ही रहता है। एक तरफ तो अपनी जड़ों और अपनी संस्कृति, और अपनी संस्कृत भाषा की रक्षा के लिए भारतीय संस्कृति के ठेकेदार लाठियां लेकर चौबीसों घंटे तैनात रहते हैं, और दूसरी तरफ अपने ही देश के सांस्कृतिक इतिहास में प्रेम की जो लंबी परंपरा रही है, कृष्ण के गोपियों के साथ रास की जो कविताएं, जो तस्वीरें सैकड़ों बरस से चली आ रही हैं, उन सबको अनदेखा करके प्रेम को कुचलना भारतीय संस्कृति और हिन्दू धर्म साबित किया जा रहा है। बंगाल से लेकर आज के बांग्लादेश तक जिस तरह प्रेम में भीगा हुआ वसंतोत्स्व मनाया जाता है, और जिस तरह भारत के इतिहास में प्रेम और सेक्स के पर्व, मदनोत्सव को मनाने की परंपरा पश्चिम के वेलेंटाइन डे से भी बहुत पुरानी है, उसे याद रखना चाहिए। 

नौजवान दिलों की भावनाओं को कुचलकर उससे उनके मां-बाप के लिए सम्मान का प्रतीक चिन्ह नहीं गढ़ा जा सकता। इंसान की जिंदगी में मां-बाप की जरूरत भी होती है, बच्चों की जरूरत भी होती है, और प्रेम या/और सेक्स की जरूरत भी होती है। इनमें से कोई भी जरूरत एक-दूसरे का विकल्प नहीं होती, जिस तरह जिंदगी मौत का विकल्प नहीं होती, मौत जिंदगी का विकल्प नहीं होती, भजन भोजन का विकल्प नहीं होता, और भोजन भजन का विकल्प नहीं होता। जिंदगी में हर बात की अलग-अलग जगह और जरूरत होती हैं। इनको एक-दूसरे से गड्डमड्ड करके कुछ हासिल नहीं किया जा सकता। जिस आसाराम ने वेलेंटाइन डे के खिलाफ, नौजवानों के प्रेम के खिलाफ बकवास की थी, वही आसाराम मन में कैसी हिंसक भावनाएं रखता था, यह उसके बलात्कार की शिकार नाबालिग बच्ची के बयान में खुलकर सामने आया है। प्रेम के ऐसे दिनों पर होने वाली गुंडागर्दी को भी खत्म करना चाहिए जो कि हिन्दू धर्म, हिन्दुत्व, और भारतीय संस्कृति, इन सबको बदनाम करती है। नौजवान अगर प्रेम नहीं कर पाएंगे, तो कुंठा और भड़ास में वे हिंसा की तरफ बढ़ेंगे। मां-बाप की इज्जत करने के लिए प्रेमी दिलों की इज्जत का कत्ल जरूरी नहीं है। और जहां तक एक लोकतांत्रिक सरकार की जिम्मेदारी की बात है, तो किसी भी दिन बाग-बगीचे में, तालाब के किनारे जाकर बैठने वाले प्रेमियों को रोकने के बजाय सरकार को अपनी बंदूकें उन गुंडे-मवालियों पर ताननी चाहिए जो कि धर्म और सांस्कृतिक इतिहास का नाम लेकर अपनी दुकानदारी चलाते हैं, और हिंसा करते हैं। सरकार को तो यह खुली मुनादी करनी चाहिए कि सार्वजनिक जगहों पर शिष्टता की सीमा में मिलने वाले सारे लोगों को सुरक्षा दी जाएगी। बलात्कारी आसाराम के भक्त और अनुयायी उसके जुर्म, उसके करतूत के बावजूद अपने परिवार और बच्चों को लेकर आसाराम के प्रति आस्था का सार्वजनिक जलसा करते हैं, और आज के दिन के लिए हफ्ते भर से उसके पोस्टर-होर्डिंग लगाए गए हैं कि 14 फरवरी को मातृ-पितृ दिवस मनाया जाए। एक बलात्कारी के गौरवगान के ऐसे होर्डिंग और पोस्टर को हटाना भी सरकार की जिम्मेदारी है, लेकिन छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार भी सजायाफ्ता कैदी आसाराम के फतवे को सार्वजनिक जगहों से नहीं हटा रही है, देश भर में आसाराम का साथ देने वाली भाजपा की सरकारें भला ये पोस्टर क्यों हटाएंगी? (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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